Day: 27 May 2020

Bay leaves (Tez patta)

थायराइड

थायराइड हमारे गर्दन के निचले हिस्से में तितली के आकार की ग्रन्थि होती है, जो हमारे शरीर के मेटाबोलिक नियंत्रण में अहम भूमिका निभाती है। इस ग्रन्थि से थायरॉक्सिन नाम का हार्मोन निकलता है जो हमारे शरीर में कई गतिविधियों के नियंत्रण में अहम भूमिका निभाता है – जैसे कोलेस्ट्रॉल नियंत्रण, शरीर के तापमान का नियंत्रण, वज़न नियंत्रण और याददाश्त को ठीक रखना आदि।

हमारे आज की जीवनशैली और रहन-सहन ने बहुत कुछ बदलाव ला दिया है और इस वजह से कई बीमारियों को हम अनायास ही न्यौता दे देते हैं और हमें खुद भी इसका एहसास नहीं होता, थायराइड भी उन्हीं बीमारियों में एक है।

प्रकार

जब थायरॉक्सिन हार्मोन का लेवल कम या ज्यादा होने लगता है तभी इसकी शुरुआत हो जाती है। यह दो तरह का होता है।

1 – जब हार्मोन का स्राव ज्यादा होता है, उसको हाइपर थायराइड कहते हैं।

2 – जब हार्मोन का स्राव कम होता है, उसको हाइपो थायराइड कहते हैं।

कारण

अनियमित जीवन शैली, असंतुलित खानपान, गर्भावस्था के समय हार्मोनल असन्तुलन इसके मुख्य कारणों में है। कई बार व्यक्ति को पता भी नहीं चलता कि वो थायराइड विकार से ग्रस्त है।

लक्षण

वज़न का अचानक से घटना या बढ़ना, हाथ-पैर ठंडे पड़ जाना, हृदयगति ज्यादा या कम होना, घबराहट होना, पसीना ज्यादा होना या बिल्कुल न होना, मितली जैसा लगना, बाल झड़ना, असमय बाल सफेद होना, चक्कर आना इसके प्रमुख लक्षण हैं।

बचाव

अगर आपको इन लक्षणों में से कुछ भी दिख रहे हों तो डॉक्टर से सलाह जरूर लें, खासकर इंडोक्रिनोलॉजिस्ट से, खुद से कोई प्रयोग न करें नहीं तो इसके परिणाम गम्भीर हो सकते हैं।

अपनी जीवनशैली नियमित रखें। संतुलित भोजन ग्रहण करें और व्यायाम या कम से कम आधे घण्टे के लिए नियमित रूप से पैदल ज़रूर चलें।

समय-समय पर अपना टेस्ट करवाते रहें और डॉक्टर से सलाह लेते रहें।

आयोडीन युक्त नमक ही खाएं।

क्या न करें

जितना सम्भव हो सोयायुक्त चीजों से परहेज़ करें।

गोभी, ब्रोकली, मोमोज़ और तले हुए खाद्य पदार्थ से परहेज़ करें।

साधारण सफेद नमक न ग्रहण करें।

अपना उपचार स्वयं न करें। बिना विशेषज्ञ के सलाह से कुछ भी न लें।

भारत! कोरोना! लॉकडाउन

आज विश्व के सभी देशों में कोरोना का कहर फैला हुआ है। अमेरिका, इटली, चीन जैसे विकसित और हर तरह से सम्पन्न देश भी इस वायरस के सामने पानी माँगते नज़र आ रहे। ऐसे में भारत जहाँ पहले से ही मूलभूत सुविधाओं के लिए जद्दोजहद मची हुई थी, इस विपदा से लड़ने के लिए कोशिश तो बहुत बढ़िया की, पर अभी हाल-फिलहाल स्थिति दिन-प्रतिदिन भयावह होती जा रही है। शुरुआत में ही जब हमारे यहाँ सरकारी आँकड़ों के हिसाब से मात्र 10 केस थे, 22 मार्च से ही लॉकडाउन का ऐलान कर दिया गया। लेकिन ऐलान करते समय इस बात का ध्यान नहीं दिया गया कि हमारे यहाँ आधे से ज्यादा आबादी उस तबके की है जो गाँव से शहर की ओर दो जून की रोटी के जुगाड़ में आई है और वही मजदूर आज अपने ही देश में प्रवासी बन कर रह गए हैं। उनको बहुत लंबे समय तक बैठाकर खिलाना हमारे देश की अर्थव्यवस्था मंज़ूर नहीं कर पाएगी। आज हर तरफ हमारे देश का मजदूर वर्ग परेशान होकर सड़कों पर उतर आया है क्योंकि शहरों में उनका गुजारा अब नामुमकिन हो गया है और गाँव के लिए पलायन करने के सारे रास्ते लॉकडाउन करके बंद कर दिए गए। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या हमारे स्वास्थ्य विभाग को कोरोना की भयावहता का अंदाजा नहीं था कि ये एक दो महीने के लॉकडाउन से खत्म नहीं होने वाला या फिर हमारे आँकड़े इतने कमज़ोर हैं कि सरकारी दफ्तरों में बैठे आला अधिकारियों को ये पता ही नहीं कि हमारी आधी से ज्यादा आबादी उनकी भाषा में “प्रवासी मज़दूरों” की है, जिनको या तो उनके जीवन-यापन के लिए मूलभूत सुविधाएँ उपलब्ध करवाई जाती या उनको पहले ही बता दिया गया होता कि कोरोना से जंग लम्बी चलने वाली है, इसलिए आप लोग अपने गाँव वापस चले जाएँ। अभी फिलहाल जब 2 महीने से लॉकडाउन चल रहा है और इस दौरान सारे कामकाज ठप पड़े हुए हैं, सभी लोग सोच रहे कि घर में बंद रहकर हमने कोरोना से आधी जंग जीत ली। ऐसे में हमारे मज़दूर भाइयों की ह्रृदय विदारक पीड़ा देखकर वाकई हम-आप जैसे लोग निःसहाय ही महसूस कर रहे। उन सभी मजदूरों की पीड़ा हमें आत्म-चिंतन करने को मजबूर कर रही कि किस युग में जी रहे हैं हम, जहाँ हमारे अपने ही चिलचिलाती धूप में परिवार सहित पैदल हज़ारों किलोमीटर के लिए निकल पड़े और हम मूकदर्शक बने हुए हैं। यह वही वोटर हैं जो चुनाव में न निकलें तो गाड़ी भेजकर उनको घर से निकाला जाता है तरह-तरह के लोकलुभावन वादों के साथ और आज जब उन्हें हमारी ज़रूरत है तो हम घर की बालकनी से ताली और थाली पीटने के बाद रामायण आदि में व्यस्त हैं।