लौंग (Cloves) फायदे और नुकसान
पेरेंटिंग हमेशा एक चुनौती ही रही है। एक नन्हे से जीव को इस काबिल बनाना कि वो खुद अपने भले-बुरे का चुनाव करने के साथ-साथ उससे जुड़े लोगों के लिए भी सही फैसला ले सके, कभी भी आसान नहीं रहा। भारतीय समाज में पहले संयुक्त परिवार में ज़िम्मेदारियाँ बँटी होती थी और बच्चों के पास भी देखने-सीखने के लिए बहुत से विकल्प होते थे। माता-पिता भी अपनी और ज़िम्मेदारियों के साथ-साथ बच्चों को भी देख लेते थे। बच्चे भी माँ-बाप में भगवान वाली छवि ढूढ़ते थे और उनकी बात सुनते ज्यादा एवं बोलते कम थे। लेकिन अब जैसे-जैसे एकल परिवारों का चलन बढ़ा और एक-दो बच्चे का दौर शुरू हुआ, साथ-साथ लड़की हो या लड़का शिक्षा सबका अधिकार प्रभावी हुआ, तब से काफी कुछ बदल गया। चुनौतियां बढ़ी, ज़िम्मेदारी बढ़ी और बिखराव बढ़ा। जहाँ पहले बच्चे अपने पेरेंट्स से छोटी सी बात करने में हिचकते थे अब सवाल-जवाब खत्म ही नहीं होते। सफलता मिली तो ये बच्चों की मेहनत और असफलता मिली तो आपने मेरे लिए किया ही क्या? ऐसे में तनाव और चिंता का माहौल हो जाना कोई बड़ी बात नहीं। नए पेरेंट्स सब कुछ छोड़कर बच्चों का भविष्य बनाने में लगे हुए हैं। उनके चतुर्मुखी विकास में अपना सब कुछ झोंक दिया है। ऐसे में ये ज़रूर ध्यान देना चाहिए कि बच्चा हर बात के लिये आप ही पर तो निर्भर नहीं हो रहा। कोशिश करना चाहिए कि बचपन से ही बच्चों को सही-गलत में अंतर समझाया जाना ज़रूरी है, ताकि बड़ा होकर वो अपने जीवन के अहम फैसलों में आपसे सलाह तो ले लेकिन आखिरी फैसला खुद उसका हो और उसके लिए वो किसी पर दोषारोपण करता नजर न आए। बच्चों को समाज की बुरी नज़र से बचाते हुए आत्मनिर्भर बनाने में कहीं हम ये गलती तो नहीं कर रहे कि बच्चा हमसे तो बहस कर ले रहा लेकिन जहाँ समाज में बोलने की बारी आए तो वो कुछ बोल ही न पाए। इसके लिए उसको बचपन से ही छोटे-छोटे मामलों में निर्णय लेने का मौका दीजिये और गलत होने पर उसको प्यार से समझाइए भी।
बच्चों को बचपन से ही आत्मनिर्भर बनाने में उनको अपना काम खुद करना भी आना चाहिए। इसलिए शुरुआत से ही छोटे कामों को करने की आदत डालने पर बाद में बड़े काम भी वो खुद करने लगते हैं। अगर आप यह सोचकर कि बच्चा अभी छोटा है, उनके सभी काम करते जाएंगे तो भविष्य में उसको आराम की आदत हो जाएगी। हमारे समाज में खासकर भारतीय समाज में लड़कियों को तो ससुराल जाने के नाम पर थोड़ा-बहुत काम करवाया भी जाता है, लेकिन लड़कों को एक गिलास पानी लेने को भी नहीं बोला जाता। ऐसे में एकल परिवारों में माँ के बीमार होने पर बड़ी समस्या हो जाती है और बाद में यही समस्या उस लड़के की पत्नी को भी झेलनी पड़ती है। आज के हमारे समाज की कड़वी सच्चाई ये है कि लड़का हो या लड़की सबको सब काम आने चाहिए ताकि ज़रूरत पड़ने पर वह हर परिस्थिति का डटकर सामना कर सके। लड़की को इतना काबिल बनाएं कि वो आर्थिक और मानसिक रूप से सशक्त होते हुए घर की ज़िम्मेदारियाँ बख़ूबी निभा सके और लड़के को इतना काबिल बनाएं कि आर्थिक और सामाजिक रूप से मज़बूत होते हुए भी घर के काम करने में वो संकोच या शर्म महसूस न करे और अकेले होने पर कभी भूखा रहने की नौबत न आए।