हिंदी भाषा ::फिर वही सम्मान दिलाना है
बरसों रहे गुलामी में हम
आज़ादी कहाँ से भाएगी
अपनी भाषा अपना देश
सबसे बढ़िया कहने की हिम्मत कहाँ से आएगी
सत्ता की खातिर सबने बंटवारा क्या खूब किया
देश को बांटा कई हिस्सों में
लोगों को अंग्रेजी के आधीन किया
अपनी भाषा अपनी शैली पर शर्म हमें आती है
अंग्रेजी भाषा और पाश्चात्य शैली हमेशा हमें लुभाती है।
कहने को राष्ट्रभाषा है हिन्दी
पर उसकी याद हमें एक दिन ही आती है।
आज भी उनसठ,उनहत्तर, उन्यासी, नवासी
हममें से बहुतों को समझ नहीं आती है।
हिंदी दिवस की शुभकामनाएं भी हम अंग्रेजी में देते हैं
बच्चों को अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाकर
खुद में ही इतराते हैं।
कैसे होंगे हम स्वाधीन जब तक ऐसी सोच है।
हिंदी भाषा अपने घर में ही सबपर बोझ है।
अपनी मातृभाषा को फिर वही सम्मान दिलाना है
किसी और भाषा के आगे इससे नहीं शर्माना है
अब हर हिंदुस्तानी ने यह ठाना है