कभी तो उन्मुक्त परिंदा बन जाना चाहिए। 

birds flying above concrete bulding

दिल अगर रोए आँखों को खुल कर हंसाना चाहिए

कभी फाड़े थे जो डायरी के पन्ने फिर से उन्हें चिपकाना  चाहिए।
गैरों के कहने को हरदम हकीकत न समझ
कभी खुद की अक्ल भी लगाना चाहिए।

दीदारे जश्न में ही हरदम मज़ा क्या है
कभी शरीक होकर भी आजमाना चाहिए।
समंदर की लहरों से डरकर कब तक साहिल पर रहोगे
कभी तो हौसला भरकर गोते भी लगाना चाहिए।
ज़िंदगी की उलझनों में कब तक उलझे रहोगे
तोड़कर सारे बंधन को कभी तो उन्मुक्त परिंदा बन जाना चाहिए।