Month: June 2025

भारत का दक्षिणी छोर कन्याकुमारी

कन्याकुमारी का नाम सुनते ही आपके दिमाग में क्या आता है ये तो नहीं पता लेकिन मेरे दिमाग में समंदर की हंसी लहरों के बीच सूर्योदय और सूर्यास्त की चाय और वो सुकून जिसके लिए हम दिल्ली जैसे महानगर में तरस से गए थे। और यकीन मानिये हमारी ये यात्रा हमारे लिए एक टर्निंग पॉइंट साबित हुई।

कन्याकुमारी तमिलनाडु राज्य के सुदूर दक्षिण में बसा एक शहर है जो पर्यटन के लिए बहुत लोकप्रिय है। भारत के सबसे दक्षिण छोर पर बसा कन्याकुमारी भारत के आकर्षक स्थल में शामिल है। यह हिन्द महासागर, बंगाल की खाड़ी और अरब सागर का संगम स्थल है, जिसकी मनोरम छटा पर्यटकों को यहां खींच लाती है। भारत के सबसे दक्षिणी छोर पर बसा कन्याकुमारी शहर सदियों से कला, संस्कृति और सभ्यता का प्रतीक रहा है। भारत के पर्यटक स्थल के रूप में भी इसका अपना ही महत्च है।

हमलोग ज्यादातर माता पार्वती को माँ के रूप में ही पूजते हैं लेकिन माता का रूप कन्या के रूप में पूजा जाता है। बाणासुर नामक असुर ये वरदान लिया था की उसका वध कन्या के हाथों हो और इसी वजह से माँ को आजीवन कन्या रूप में ही रहना पड़ा।

हमने रामेश्वरम दर्शन के साथ ही कन्याकुमारी और मदुरै मिनाक्षी देवी दर्शन एक साथ ही प्लान किया था और तीनों शहर तमिलनाडु राज्य में होने की वजह से ज्यादातर लोग ऐसे ही प्लान करते हैं और वाया रोड ही प्राकृतिक दृश्यों को आँखों में कैद करते हुए चैन की साँस लेते हुए जो सुकून मिला वो शब्दों में नहीं लिखा जा सकता

दूर-दूर तक फैले समुद्र के विशाल लहरों के बीच कन्याकुमारी का सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा बेहद आकर्षक लगता हैं। समुद्र बीच पर फैली रंग बिरंगी रेतें इसकी सुंदरता में को अत्यधिक लुभावनी बना देती हैं। अगर आप कन्याकुमारी की सैर करने की योजना बना रहे हैं तो हम आपको बताने जा रहे हैं कि कन्याकुमारी में देखने योग्य कौन कौन से पर्यटन स्थल हैं।

1. कन्याकुमारी बीच देखने योग्य पर्यटन स्थल

कन्याकुमारी बीच सैर सपाटा करने के अलावा एक धार्मिक स्थल भी है जो प्रायद्वीपीय भारत के सबसे दक्षिणी सिरे पर स्थित है। कन्याकुमारी समुद्र  तट पर सूर्यउदय (sun rise) और सूर्यास्त (sun set) का नजारा अद्भुत होता है। इसे देखने के लिए विशेषरूप से चैत्र पूर्णिमा(अप्रैल माह की पूर्णिमा) पर लोगों की भारी भीड़  लगती है। कन्याकुमारी बीच एक चट्टानी समुद्र तट है और इस समुद्र में तीन सागरों अरब सागर, बंगाल की खाड़ी और हिंद महासागर का जल मिलता है। यह बीच रंग बिरंगी और मुलायम रेतों के लिए प्रसिद्ध है।

 

 कन्याकुमारी मंदिर लोगों के आकर्षण का केंद्र –

 

कन्याकुमारी मंदिर इस शहर का मुख्य आकर्षण है। इसे कन्याकुमारी भगवतीअम्मन (Kanyakumari Bhagavathiamman) मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। कुमारी अम्मन मंदिर मूल रूप से 8 वीं शताब्दी में पंड्या राजवंश के राजाओं द्वारा बनाया गया था। बाद में इसे चोल, विजयनगर और नायक शासकों द्वारा पुनर्निर्मित किया गया था। किंवदंतियों के अनुसार, देवी कन्याकुमारी और भगवान शिव के बीच विवाह नहीं हुआ था, जिसके परिणामस्वरूप देवी ने कुंवारी रहने का दृढ़ संकल्प लिया था। ऐसा माना जाता है कि शादी के लिए जो चावल और अनाज थे, वे बिना पके रह गए और वे पत्थरों में बदल गए। अनाज से मिलते जुलते पत्थर आज भी देखे जा सकते हैं।

 कन्याकुमारी का मुख्य पर्यटन स्थल विवेकानन्द स्मारक शिला

कन्याकुमारी भारत आकर्षक स्थल विवेकानन्द स्मारक शिला, रामकृष्ण मिशन के संस्थापक श्री रामकृष्ण परमहंस के शिष्य, स्वामी विवेकानंद को समर्पित है। विवेकानंद रॉक मेमोरियल 1963 और 1970 के बीच लाल और नीले ग्रेनाइट में बनाया गया था। विवेकानंद रॉक मेमोरियल में दो मुख्य संरचनाएँ हैं – विवेकानंद मंडपम और श्रीपाद मंडपम। श्रीपाद मंडपम, श्रीपाद पराई( Shripada Parai) पर स्थित है जिसके ऊपर कन्याकुमारी देवी का पदचिह्न है। माना जाता है कि स्वामी विवेकानंद यहां मेडिटेशन करते थे।

विवेकानंद रॉक मेमोरियल का प्रवेश शुल्क और समयविवेकानंद मेमोरियल रॉक का प्रवेश शुल्क प्रति व्यक्ति 20 रुपये है। इसके अलावा, मुख्य भूमि से चट्टानों तक की फेरी का शुल्क प्रति व्यक्ति केवल 50 रुपये है। यदि आप फेरी बुकिंग में कतार से बचना चाहते हैं, तो आप 200 रुपये प्रति व्यक्ति का विशेष टिकट खरीद सकते हैं जिसमें कोई प्रतीक्षा समय नहीं है।

विवेकानंद रॉक मेमोरियल के खुलने का समय सुबह 8 बजे से शाम 4 बजे तक है।विवेकानंद रॉक मेमोरियल, कन्याकुमारी तक पहुंचनाविवेकानंद रॉक मेमोरियल तक पहुंचना कोई कठिन कार्य नहीं है क्योंकि यह जमीन से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। वहाँ कई फेरी सेवाएँ हैं जो द्वीप और मुख्य भूमि के बीच न्यूनतम शुल्क पर चलती हैं। फेरी सेवाएँ सामान्यतः सुबह 8 बजे से शाम 4 बजे तक संचालित होती हैं।एक और लोकप्रिय पर्यटन स्थल, संत थिरुवल्लुवर की प्रतिमा महान तमिल कवि संत थिरुवल्लुवर को समर्पित है, जो भी पास में स्थित है। विवेकानंद रॉक मेमोरियल के लिए फेरी सेवा थिरुवल्लुवर की प्रतिमा पर थोड़ी देर रुकती है और पर्यटक अक्सर दोनों जगहों पर जाने का संयोजन करते हैं।

 

 कन्याकुमारी में घूमने लायक जगह पद्मानाभपुरम महल –

कन्याकुमारी का पद्मनाभपुरम पैलेस तमिलनाडु के प्रमुख आकर्षणों में से एक है। पद्मनाभपुरम पैलेस, कन्याकुमारी जिले के पद्मनाभपुरम गाँव में, ठाकले के पास, नागरकोइल से लगभग 15 किमी और तिरुवनंतपुरम से 55 किमी की दूरी पर स्थित है। पद्मनाभपुरम पैलेस दुनिया के शीर्ष दस महलों में से एक है। पद्मनाभपुरम पैलेस 6 एकड़ में फैला है और पश्चिमी घाट के वेलि हिल्स की तलहटी में स्थित है। पद्मनाभपुरम पैलेस ज्यादातर लकड़ी से बना है जो केरल की पारंपरिक वास्तुकला शैली को प्रदर्शित करता है। जब भी आप कन्याकुमारी में घूमने आयें तो इसे जरुर देखें।

यहां आकर उस समय की वस्तु कला शैली की अनूठी पेशकश से हम वास्तव में स्तब्ध थे। यहां आकर पता चला यहां स्त्रीसत्ता ही चलती थी और यहां के नरेश ने खुद विवाह नहीं किया था तो उनके बाद यहां की सत्ता उनकी बहन और भांजे के हाथ में चली गई।
महल बहुत बड़ा है और आपको बीच में कही विश्राम के लिए बैठने की अनुमति नहीं है तो आपके साथ अगर बुजुर्ग या ऐसे लोग हैं जो ज्यादा चल नहीं सकते उनका टिकट न ही लें तो ज्यादा अच्छा है बाहर स्क्रीन पर भी पूरा महल दिखाया जाता है उसके द्वारा भी विजूअल भ्रमण किया जा सकता है। चूँकि यह तमिलनाडु पर्यटन के अंदर आता है तो यहां प्रवेश शुल्क 50 rs प्रति व्यक्ति है।

थिरपराप्पू वॉटरफॉल

थिरपराप्पू जलप्रपात कोड्यार नदी से निकला हुआ है और यह एक बेहतरीन पिकनिक स्पॉट है यह कन्याकुमारी से लगभग 50 km दूर है और बस या टैक्सी से यहां आराम से पहुंचा जा सकता है। यहां पुरुषो और महिलाओं के स्नान के लिए अलग अलग स्पॉट बनाए गए हैं जो स्त्रियों की सुरक्षा की दृष्टि से एक अच्छी व्यवस्था है। साफ सफाई की भी समुचित व्यवस्था है साथ ही साथ बोटिंग के लिए भी अच्छा इंतज़ाम मिलेगा।

 

माथुर हैंगिंग ब्रिज

कन्याकुमारी ट्रिप का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माथुर हैंगिंग ब्रिज है जो 115 feet की ऊंचाई पर 1 km की लम्बाई के साथ है यह एशिया का सबसे लम्बा हैंगिंग ब्रिज माना जाता है यहां से नीचे का दृश्य अत्यंत मनोरम और साँस रोक देने वाला है कुछ देर के लिए आप सब कुछ भूल सकते हैं।

 

 कन्याकुमारी कब जाएँ

कन्याकुमारी जाने के लिए सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च है

. कन्याकुमारी कैसे पहुंचे –

कन्याकुमारी का सबसे निकटतम हवाई अड्डा त्रिवेंद्रम अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है जो कन्याकुमारी से 67 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। भारत के प्रमुख शहरों के साथ कुछ खाड़ी देशों से भी वायुमार्ग द्वारा अच्छी तरह जुड़ा है। इस हवाई अड्डे तक पहुंचने के लिए भारत की कई प्रमुख एयरलाइंस सुविधा मौजूद है। इसके अलावा कन्याकुमारी के लिए तमिलनाडु, चेन्नई,त्रिवेंद्रम और बैंगलोर से कन्याकुमारी रोड ट्रांसपोर्ट की कई बसें चलती हैं जिसके माध्यम से आप यहां पहुंच सकते हैं। इसके साथ ही आप मुंबई और बैंगलोर से कन्याकुमारी एक्सप्रेस से भी यहां आ सकते हैं। कन्याकुमारी एक प्रमुख रेलवे स्टेशन है जहां पहुंचने के बाद आप कन्याकुमारी शहर जाने के लिए टैक्सी ले सकते हैं।

 

कन्याकुमारी भ्रमण के बाद हम निकले तिरुअनंतपुरम के लिए और वहां की जानकारी के लिए आपको मेरा नेक्स्ट ब्लॉग आपको जरूर देखना चाहिए।

Romantic comedy movie jisne cinema ke bad ott pr bhi dhoom machai hai रोमांटिक कॉमेडी फिल्म जिसने सिनेमा के बाद ओटीटी पर भी धूम मचाई है

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अमेज़न प्राइम पर हाल ही में एक मूवी रिलीज़ हुई जो सिनेमा में तो मई से ही चल रही थी लेकिन ओ टी टी पर अब आई लेकिन कहते हैं न इंतज़ार का फल मीठा होता है वैसे ही छुट्टियों के सीजन में यह मूवी भी मिठास लेकर आई है जो बेरोजगार युवा का दुःख दिखाने के साथ ही साथ हमारे समाज में सरकारी नौकरी के लिए कितनी मारा मारी है है ये भी दर्शाती है। एक सरकारी नौकरी किसी की शादी का सवाल हो सकती है तो किसी की जान की कीमत भी।
ज्यादा सस्पेंस न बनाते हुए हम मूवी का नाम बता ही देते हैं ये मूवी है भूल चूक माफ । राजकुमार राओ,वामिका गब्बी, रघुबीर यादव ,संजय मिश्रा ,सीमा पाहवा और ज़ाकिर हुसैन जैसे कलाकारों से सजी ये मूवी आपको आखिरी तक बांधे रखेगी।
कहानी है बाबा विश्वनाथ की नगरी बनारस से जहा २ प्रेमी युगल रंजन और तितली शादी करने के लिए इतने बेकरार हैं की घर से भागने के इरादे से निकलते तो हैं लेकिन घर वालो का ध्यान आते ही लौट भी आते हैं। लेकिन तब तक मामला पुलिस थाने में जा चूका होता हैं और वहां पर सेटलमेंट होता है की अगर २ महीने में रंजन की सरकारी नौकरी लग जाती है तो ये शादी होगी अन्यथा तितली को घर वालो की मर्ज़ी से अपना फूल चुनना होगा। यहां फूल का मतलब जीवन साथी से है। अब भारत में सरकारी नौकरी और बेरोजगार का साथ तो टॉम एंड ज़ेर्री के रिश्ते जैसा है दौड़ता तो बहुत है लेकिन हाथ कुछ नहीं आता और उसमे भी २ महीने की समय बाध्यता ये तो वैसे ही हुआ जैसे एक तो करेला दूजे नीम चढ़ा।रंजन बाबू पहले भोलेनाथ के पास पहुँचते हैं उनको किसी ने बताया की मन्नत मांगने से काम पूरा होता है लेकिन उन्हें समझ ही नहीं आया की मन्नत में क्या माँगा जाय तो एक पंडित जी से मिलते हैं और उनके परामर्श अनुसार कुछ भलाई का काम करने की मन्नत मांगकर चले आते हैं। ऐसे में सब कुछ कर चुकने के बाद रंजन बाबू को घोड़ी चढ़ने का एक ही रास्ता नज़र आता है वो है जुगाड़।
कुछ ले दे कर मामला सेटल किया जाय लेकिन उसके लिए भी कोई ईमानदार इंसान चाहिए जो बेईमानी का काम ईमानदारी से करवा सके ।

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हां पर एंट्री होती है भगवान दास की,नाम से कंफ्यूज मत होइएगा, ये भगवान वास्तव में एक इंसान हैं जो बेरोजगारों के लिए भगवान का काम कर रहे सरकारी नौकरी लगवाने का वो भी पैसे का चढ़ावा लेकर । तो बात सेट होती है 2 लाख एडवांस और बाकि नौकरी लगने के बाद। लेकिन बेरोजगार युवा 2 लाख भी कहाँ से लाये। ऐसे में फिर तितली जी प्रेम में अंधी होकर माँ का हर गिरवि रखती हैं और अपनी शादी का रास्ता खोलती हैं।नौकरी फिक्स होते ही शादी की तारिख ३० निकाल दी जाती है

लेकिन यहां आता है कॉमेडी का तड़का जिसमे रंजन 29 में ही अटका। कहानी का ट्विस्ट और सामाजिक सन्देश लिए हुए भाग अब शुरू होता है जहाँ रंजन एक युवा को डूबने से बचाकर किनारे लाता है और उस से बात करके उसको समझ आता है की जो नौकरी उसके लिए सिर्फ छोकरी तक पहुँचने का जरिया थी वो किसी की ज़िंदगी और मौत का सवाल है और इससे भी बड़ा झटका तब लगता है जब भगवान दास ये बताते हैं की ये वही कैंडिडेट हैं जिसका नाम हटाकर रंजन की नौकरी फिक्स हुई है।

अब सब कुछ जानते हुए भी रंजन चुपचाप घोड़ी चढ़कर अपनी सरकारी नौकरी के साथ छोकरी वाला रास्ता चुनेगा या किसी बेकसूर की जान बचाकर उसका हक़ वापस देकर एक सभ्य संस्कारी और ज़िम्मेदार नागरिक होने का कर्तव्य निभाएगा जिसमे वो खाली हाथ रह जाए इसके चांस बहुत ज्यादा हैं। ये आपको मूवी देखकर ही पता चलेगा।

जगन्नाथ पुरी ; धरती का वैकुण्ठ

जगन्नाथ का शाब्दिक अर्थ जगत यानि दुनिया के नाथ यानि मालिक। उड़ीसा का यह शहर हिन्दू धर्म के देवता भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है। यहां पर भगवान के दर्शन भी हिन्दुओं को ही मिलता है। इस मंदिर को हिन्दुओं के चार धाम में शामिल किया गया है। भारत के चार दिशाओं में चार धाम हैं उत्तर में बद्रीनाथ,पश्चिम में द्वारका, पूर्व में जगन्नाथ और दक्षिण में रामेश्वरम ये चारधाम हैं

इस वर्ष हमे यहां दर्शन करने का अवसर मिला तो मै आपसे यहां का अनुभव साझा करने आ गई। पुरी जाने के लिए अच्छी अच्छी ट्रैन हैं जो भारत के हर शहर से सीधे आपको पुरी पहुंचाएंगे मैं भी दिल्ली से ट्रैन द्वारा जगन्नाथ धाम पहुंची। रास्ते में बहुत ही बढ़िया प्राकृतिक दृश्य हमे अभिभूत कर रहे थे। जब हम दिल्ली से निकले थे तो दिल्ली में हद कंपाने वाली जनवरी की ठंडी अपने प्रचंड रूप में डरा रही थी लेकिन ओडिसा में मौसम बहुत सुहाना था।

पुराणों में इसे धरती का वैकुंठ कहा गया है। इस मंदिर का वार्षिक रथ यात्रा उत्सव प्रसिद्ध है। इसमें मंदिर के तीनों मुख्य देवता, भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भ्राता बलभद्र और भगिनी सुभद्रा तीनों, तीन अलग-अलग भव्य और सुसज्जित रथों में विराजमान होकर नगर की यात्रा को निकलते हैं।

जगन्नाथ धाम के रोचक तथ्य

1). पुरी में किसी भी स्थान से आप मंदिर के शीर्ष पर लगे सुदर्शन चक्र को देखेंगे तो वह आपको सदैव अपने सामने ही लगा दिखेगा।

2). सामान्य दिनों के समय हवा समुद्र से जमीन की तरफ आती है और शाम के दौरान इसके विपरीत, लेकिन पुरी में इसका उल्टा होता है।

3). मंदिर के ऊपर स्थापित ध्वज सदैव हवा के विपरीत दिशा में लहराता है।

4). पक्षी या विमानों को मंदिर के ऊपर उड़ते हुए नहीं पाएंगे।

5). मुख्य गुंबद की छाया दिन के किसी भी समय अदृश्य ही रहती है।

6). मंदिर के अंदर पकाने के लिए भोजन की मात्रा पूरे वर्ष के लिए रहती है। प्रसाद की एक भी मात्रा कभी भी व्यर्थ नहीं जाती, लाखों लोगों तक को खिला सकते हैं।

7). मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए 7 बर्तन एक-दूसरे पर रखे जाते हैं और सब कुछ लकड़ी पर ही पकाया जाता है। इस प्रक्रिया में शीर्ष बर्तन में सामग्री पहले पकती है फिर क्रमश: नीचे की तरफ एक के बाद एक पकती जाती है।

8). मंदिर के सिंहद्वार में पहला कदम प्रवेश करने पर ही (मंदिर के अंदर से) आप सागर द्वारा निर्मित किसी भी ध्वनि को नहीं सुन सकते। आप (मंदिर के बाहर से) एक ही कदम को पार करें, तब आप इसे सुन सकते हैं। इसे शाम को स्पष्ट रूप से अनुभव किया जा सकता है।

9). एक पुजारी मंदिर के 45 मंजिला शिखर पर स्थित झंडे को रोज बदलता है। ऐसी मान्यता है कि अगर एक दिन भी झंडा नहीं बदला गया तो मंदिर 18 वर्षों के लिए बंद हो जाएगा।

 

भगवान से भक्त का मिलन हमेशा से अद्भुत रहता है अच्छी खासी भीड़ के बावजूद हमे ज्यादा इंतज़ार नहीं करना पड़ा भक्तजनों को रेलिंग में लाइन लगाकर खड़े रहने के साथ बैठने की भी व्यवस्था थी। आजकल सबकी दुनिया मोबाइल और गैजेट में सिमट गई है इसलिए यहां मंदिर में घुसने से पहले ही मोबाइल इत्यादि रखवा लेते हैं ताकि आप इत्मीनान से दर्शन करिये और कोई विकर्षण न हो । मंदिर प्रांगण में बहुत ही सुकून और भक्तिमय माहौल था। दिल्ली से ओडिशा तक के सफर की सारी थकान मात्र दर्शन से खत्म हो गई।

जगन्नाथ मंदिर से जुड़ी एक बेहद रहस्यमय कहानी प्रचलित है, जिसके अनुसार मंदिर में मौजूद भगवान जगन्नाथ की मूर्ति के भीतर स्वयं ब्रह्मा विराजमान हैं। ब्रह्मा कृष्ण के नश्वर शरीर में विराजमान थे और जब कृष्ण की मृत्यु हुई तब पांडवों ने उनके शरीर का दाह-संस्कार कर दिया लेकिन कृष्ण का दिल (पिंड) जलता ही रहा। ईश्वर के आदेशानुसार पिंड को पांडवों ने जल में प्रवाहित कर दिया। उस पिंड ने लट्ठे का रूप ले लिया। राजा इन्द्रद्युम्न, जो कि भगवान जगन्नाथ के भक्त थे, को यह लट्ठा मिला और उन्होंने इसे जगन्नाथ की मूर्ति के भीतर स्थापित कर दिया। उस दिन से लेकर आज तक वह लट्ठा भगवान जगन्नाथ की मूर्ति के भीतर है। हर 12 वर्ष के अंतराल के बाद जगन्नाथ की मूर्ति बदलती है लेकिन यह लट्ठा उसी में रहता है।

इस लकड़ी के लट्ठे से एक हैरान करने वाली बात यह भी है कि यह मूर्ति हर 12 साल में एक बार बदलती तो है लेकिन लट्ठे को आज तक किसी ने नहीं देखा। मंदिर के पुजारी जो इस मूर्ति को बदलते हैं, उनका कहना है कि उनकी आंखों पर पट्टी बांध दी जाती है और हाथ पर कपड़ा ढक दिया जाता है। इसलिए वे ना तो उस लट्ठे को देख पाए हैं और ही छूकर महसूस कर पाए हैं। पुजारियों के अनुसार वह लट्ठा इतना सॉफ्ट होता है मानो कोई खरगोश उनके हाथ में फुदक रहा है।

पुजारियों का ऐसा मानना है कि अगर कोई व्यक्ति इस मूर्ति के भीतर छिपे ब्रह्मा को देख लेगा तो उसकी मृत्यु हो जाएगी। इसी वजह से जिस दिन जगन्नाथ की मूर्ति बदली जानी होती है, उड़ीसा सरकार द्वारा पूरे शहर की बिजली बाधित कर दी जाती है। यह बात आज तक एक रहस्य ही है कि क्या वाकई भगवान जगन्नाथ की मूर्ति में ब्रह्मा का वास है।

रथयात्रा का इतिहास – History of Rath Yatra in Hindi

पौराणिक मान्यता है कि द्वारका में एक बार श्री सुभद्रा जी ने नगर देखना चाहा, तब भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें रथ पर बैठाकर नगर का भ्रमण कराया। इसी घटना की याद में हर साल तीनों देवों को रथ पर बैठाकर नगर के दर्शन कराए जाते हैं। रथयात्रा से जुड़ी कई अन्य रोचक कथाएं भी हैं जिनमें से एक जगन्नाथ जी, बलराम जी और सुभद्रा जी की अपूर्ण मूर्तियों से भी संबंधित हैं।

रथ यात्रा यहां का विशेष पर्व है और यह प्रतिवर्ष जून या जुलाई के महीने में जो की हिंदी केलिन्डर के हिसाब से आषाढ़ का महीना होता है शुक्ल पक्ष में यह मनाया जाता है। वापस आकर स्नान करने के बाद प्रभु को जुकाम हो जाता है तो १४ दिन का कोरेन्टीन रखने का रिवाज़ सदियों से चला आ रहा जो हमने कोरोना काल में जाना। कोरोना के बचाव के लिए काढ़ा पीने की सलाह दी जाती थी वो भी प्रभु के लिए पहले से ही किया जाता रहा है। कुल मिलाकर प्रभु जगन्नाथ को जीवित मानकर उनकी खाने पीने की व्यवस्था से लेकर अस्वस्थ होने पर भी वैसे ही देखभाल की जाती है और प्रत्येक कार्य के लिए अलग अलग पुजारी नियुक्त हैं।

भगवन जगन्नाथ के दर्शन के उपरान्त हम समुद्र तट पर पहुंचे। पूरी समुद्र के किनारे ही बसा हुआ है यहां सड़क से लगा हुआ समुद्र तट है अगर आप सड़क मार्ग से यात्रा कर रहे हैं तो ओडिशा की पारम्परिक शैली और रहन सहन आपको मंत्रमुग्ध कर देगा।

शाम को हम यहां के लोकल मार्किट में भी निकले शीप और शंख से बनी हुई बहुत सी चीजें आपको आकर्षित करेंगी हमने भी कुछ खरीददारी की और फिर होटल में वापस आ गए।

पुरी आएं तो कम से कम 4, 5 दिन लेकर आएं क्यूंकि यहां से लगभग 40 km की दुरी पर चिलिका झील है जो भारत की सबसे बड़ी खारे पानी की झील है और यहां भी काफी आकर्षण है साथ ही साथ लगभग 60 km की दूरी पर भुबनेश्वर है जो यहां की राजधानी होने के साथ ही साथ काफी ऐतिहासिक और पौराणिक जगहें भी हैं जैसे लिंगराज मंदिर,कोणार्क मंदिर , खंडगिरि और उदयगिरि की गुफाएं। इन सबको हम अपने अगले ब्लॉग में लेकर आएँगे। आप इस ब्लॉग को भी पहले वाले ब्लोग्स की तरह ही प्यार और अपनी राय जरूर रखियेगा तब तक के लिए जय जगन्नाथ।