वाराणसी शहर, उत्तर प्रदेश का एक महत्व्पुण जिला है जो दुनिया में सबसे प्राचीन और निरंतर आगे बढ़ने वाले शहरो में से एक है। इस शहर का नाम, वरुणा और असी दो नदियों के संगम पर है। इसको बनारस और काशी के नाम से भी जाना जाता है। तो आइये आज कुछ रोचक बातें वाराणसी शहर की कर लेते हैं ।
वाराणसी, हिंदू धर्म के सबसे पवित्रतम शहरों में से एक है। इस शहर को लेकर हिंदू धर्म में बड़ी मान्यता है कि अगर कोई व्यक्ति यहां आकर मर जाता है या काशी में उसका अंतिम सस्ंकार हो, तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है यानि उस व्यक्ति को जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। इसीलिए, इस जगह को मुक्ति स्थल भी कहा जाता है।
यहां के मणिकर्णिका घाट पर कई शवों का एकसाथ अंतिम संस्कार होते हुए देखा जा सकता है । पहले राख और अस्थियों का विसर्जन गंगा नदी में कर दिया जाता था किंतु अभी नदी को साफ रखने के लिये कुछ सरकारी नियम बने हैं। ऐसा उचित भी हैं क्योंकि वाराणसी के बारे में लोगों का अटूट विश्वास है कि यहां बहने वाली पवित्र और निर्मल गंगा नदी में यदि डुबकी लगा ली जाएं तो सारे पाप धुल जाते है। कई पर्यटकों के लिए, गंगा नदी में सूर्योदय और सूर्यास्त के समय डुबकी लगाना एक अनोखा और यादगार अनुभव होता है।
वाराणसी शहर का दिलचस्प पहलू यहां स्थित कई घाट है और मुख्य घाटों पर हर शाम को आरती ( प्रार्थना ) का आयोजन होना है। इन घाटों से सीढि़यों से उतर कर गंगा नदी में नौकाविहार और बोट में आरती देखना पर्यटकों के लिए अविस्यमरिय अनुभव हैं। इन सभी घाटों में से कुछ घाट काफी विख्यात हैं जिनमें दशाश्वमेध प्रचलित घाट है, यहां हर सुबह और शाम को भव्य आरती का आयोजन किया जाता है।
इसके अलावा दरभंगा घाट, हनुमान घाट और मैन मंदिर घाट भी प्रमुख है। यहां के तुलसी घाट, हरिश्चंद्र घाट, शिवाला घाट और अत्यधिक प्रकाशित केदार घाट भी किसी परिचय के मोहताज नहीं है। यहां के अस्सी घाट में सबसे ज्यादा होटल और रेस्टोरेंट है।
वाराणसी शहर और आसपास के इलाकों में पूरी तरह से धार्मिक रंग में रंगे हुए है और पर्यटन स्थलो क़े रूप में प्रसिध्य है। भगवान शिव, हिंदुओं के प्रमुख देवता है जिन्हे सृजन और विनाश का प्रतीक माना जाता है, उन्हीं भगवान शिवं का मुख्य ज्योतिर्लिंग मंदिर काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी में ही हैं । इस शहर को भगवान शिव की नगरी भी कहा जाता है।
काशी विश्वनाथ मंदिर के अलावा यहां नया काशी विश्वनाथ मंदिर भी है जो वाराणसी के बीएचयू परिसर में बना हुआ है। इसके अलावा, यहां कई उल्लेखनीय मंदिर जैसे तुलसी मानस मंदिर और दुर्गा मंदिर भी है।
यहां मुस्लिम धर्म का प्रतिनिधित्व करने वाली आलमगीर मस्जिद है जबकि जैन भक्त, जैन मंदिर में शांति के लिए जाते है।
सारनाथ
विश्व भर में बौद्ध धर्म के बेहद श्रद्धेय तीर्थस्थलों में एक सारनाथ, वाराणसी से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि निर्वाण प्राप्ति के पश्चात् भगवान बुद्ध ने अपना पहला उपदेश यहीं पर दिया था, जो महाधर्म चक्र परिवर्तन सूत्र के नाम से पावन स्थली के रूप में विख्यात हुआ। सारनाथ में अनेक भवन बने हुए हैं जैसे धमेख स्तूप व चौखंडी स्तूप, जहां पर भगवान बुद्ध अपने पांच शिष्यों से मिले थे और मुलगंध कुट्टी विहार स्थित है। दुनिया में ऐसे अनेक देश हैं जहां बौद्ध मुख्य धर्म है, उन्होंने अपने देशों की विशिष्ट स्थापत्य शैली में सारनाथ में मंदिर व मठों का निर्माण किया है। यहां के बेहद लोकप्रिय आध्यात्मिक स्थलों में थाई मठ तथा बुद्ध की प्रतिमा भी है, जो चौखंडी स्तूप से दिखाई देते हैं। चौखंडी स्तूप वाराणसी से 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह धर्म चक्र स्तूप भी कहलाता है।
पर्यट्क, मंदिर के बाहर हरे-भरे बगीचे में सुकून से बैठकर अथवा ध्यान लगाकर मंदिर से उत्पन्न होने वाले आध्यात्मिक भावों के भवसागर में डुबकी लगा सकते हैं।
सारनाथ में अन्य लोकप्रिय आकर्षणों के अलावा धातु से बना एक स्तंभ भी है, जिसकी स्थापना सम्राट अशोक ने 272-273 ईसा पूर्व में की थी। यह बौद्ध संघ की नींव को चिन्हित करता है। यह स्तंभ 50 मीटर ऊंचा है तथा इसके शिखर पर चार सिंह की मूर्तियां विद्यमान हैं, जो सिंह चतुर्थमुख कहलाती हैं। भारतीय गणराज्य का प्रतीक यही से लिया गया हैं। इन चारों सिंह के नीचे, चार अन्य पशु – बैल, सिंह, हाथी तथा अश्व बने हुए हैं। ये भगवान बुद्ध के जीवन के विभिन्न चरणों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
सारनाथ जैनियों के 11वें तीर्थंकर की भी जन्मस्थली है, इस कारण से यह स्थल जैनियों के लिए सम्मानजनक माना जाता है।
धार्मिक स्थलों के अलावा, वाराणसी में नदी के दूसरी तरफ राम नगर किला है और जंतर – मंतर है जो कि एक वेधशाला है। इस शहर में वाराणसी हिंदू विश्वविद्यालय भी स्थित है जिसका परिसर बेहद शांतिपूर्ण वातावरण में बना है। वाराणसी के कुछ आकर्षणों में नया विश्वनाथ मंदिर, बटुक भैरव मंदिर, सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हाईयर तिब्बती स्टडी, नेपाली मंदिर, ज्ञान वापी वेल, संकटमोचन हनुमान मंदिर, भारतमाता मंदिर आदि भी हैं।
यह शहर शास्त्रीय संगीत और नृत्य के लिए जाना जाता है। बनारस घराना भारतीय तबला वादन की छह सबसे आम शैलियों में से एक है।
वाराणसी अपने लज़ीज़ स्ट्रीट फूड्स के लिये भी काफी मशहूर है। यहाँ की कचौरी, टमाटर चाट, आलू चाट शुध्द देशी स्टाइल में साथ ही साथ लस्सी और पान का तो जवाब ही नहीं। भारतीय परम्परागत बनारसी साड़ी के बिना शायद ही कोई शादी विवाह सम्पन्न हो पाता हो।
वाराणसी कैसे पहुंचे
वाराणसी तक एयर द्वारा, ट्रेन द्वारा और सड़क मार्ग से आसानी से पहुंच सकते है। वाराणसी सड़क मार्ग वाराणसी के लिए राज्य के कई शहरों जैसे – लखनऊ( 8 घंटे ), कानपुर ( 9 घंटे ) और प्रयागराज ( 3 घंटे ) आदि से बसें आसानी से मिल जाती है। वाराणसी की यात्रा बस से करना थोड़ा सा असुविधानजक हो सकता है, रेल या फ्लाइट, वाराणसी जाने का सबसे अच्छा साधन है। ट्रेन द्वारा वाराणसी में दो रेलवे जंक्शन है : 1) वाराणसी जंक्शन और 2) मुगल सराय जंक्शन। यह दोनो रेलवे जंक्शन शहर से पूर्व की ओर 15 किमी. की दूरी पर स्थित है। नया बनारस रेलवे स्टेशन ( मंडुआडीह रेलवे स्टेशन) भी एक विश्वस्तरीय स्टेशन है, जिसे भारतीय रेलवे (IR) में हवाई अड्डे की शैली में, एक मॉडल रेलवे स्टेशन के रुप मे विकसित किया है । इन रेलवे स्टेशनों से दिल्ली, आगरा, लखनऊ, मुम्बई और कोलकाता के लिए दिन में कई ट्रेन आसानी से मिल जाती है। वाराणसी में लाल-बहादुर शास्त्री अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा देश के कई शहरों जैसे – दिल्ली, लखनऊ, मुम्बई, खजुराहो और कोलकाता आदि से सीधी एयर उड़ानों के द्वारा जुड़ा है।
तो अगली बार जब आप परिवार के साथ अपनी अगली यात्रा के बारे में सोचें, तो आध्यात्मिक ज्ञान के साथ फुरसत के समय का आनंद लेने के लिए वाराणसी के पवित्र शहर की यात्रा का विचार करना न भूलें। कृपया पोस्ट के बारे में अपने विचार साझा करें और पोस्ट पढ़ने के लिए धन्यवाद।
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