पहली बारिश में कागज की कश्ती न चलाई हो तो कहना
फूल गुलाब का किताबों में न छिपाया हो तो कहना
बचपन में तितलियों के पीछे न भागे हो तो कहना
छुई मुई के पौधों से शरारत न की हो तो कहना
कच्ची इमली और कैरी बड़ों से छिपकर न खाई हो तो कहना
बार-बार उसी बात पर डांट खाकर भी वही गलती न की हो तो कहना
वो मां की लोरी वो बचपन के खेल
वो पापा की डांट वो पोसम पा की जेल
हम तो आगे निकल गए यादें पीछे रह गई
आज मुड़ कर देखा तो पाया कितना कुछ बदल गया
काश हम वापस वो लम्हें जी पाते
जहाँ बड़े होने की कोई जल्दी न होती और न होती आज की भागमभाग
चाहे कुछ भी हो जाए अपने अन्दर के बच्चे को बचाए रखना
पुरानी डायरी आज भी आंख गीली न कर जाए तो कहना