अगर आप इस वीकेंड में साफ़ सुथरी और पारिवारिक वेब सीरीज देखना चाहते हैं तो ग्राम चिकित्सालय जरूर देखे। गांव की साफ़ सुथरी और भोली जनता को कैसे बेवकूफ बनाया जा रहा है और सरकार की लाख कोशिशों के बाद भी विकास पूरी तरह गांव में फलीभूत क्यों नहीं हो रहा है ये सीरीज देखकर काफी कुछ समझ में आ जाता है। कहानी है एक सरकारी डॉक्टर की जिसने स्वेच्छा से गांव में पोस्टिंग ली है ताकि वो भी गांव में क्रांति लाने में योगदान दे सके । दिल्ली में पिताजी का अच्छा हॉस्पिटल छोड़कर देश बदलने की ख्वाहिश लेकर ये टॉप कॉलेज के पढ़े हुए ये डा जब गांव पहुंचे तो इन्हे क्या क्या संघर्ष करना पड़ा। ये देखना वाकई आपको अपनी सीट से बांधकर रखे रहने का काम करेगी। अगर आपने अपनी जिंदगी में लम्बा संघर्ष किया है और आप अभी भी किसी सपने में जी रहे हैं तो आप अपने आप को इन डाक्टर साहब में जरूर देखेंगे। गांव में फैला भ्रष्टाचार और यहां की लोकल राजनीती में फसने के बाद डॉक्टर साहब को बुद्धि आती है और वो अपने अटल इच्छाशक्ति और दृढ निश्चय के साथ इस गांव में टिकने में सफल हो जाते हैं जबकि इस से पहले वाले सारे मेडिकल ऑफिसर्स गांव तक नहीं गए तो चिकित्सालय देखना तो दूर की बात है। पेपर्स पर अपनी अटेंडेंस लगवाकर और गांव में भेजी गई दवाइयों को कम्पाउंडर द्वारा बेचवाकर अपना कमीशन लेकर मस्त रहे।
अगर आपने पंचायत देखी है और उस से प्रभावित होकर ये सीरीज देखने आए हैं तो ये सीरीज आपको निराश कर सकती है क्यूंकि ग्रामीण पृष्ठभूमि और साफ़ सुथरी सीरीज होकर भी यह पंचायत का टक्कर नहीं ले पाई है। हालाँकि सभी कलाकारों ने अपने रोले के साथ न्याय किया है। खासकर मुख्य किरदार अमोल पराशर ने तो इतना संजीदा अभिनय करके मुझे अचम्भित ही किया है क्यूंकि इससे पहले की इनकी सीरीज में मैंने इनको मस्तमौला और बेपरवाह किरदार करते ही देखा है।
विनय पाठक झोलाछाप डॉक्टर के किरदार में पूरी तरह फिट हैं उन्हें ये मालूम है की उनके पास डिग्री नहीं है लेकिन गांव वालों के भरोसे के साथ ही साथ उनके सुख दुःख में साथ खड़े हैं।
सीरीज की नायिका के लिए ज्यादा काम नहीं हैं। हो सकता है पंचायत सीरीज की नायिका की तरह इसके अगले भाग में उनके लिए खुलकर निखरने का मौका मिले। आनंदेश्वर द्विवेदी जी कम्पाउण्डर के रोल के साथ पूरी तरह न्याय किये हैं साथ ही साथ वार्ड बॉय के रोल में आकाश मखीजा बहुत ही सप्पोर्टिव रोल में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हुए हैं।
नर्स इन्दु के रूप में गरिमा विक्रांत सिंह ने अपने सशक्त किरदार को जीवंत किया है आखिरी के २ एपिसोड में तो मुख्य नायिका वही लगी और अपने अभिनय से दर्शकों को रुला पाने में सक्षम रही। और उनके बेटे के किरदार को सन्तु कुमार ने काफी अच्छा किया है। कहानी थोड़ी भटकती हुई लगी इसलिए सबको आपस में बांधे रखने में सफल होती नहीं दिखी।
कुल मिलाकर सीरीज परिवार के साथ बैठकर एन्जॉय की जा सकती है वैसे भी आजकल पारिवारिक सीरीज और मूवीज बनना बंद हो गई है। अमेज़न प्राइम पर 9
मई को यह रिलीज़ हो चुकी है और इस बार बुद्ध पूर्णिमा की छुट्टी के साथ 3 दिन के वीकेंड को आप इस हल्की फुलकी कॉमेडी सीरीज के साथ एन्जॉय क्र सकते हैं। आपके सुझाव और सराहना की उम्मीद के साथ अपनी लेखनी को यहीं विराम देती हूँ।