कम से कम हम इतने संवेदनहीन तो नहीं हो सकते कि एक गर्भवती बेज़ुबान भूखे प्राणी को अपने क्षणिक मनोरंजन के लिए इस्तेमाल करें और उसको छटपटाता और बिलबिलाता हुआ देखकर भी हमारा खून न खौले तो हम कैसे इंसान हैं। धिक्कार है हमें अपनी मानवता पर।
वहीं दूसरी तरफ जब हमारे लाखों मज़दूर भाई जो अपनी रोज़ी रोटी के लिए शहर पलायन किए थे और उनमें से कितने तो दिहाड़ी वर्ग के थे जिनके पास रहने की भी कोई व्यवस्था नहीं थी। कोई फुटपाथ पर तो कोई अपने रिक्शे पर ही खुले आसमाँ तले गुजर–बसर करता था। उन जिंदगियों को ध्यान में रखे बिना एक दिन ऐलान होता है कि आपके रहने खाने की व्यवस्था की जाएगी और जो जहाँ हैं वहीं रहें। यह व्यवस्था कुछेक मामलों को छोड़ दिया जाए तो सिर्फ कागजों तक ही सीमित होकर रह जाती है। ऐसी विषम परिस्थिति में कुछ दिन तो कोई प्रवास में गुजार सकता है लेकिन जब लॉकडाउन की कोई समय–सीमा ही निश्चित न हो तो वहाँ रहने से अच्छा तो यही है कि अपने गाँव अपनी मिट्टी में समय बिताओ।
ऐसे समय में दो बड़ी तस्वीरें सामने आईं हमारे सोशल मीडिया द्वारा। पहली दिल्ली के आनंद विहार रेलवे स्टेशन पर जहाँ लाखों का हुजूम उमड़ पड़ा था बिना किसी निश्चित सूचना के, कि लॉकडाउन के दौरान उनके जाने की व्यवस्था कैसे और कौन करेगा। ठीक वैसी ही दूसरी तस्वीर आई मुम्बई के दादर रेलवे स्टेशन से, वहाँ भी ऐसी ही स्थिति थी और ऐसी न जाने कितनी तस्वीरें छपती रहीं जिनमें कहीं कोई गर्भवती स्त्री मज़बूरी में अस्पताल नहीं पहुँच पाने की वजह से दम तोड़ दे रही तो कहीं अन्न के एक दाने के लिए मोहताज़ छोटे बच्चे और बुजुर्ग।
इस विपरीत परिस्थिति में समय–समय पर कई सरकारी, गैर सरकारी संस्थाएँ भी इनकी सहायता के लिए आगे आईं लेकिन ज़रूरतमन्दों की संख्या के सामने उनकी संख्या बहुत कम ही रही। कुछ सिने स्टार भी सोशल मीडिया की मदद से आगे आए और मदद भी की। ज़रूरतमन्दों को सहायता मिल रही ये देखकर ही बड़ा सुकून मिलता है, लेकिन ऐसी सोच रखने वाले हमारे समाज में कम ही बचे हैं। आज अगर कोई किसी की मदद कर रहा हो तो उससे खुश होने वाले कम मिलते हैं बल्कि इस मदद में उसका व्यक्तिगत क्या फायदा है, वह किस विशेष जाति–वर्ग का है और सबसे बड़ा ये कि मदद करने वाला व्यक्ति विरोधी पार्टी का चुनावी चेहरा बनने के लिए ही ऐसा कर रहा है, जरूर उस पर किसी पार्टी की छत्रछाया है ऐसा सोचने वाले ज्यादा मिलेंगे और अपनी बात को साबित भी कर लेंगें। बिना ये सोचे–समझे कि अगर वो विरोधी पार्टी का उभरता चेहरा है भी तो उसको उभरने से पहले ही आपने अपने प्रदेश में शान्ति व्यवस्था क्यों नहीं कायम कर ली? उसको उभरने का मौका भी तो आपने ही दिया न।
विपरीत परिस्थितियों में ही हमारी समझदारी, धैर्य और साहस का परीक्षण होता है। हमारा देश ही क्या सम्पूर्ण विश्व एक विषम परिस्थिति से गुज़र रहा है। ऐसे में आपस में लड़ने और दोषारोपण करने की जगह सब एकजुट होकर सामने आई चुनौतियों से सामना करेंगे तभी एक स्वस्थ समाज और समृद्ध देश का सपना पूरा हो पाएगा। राजनीति भी तभी ज़िंदा रहेगी जब लोकतंत्र देश की जनता इस परिस्थिति से सकुशल बाहर निकल पाएगी। इसलिए सभी धैर्य एवं संयम से काम लें और विषम परिस्थिति को अनुकूल बनाने में सहयोग करें।