एक अध्ययन से पता चलता है कि बच्चों की पसंद और उनके सवाल उनके आसपास के वातावरण और उनका समय किस उम्र के लोगों के साथ बीत रहा उस पर ही निर्भर करता है। अगर बच्चा अकेले या अपने हमउम्र बच्चों के साथ होगा तो उसको नए परीक्षण करने में ज्यादा रुचि होगी। उसके परीक्षण ज्यादातर उन बातों पर होंगे जिनके लिए उसको बड़े लोगों से डांट पड़ती होगी या मना किया जाता होगा। जैसे कि मिट्टी या रेत मुंह मे डालकर उसका स्वाद लेना या कोई खिलौना जो आवाज़ करता हो उसका एक–एक भाग खोलकर अलग करना और देखना की वास्तव में उसके अंदर क्या है या फिर कोई इलेक्ट्रिक या आग वाली वस्तु से खेलने की कोशिश करना कि आखिर क्यूँ मम्मी–पापा उससे दूर रहने को बोलते हैं ये कुछ ऐसे काम हैं जो हर बच्चा खुद करके देखना चाहता है।
आज की भागम–भाग ज़िंदगी में बच्चे वास्तविकता से दूर होते जा रहें हैं। स्कूलिंग भी मेज़ और कुर्सी के इर्द–गिर्द ही घूमती है। बच्चों को अनुशासित रखने के चक्कर में उनका बचपन और उनकी जिज्ञासा दोनों बाधित हो रहे।
अभी लॉकडाउन की वजह से रामायण दुबारा देखने का अवसर मिला वो भी अपने बच्चों के साथ, तो उनके सवालों ने मुझे कई बार शब्दहीन कर दिया। जैसे कि माता सीता धरती के अंदर बक्से में जिंदा कैसे थीं, वह साँस कैसे ले रहीं थीं। जब हनुमान जी और उनके पापा वानर प्रजाति के थे तो उनकी माँ मानव प्रजाति की कैसे हुईं। मंथरा तो दासी थी और कैकेयी रानी, रानी को तो अपनी बुद्धि से काम लेना चाहिए था वो अपनी दासी के बहकावे में आकर अपने प्रिय पुत्र को जंगल कैसे भेज सकती हैं। ये उन बच्चों की जिज्ञासा है जो अपने घर के बड़े–बुजुर्गों के साथ धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेते हैं।
बच्चों की जिज्ञासा चाहे जिस भी प्रकार की हो उसको शांत ज़रूर करना चाहिए नहीं तो वो इसको जानने के लिए किसी और माध्यम का सहारा लेंगे जो हो सकता है किसी के लिए ठीक न हो और उनको डांट कर चुप करवा देने से उनके बौद्धिक और शारीरिक विकास पर गहरा असर पड़ता है।