Parenting

पिता : घर की नींव से लेकर छत तक

sea sunny beach sand
Happy Fathers Day

जीवन है कड़ी धूप तो ठंडी छांव हैं पिता

साये में है जिनके अपना बचपन बीता

नही होता था तब कोई सुपरहीरो

पापा ही होते थे अपने रियल हीरो

जब भी कोई गलती हो जाती हमसे

न डांट न मार समझ जाते थे आँख दिखाने भर से

उनके होने का अहसास ही काफी है

हर गलती की कोई न कोई माफी है

बचपन बीता बड़े हुए हर अपना फिर दूर हुआ

पिता पुत्री का ये रिश्ता और मजबूत हुआ

दिन में एक बार जब तक न हो उनसे बात

तब तक कुछ भी नहीं आता रास

मन की बात बिना कहे समझते हैं

अपना सुख दुख हर बात वो मुझसे कहते हैं

पापा की गुड़िया पापा की परी हूँ मैं

कांधे पे बचपन और उंगली पकड़ के बढ़ी हूँ मैं

बालों की सफेदी बढ़ी और हुए अनुभव की वो खान

अपनी परवरिश पर है उन्हें अभिमान

हे ईश्वर उन पर कृपा बनाए रखना

मान सम्मान अभिमान सब बचाए रखना

बच्चों की 10 मूवीज़ जो बड़ों को भी अपने बचपन में ले जाए

आज जब कोरोना की वजह से चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ है हर तरफ नेगेटिविटी फैली हुई है। सोशल मीडिया और न्यूज़ चैनल सिर्फ डराने वाली ही खबरें दे रहे हैं।ऐसे में हमारे नन्हें मुन्ने सबसे ज्यादा परेशान हैं एक तो उनको पूरी तरह से घर में बंद कर दिया गया है न दोस्तों का साथ और न ही पार्क की मस्ती ऊपर से कब तक ऐसा रहने वाला किसी को नहीं पता।घर में भी वर्कलोड होने से पेरेंट्स भी उनको उतना टाइम नहीं दे पा रहे ऐसे में वो सिर्फ कार्टून देख देख कर एक अलग ही इमेजिनरी दुनिया में चले जा रहे हैं। आज ज़रूरत है उनको यथार्थ की धरातल पर लाने के साथ ही हम भी उनके साथ कुछ क्वालिटी टाइम बिताएं तो इस बार हम लाएं हैं कुछ बच्चों की मूवीज की लिस्ट जो उनको तो जीवन के वास्तविक पहलुओं से अवगत कराएगी ही साथ में हमें भी बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करेगीं।

इस लिस्ट में सबसे पहले आती है भूत नाथ:

1.भूत नाथ

Bhootnath

अमिताभ बच्चन और बाल कलाकार अमन सिद्दीकी(बंकू) के साथ जूही चावला स्टारर मूवी हॉरर और कॉमेडी का जबरदस्त तड़का लिए हुए है साथ में यह हमारे समाज़ की कड़वी सच्चाई को भी दिखाता है कि जो मां बाप हमारे लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर देते हैं बड़े होकर हम अपने सपने और अपनी लाइफ स्टाइल के आगे उन्हें बिल्कुल भूल जाते हैं और उनके बुढ़ापे में उन्हें बिल्कुल अकेला छोड़ देते हैं।

2.तारे ज़मीं पर

Taare Zameen Par

आमिर खान और दर्शील सफारी स्टारर मूवी एक 8 साल के बच्चे के इर्दगिर्द घूमती है जो एक गम्भीर बीमारी डिस्लेक्सिया से जूझ रहा है और उसके पेरेंट्स उससे नॉर्मल बच्चों की तरह ही रहने और अपने बड़े भाई की तरह हर चीज़ में अव्वल की उम्मीद लगाए बैठे हैं। उसकी समस्या समझते हैं उसी के स्कूल के आर्ट टीचर रामशंकर निकुंभ जो खुद उस बीमारी से जूझ चुके हैं और उस बच्चे की हर तरह से मदद करके उसको बाकी बच्चों के साथ या कहिये सबसे ऊपर लाकर खड़ा करते हैं।

लेकिन यहाँ मेरा सवाल ये है कि गुरु तो मान लीजिए भगवान होते ही हैं लेकिन हमारी प्रथम गुरु हमारी मां क्यों दुनिया की भेड़चाल में ही दौड़ती रही और उस बच्चे की समस्या क्यों नहीं समझ पाई।

3.बम बम बोले

Bumm Bumm Ble

दर्शील सफारी और ज़िया वास्तानी स्टारर मूवी वाकई रोमांचक है।

भाई बहन के आपसी प्यार को  दिखाती ये खूबसूरत कहानी वाकई में सबका दिल जीत लेती है। लाख परेशानियों और गरीबी के बावजूद दोनों का प्यार कम नहीं होता। दोनों बच्चों की आपसी समझ और उनके माता पिता की संघर्ष कहानी।

4.धनक

Dhanak

यह कहानी भी दो छोटे भाई बहन के आपसी प्यार को दिखाती है जिसमें बच्चों के पेरेंट्स तो नहीं और भाई को दिखाई तो नहीं देता लेकिन उसके सपने बहुत बड़े हैं साथ ही बड़ी है उसकी जीभ.। बहन अपने भाई की आँखें वापस लाने के लिये जो संघर्ष करती है साथ ही बच्चा अपना सपना पूरा करने के लिये कितना कष्ट बर्दाश्त करता है पूरी फिल्म इसी के इर्दगिर्द घूमती है।

5.चिल्लर पार्टी

Chillar Party

ये कहानी है कुछ बच्चों की जो अपने गरीब दोस्त और उसके पेट डॉग के लिए सोसाइटी, अपने पेरेंट्स और यहां तक की मंत्री से भी टकराने से नहीं डरते।

इसमें बहुत ही खूबसूरत तरीके से बच्चों के बचपन की मासूमियत को दिखाया गया है, साथ ही यह भी दिखाया गया है कि हम जैसे बड़े लोग जो हाई सोसाइटी और बड़ी बिल्डिंग में रहकर इंसानियत भी खो बैठे हैं और बच्चों की सही दलीलों को भी उनका बचपना समझकर या तो इग्नोर करते हैं या उन्हें डांटकर चुप करा देते हैं। लेकिन लास्ट में बच्चे सबका सपोर्ट भी पाते हैं और अपने दोस्त और उसके पेट डॉग का अधिकार भी।

6.स्टेनली का डब्बा

Stanley Ka Dabba

यह कहानी है स्टेनली नाम के एक होशियार बच्चे की जो किसी कारण से अपना टिफ़िन नहीं ला पाता और उसके क्लास मेट्स उसको अपने टिफिन में शेयर करते हैं लेकिन वो सब अपने हिंदी टीचर को अपना डिब्बा बिल्कुल भी शेयर नहीं करना चाहते। बच्चे अपने सर् से छुपकर स्टेनली से अपना डब्बा कैसे शेयर करते हैं पूरी फिल्म इसी पर आधारित है लास्ट में स्टेनली का डब्बा आ ही जाता है और स्टेनली का डब्बा न लाने का कारण ही फ़िल्म का सस्पेंस है जो लास्ट में पता चलता है।

7.जजनतरम ममतरम

Jajantaram Mamantaram

गुलीवर और लिलिपुट की यात्राएं ऐसी कहानियां हैं जिनको हम सबने अपने बचपन में पढ़ी होंगी। ये मूवी भी उसी पर आधारित है इस फिल्म का हीरो आदित्य (जावेद जाफरी) अपनी जहाज़ टूट जाने के बाद एक द्वीप पर पहुँच जाता है जहाँ के प्राणी आदित्य की तुलना में काफी छोटे छोटे हैं और वो सब उसको शत्रु समझते हैं आदित्य कैसे सबका दोस्त बनता है और उनकी समस्याएं सुलझाता है यही फ़िल्म में दिखाया गया है।

8 कोई मिल गया

Koi Mil Gaya

ऋतिक रोशन और प्रीती जिंटा के साथ ही रेखा स्टारर ये मूवी बच्चों के लिये काफी एंटेरटेनिंग है। इसमें ऋतिक रोशन ने दिमागी रूप से कमज़ोर बच्चे का रोल काफी दमदार तरीके से किया है साथ ही दूसरे ग्रह के प्राणी जादू का कॉन्सेप्ट भी बच्चों को काफी आकर्षित करता है। इसी मूवी के आगे के संस्करणों में हिंदी सिनेमा ने अपना सुपरहीरो कृष पाया।

9 आई एम कलाम

I am Kalam

ये कहानी है राजस्थान के एक छोटे से बच्चे की जो बहुत गरीबी में अपना जीवन भी खुशी से जीने में कोई दिक्कत नहीं है लेकिन उसके सपने बहुत ऊंचे हैं और वो हमारे देश के राष्ट्रपति अब्दुल कलाम से काफी प्रभावित होने के बाद अपना नाम भी कलाम रख लिया और अपनी इसी ज़िद में एक दिन वह उनसे मिलता भी है। कहानी इन्हीं सब रोमांचक पलों से गुजरती है।

Mr. India

अनिल कपूर, श्रीदेवी और अमरीश पुरी स्टारर मूवी अपने आप में एक अनोखी कहानी थी। 1980’s के समय में तो इसने तहलका मचाकर रख दिया था और मुझे उम्मीद है अभी भी बच्चे इसको एन्जॉय ही करेंगें। वैज्ञानिक खोज के जादू को दिखाती यह मूवी तमाम अनाथ बच्चों को सहारा देने वाले इंसान अरुण (अनिल कपूर) के इर्दगिर्द घूमती हुई नजर आती है। अमरीश कपूर मोगाम्बो के रोल में वास्तविक खलनायक ही नज़र आते हैं। उनका एक डॉयलोग “मोगैम्बो खुश हुआ” बहुत ही पॉपुलर हुआ था।

आशा है इस लिस्ट की सभी मूवीज के साथ आप अपने बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम बिताने के साथ ही उनको काफी ज्ञानप्रद बातें भी बिना ज्ञान दिए ही सीखा जाएंगे।

प्रेगनेंसी और कोरोना

किसी नए जीव का सृजन अपने आप में ही एक सुखद अहसास होता है लेकिन इसके साथ ही कई ज़िम्मेदारियों का अहसास और कोई गलती न हो इस बात का डर भी सताता है खासकर तब जब फर्स्ट प्रेग्नेंसी हो और इस कोरोना काल में तो और भी डर हो जाता है। ऊपर से अनेक भ्रांतियाँ भी फैली हुई हैं कि प्रेग्नेंट लेडीज कोरोना के हाई रिस्क पे होती हैं। जबकि वास्तविकता में ऐसा कुछ भी नहीं होता। आंकड़ों के अनुसार कोरोना से मृत्यु उन्हीं लोगों की हुई है जो पहले से किसी और रोग से ग्रस्त थे या जिनकी इम्युनिटी बहुत ज्यादा कमजोर थी।

तो जो भी ज़रूरी सावधानियाँ हैं जैसे सोशल डिस्टनसिंग, मास्क पहनकर ही बाहर निकलें और जब तक बहुत ज़रूरी न हो तो बाहर न निकलें उनको ध्यान में रखेंगीं तो आप अपने प्रेगनेंसी एन्जॉय करते हुए स्मूथली निकाल सकते हैं।

प्रेग्नेंसी एक सुखद अहसास है और खुद को आने वाली चुनौतियों के लायक मज़बूत बनाने का एक अवसर। ये 9 महीने आपको अपने लिए जीने अपने पार्टनर के साथ अपने रिश्ते को मजबूत बनाने और एक दूसरे को एक नन्हें मेहमान को अपने जीवन में हमेशा के लिए शामिल करने के लिए मेंटली और फिजिकली तैयार करने के लिए मिलते हैं। इसलिए इसको भरपूर जिये और हर वो तैयारी जो बच्चे के आने से पहले चाहिए होती है उसको कर लीजिए।

प्रेग्नेंसी को तीन स्टेजेज में बाँट दिया गया है। फर्स्ट ट्राइमेस्टर इसकी शुरुआत लास्ट पीरियड के फर्स्ट डे से लेकर प्रेग्नेंसी के 12 वीक्स तक का समय फर्स्ट ट्राइमेस्टर कहा जाता है

सेकंड ट्राइमेस्टर 13 वीक्स से 26थ वीक तक सेकंड ट्राइमेस्टर कहलाता है।

थर्ड ट्राइमेस्टर 27 वीक्स से प्रेग्नेंसी के आखिरी तक थर्ड ट्राइमेस्टर कहलाता है।

फर्स्ट ट्राइमेस्टर (शुरुआत के तीन महीनों) में एक औरत के अंदर काफी बदलाव होते हैं जो बाहर से तो नहीं दिखते लेकिन उसको काफी प्रभावित करते हैं और साथ मे ही उसके साथ जुड़े लोंगो को भी। चूंकि शुरू के 3 महीनों में काफी हार्मोनल बदलाव होते हैं जिसके लिए औरत का शरीर तैयार नहीं होता जिसकी वजह से उल्टी होना, चक्कर आना, ज़ी घूमना, वज़न कम हो जाना मूड स्विंग होना , वज़न बढ़ना,सुस्ती होना ये सब आम बात है इन बातों से खुद भी नहीं घबराना है और बाकी घरवालों को भी परेशान नहीं करना है। फर्स्ट ट्राइमेस्टर में बेबी ग्रोथ भी तेजी से होती एक कोशिका से पूरा शरीर बनना, उसका लिंग निर्धारित होना सब इसी फेज में होता इस लिहाज से ये फेज माँ और बच्चे दोनों के लिए ज़रूरी और चुनौती भरा होता। ज़रा सी लापरवाही भी मिसकैरिज का कारण बन सकती है। इसलिए कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान जरूर रखें

1.एक कुशल और प्रशिक्षित महिला डॉक्टर से परामर्श ज़रूर लें और आगे के 9 महीने उन्हीं के अनुसार चलना है तो डॉक्टर चुनने में जल्दबाजी न दिखाएं और हॉस्पिटल अपने घर से बहुत दूर भी न हो इसका भी ध्यान रखें।

2.संतुलित भोजन लें आवश्यक विटामिन्स, मिनरल्स और कार्बोहाइड्रेट की मात्रा अपने लम्बाई और वज़न के हिसाब से संतुलित रखें। आयरन और कैल्शियम सप्लीमेंट्स डॉक्टर की सलाह से ज़रूर शुरू कर दें।

3.आपके शरीर में लिक्विड की खपत बढ़ने वाली है तो उसका इनटेक भी बढ़ा दी फिर वो चाहे सादे पानी के रूप में हो या फ्रूट जूस या नारियल पानी के रूप में ये आप पर डिपेंड करता है।

4. भारी सामान उठाने और ज्यादा भागदौड़ से बचें।

5. फलों में पपीता और अनानास को न खाएं तो बेहतर है साथ ही साथ अदरक, हल्दी जैसी गर्म चीजों से जितना परहेज़ कर सकें प्रेग्नेंसी के दौरान उतना बेहतर होगा आपके और आपके होने वाले बच्चे के लिए।

6.पहला टेटनस का इंजेक्शन भी फर्स्ट ट्राइमेस्टर में ही लगता है वो अपने चिकित्सक से परामर्श करके लगवा सकते हैं।

सेकंड ट्राइमेस्टर में बेबी ग्रोथ होती और मां की बॉडी भी अपने आपको एडजस्ट कर चुकी होती तो उसका भी वज़न बढ़ना नार्मल प्रक्रिया होती। कुछ केसेस जिनमें यूटेरस कमज़ोर होता और ग्रोइंग बेबी का वजन न सम्हाल पाने की वजह से मिसकैरिज वगैरह होता( बहुत कम केसेस ) है , नही तो सेकंड ट्राइमेस्टर में कोई चिंता की बात नहीं होती। रेगुलर चेकआप और छठवे महीने में टिटनेस के टीके लगवाने के अलावा और कोई ज़रूरत नहीं पड़ती। इस दौरान कई महिलाओं को ज़ी मिचलाना, और थकान से आराम मिल जाता है

इस दौरान कुछ सामान्य लक्षण जो आपको देखने को मिल सकता है

  • भूख बढ़ना
  • पेट बाहर निकलना
  • लो बीपी के कारण चक्कर आना
  • शिशु की मूवमेंट्स महसूस कर पाना
  • पेट स्तनों और जांघों पर स्ट्रेच मार्क्स पड़ना
  • एड़ियों और हांथो में सूजन

अगर इनमें से कोई भी लक्षण आपको ज्यादा परेशान कर रहा तो अपने डॉ से परामर्श अवश्य लें। दूसरी तिमाही के खत्म होने तक शिशु के सभी अंग विकसित हो चुके होते हैं और शिशु सुनने और स्वाद लेने लायक हो जाता है इसलिए मां को खुश रहना चाहिए और ऐसी कहानियां और गाने सुनते रहें जिनको आप चाहते। हैं कि आपका बच्चा इसको एन्जॉय करेगा। आपने वीर अभिमन्यु की कहानी अवश्य सुनी होगी जो चक्रव्यूह भेदने की विद्या अपनी मां के गर्भ से सीखकर आया था।

थर्ड ट्राइमेस्टर सबके लिए ही अहम होता होने वाली माँ आने वाले बच्चे और पूरे परिवार के लिए भी। अगर आपका पहला बच्चा है तो ये आखिरी 3 महीने हैं जो आप अकेले बीता रहे इसके बाद आप मां के रूप में व्यस्त रहने वाली हैं तो ये जो समय आपको मिला है उसको अपने मनपसंद काम अपने शौक को पूरा करने में बिताइए।अपनी मनपसंद मूवीज,पत्रिकाओं और वो सभी काम जो आप करियर पढ़ाई और फिर शादी के बाद की ज़िम्मेदारी पूरी करने में कहीं पीछे छोड़ दिया था।

तीसरी तिमाही में प्रेग्नेंट महिला को दर्द और सूजन बढ़ जाती है और डिलीवरी को लेकर मेन्टल प्रेशर भी बढ़ जाता है। कुछ लक्षण जो तीसरी तिमाही में दिखते हैं निम्न हैं :

  • गर्भाशय का बीच बीच में टाइट हो जाना।
  • बच्चे का मूवमेंट बहुत ज्यादा बढ़ जाना।
  • गर्भाशय में शिशु पूरी जगह ले चुका होता है इसलिए वहाँ यूरिन कलेक्शन के लिए जगह कम पड़ती और बार बार यूरिन डिस्चार्ज करने जाना पड़ता।
  • सोने में दिक्कत होंना।

अगर आपको शिशु की एक्टिविटी अचानक से कम समझ आए या ब्लीडिंग शुरू हो जाए या फिर अत्यधिक सूजन दिखे तो अपने डॉक्टर से तुरंत सलाह लें।

सभी कठिनाइयों के बाद भी, जब आप पहली बार अपने बच्चे को अपने हाथ में लेते हैं, तो जो भावना आती है उसे शब्दों में वर्णित नहीं किया जा सकता है।


 

 

 

बच्चे और उनकी जिज्ञासा

एक अध्ययन से पता चलता है कि बच्चों की पसंद और उनके सवाल उनके आसपास के वातावरण और उनका समय किस उम्र के लोगों के साथ बीत रहा उस पर ही निर्भर करता है। अगर बच्चा अकेले या अपने हमउम्र बच्चों के साथ होगा तो उसको नए परीक्षण करने में ज्यादा रुचि होगी। उसके परीक्षण ज्यादातर उन बातों पर होंगे जिनके लिए उसको बड़े लोगों से डांट पड़ती होगी या मना किया जाता होगा। जैसे कि मिट्टी या रेत मुंह मे डालकर उसका स्वाद लेना या कोई खिलौना जो आवाज़ करता हो उसका एकएक भाग खोलकर अलग करना और देखना की वास्तव में उसके अंदर क्या है या फिर कोई इलेक्ट्रिक या आग वाली वस्तु से खेलने की कोशिश करना कि आखिर क्यूँ मम्मीपापा उससे दूर रहने को बोलते हैं ये कुछ ऐसे काम हैं जो हर बच्चा खुद करके देखना चाहता है।

आज की भागमभाग ज़िंदगी में बच्चे वास्तविकता से दूर होते जा रहें हैं। स्कूलिंग भी मेज़ और कुर्सी के इर्दगिर्द ही घूमती है। बच्चों को अनुशासित रखने के चक्कर में उनका बचपन और उनकी जिज्ञासा दोनों बाधित हो रहे।

अभी लॉकडाउन की वजह से रामायण दुबारा देखने का अवसर मिला वो भी अपने बच्चों के साथ, तो उनके सवालों ने मुझे कई बार शब्दहीन कर दिया। जैसे कि माता सीता धरती के अंदर बक्से में जिंदा कैसे थीं, वह साँस कैसे ले रहीं थीं। जब हनुमान जी और उनके पापा वानर प्रजाति के थे तो उनकी माँ मानव प्रजाति की कैसे हुईं। मंथरा तो दासी थी और कैकेयी रानी, रानी को तो अपनी बुद्धि से काम लेना चाहिए था वो अपनी दासी के बहकावे में आकर अपने प्रिय पुत्र को जंगल कैसे भेज सकती हैं। ये उन बच्चों की जिज्ञासा है जो अपने घर के बड़ेबुजुर्गों के साथ धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेते हैं।

बच्चों की जिज्ञासा चाहे जिस भी प्रकार की हो उसको शांत ज़रूर करना चाहिए नहीं तो वो इसको जानने के लिए किसी और माध्यम का सहारा लेंगे जो हो सकता है किसी के लिए ठीक हो और उनको डांट कर चुप करवा देने से उनके बौद्धिक और शारीरिक विकास पर गहरा असर पड़ता है।

 

 

 

माँ होने का अहसास

माँ होने का अहसास ही कितना खास होता है ये उस दिन पता चलता है जब आप खुद माँ बनती हैं। एक छोटा नन्हा सा मेहमान जिसको छूने में ही डर लगता हो उसका ध्यान हम रख पाएंगे कि नहीं, कहीं कुछ गलती न हो जाए ये सब सोचकर ही दिल की धड़कनें बढ़ जाती हैं। ये सब सुनने में बड़ा आसान लगता है लेकिन जिस दिन मैंने अपनी गुड़िया को अपनी गोद में लिया उस दिन एक सुकून के साथ-साथ ये डर मुझे भी सता रहा था। उस बात को 8 साल हो गए लेकिन मुड़कर देखती हूँ तो लगता है जैसे कल की ही बात हो। आज मेरी बेटी जब तरह-तरह के सवाल पूछती है और कभी-कभी जब मुझे ही कुछ नया सिखा जाती है तो सोचती हूँ क्या ये वही नन्हीं परी है जिसको छूने में मुझे डर लगता था। डर लगता था कि क्या मैं एक माँ की ज़िम्मेदारी कायदे से उठा पाऊंगी। ऐसे में कुछ चीजें जो मेरी माँ ने बताया और उन्हें उनकी माँ ने, मुझे भी काफी आराम मिला इनको इस्तेमाल करके अपने मातृत्व के सफर में वो आपसे शेयर करना चाहती हूँ, खासकर उनसे जिनकी इस सफर में शुरुआत हो रही और जो शुरुआत करने वाले हैं।

कुछ चीजें जो एक्सपेरिएंस से ही आती आप कितने भी एजुकेटेड हो मैटर नहीं करता। जैसे आजकल मार्केट में diapers के ढेरों ऑप्शन हैं लेकिन कई बार diapers साइड इफ़ेक्ट्स भी छोड़ देते जैसे रैशेस,रेड स्पॉट्स आदि। इसलिए कपड़े की नैपी भी एक बढ़िया ऑप्शन होता है।

बच्चों की मालिश भी उनके ग्रोथ के लिये बहुत ज़रूरी होती। इसके लिए मालिश करने के तरीके से लेकर मालिश के लिए प्रयोग होने वाला तेल भी उतना ही ज़रूरी होता है। वैसे तो प्राकृतिक रूप से निकला हुआ सरसों का तेल मालिश के लिए सबसे उपयुक्त होता है लेकिन कई बच्चों को सरसों का तेल एलर्जी भी कर देता क्योंकि सरसो की तासीर गर्म होती है ऐसे में नारियल का तेल बेस्ट ऑप्शन होता है क्योंकि इसमें भी मिलावट के चांस बहुत ही कम होते हैं और हर घर में इसका उपयोग होता है।

बच्चों के लिये हाइजीन का ध्यान रखना बहुत जरूरी होता है। साफ-सफाई के साथ-साथ जर्म्स नियंत्रण भी उतना ही ज़रूरी होता है। उसके लिए आप बाजार से कोई भी कीटाणुनाशक ले सकते अपने घर के फर्श को साफ करने के लिए भी और बच्चों के कपडों को कीटाणुओं से बचाने के लिये भी।

कई बार बच्चों को पेट में दर्द होता है और वो अपना दर्द बोलके नहीं बता सकते तो सिर्फ रोकर ही बताते हैं ऐसे में घबराने की ज़रूरत नहीं बच्चे को गोद में लेकर अपने कंधे से चिपकाएं और पीठ पर हल्की थपकी दें साथ ही साथ बच्चे की नाभि पर हींग लगाएं इतना करने पर बच्चे को डेफिनेटली आराम मिलेगा।

 

Impact of lockdown on kids

1- Whatever you are doing but always keep eyes on your little ones.

2- Try to give some quality time to them, it may be in form of indoor games or may be story telling.

3- Don’t shout or overreact on children as it is very tough situation for all of us.

4. Try to engage your kids in some fruitful work which they enjoy like art and craft, some toy making or take help from them in kitchen.

5. Handle kids very softly, because after lock down studies will be completed if child is mentally stable.

 

 

पेरेंटिंग

Kids

पेरेंटिंग हमेशा एक चुनौती ही रही है। एक नन्हे से जीव को इस काबिल बनाना कि वो खुद अपने भले-बुरे का चुनाव करने के साथ-साथ उससे जुड़े लोगों के लिए भी सही फैसला ले सके, कभी भी आसान नहीं रहा। भारतीय समाज में पहले संयुक्त परिवार में ज़िम्मेदारियाँ बँटी होती थी और बच्चों के पास भी देखने-सीखने के लिए बहुत से विकल्प होते थे। माता-पिता भी अपनी और ज़िम्मेदारियों के साथ-साथ बच्चों को भी देख लेते थे। बच्चे भी माँ-बाप में भगवान वाली छवि ढूढ़ते थे और उनकी बात सुनते ज्यादा एवं बोलते कम थे। लेकिन अब जैसे-जैसे एकल परिवारों का चलन बढ़ा और एक-दो बच्चे का दौर शुरू हुआ, साथ-साथ लड़की हो या लड़का शिक्षा सबका अधिकार प्रभावी हुआ, तब से काफी कुछ बदल गया। चुनौतियां बढ़ी, ज़िम्मेदारी बढ़ी और बिखराव बढ़ा। जहाँ पहले बच्चे अपने पेरेंट्स से छोटी सी बात करने में हिचकते थे अब सवाल-जवाब खत्म ही नहीं होते। सफलता मिली तो ये बच्चों की मेहनत और असफलता मिली तो आपने मेरे लिए किया ही क्या? ऐसे में तनाव और चिंता का माहौल हो जाना कोई बड़ी बात नहीं। नए पेरेंट्स सब कुछ छोड़कर बच्चों का भविष्य बनाने में लगे हुए हैं। उनके चतुर्मुखी विकास में अपना सब कुछ झोंक दिया है। ऐसे में ये ज़रूर ध्यान देना चाहिए कि बच्चा हर बात के लिये आप ही पर तो निर्भर नहीं हो रहा। कोशिश करना चाहिए कि बचपन से ही बच्चों को सही-गलत में अंतर समझाया जाना ज़रूरी है, ताकि बड़ा होकर वो अपने जीवन के अहम फैसलों में आपसे सलाह तो ले लेकिन आखिरी फैसला खुद उसका हो और उसके लिए वो किसी पर दोषारोपण करता नजर न आए। बच्चों को समाज की बुरी नज़र से बचाते हुए आत्मनिर्भर बनाने में कहीं हम ये गलती तो नहीं कर रहे कि बच्चा हमसे तो बहस कर ले रहा लेकिन जहाँ समाज में बोलने की बारी आए तो वो कुछ बोल ही न पाए। इसके लिए उसको बचपन से ही छोटे-छोटे मामलों में निर्णय लेने का मौका दीजिये और गलत होने पर उसको प्यार से समझाइए भी।
बच्चों को बचपन से ही आत्मनिर्भर बनाने में उनको अपना काम खुद करना भी आना चाहिए। इसलिए शुरुआत से ही छोटे कामों को करने की आदत डालने पर बाद में बड़े काम भी वो खुद करने लगते हैं। अगर आप यह सोचकर कि बच्चा अभी छोटा है, उनके सभी काम करते जाएंगे तो भविष्य में उसको आराम की आदत हो जाएगी। हमारे समाज में खासकर भारतीय समाज में लड़कियों को तो ससुराल जाने के नाम पर थोड़ा-बहुत काम करवाया भी जाता है, लेकिन लड़कों को एक गिलास पानी लेने को भी नहीं बोला जाता। ऐसे में एकल परिवारों में माँ के बीमार होने पर बड़ी समस्या हो जाती है और बाद में यही समस्या उस लड़के की पत्नी को भी झेलनी पड़ती है। आज के हमारे समाज की कड़वी सच्चाई ये है कि लड़का हो या लड़की सबको सब काम आने चाहिए ताकि ज़रूरत पड़ने पर वह हर परिस्थिति का डटकर सामना कर सके। लड़की को इतना काबिल बनाएं कि वो आर्थिक और मानसिक रूप से सशक्त होते हुए घर की ज़िम्मेदारियाँ बख़ूबी निभा सके और लड़के को इतना काबिल बनाएं कि आर्थिक और सामाजिक रूप से मज़बूत होते हुए भी घर के काम करने में वो संकोच या शर्म महसूस न करे और अकेले होने पर कभी भूखा रहने की नौबत न आए।