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कार्तिक माह: विविधता और पर्व का संगम

Deep daan in holy rivers

वैसे तो अंग्रेजी कैलेंडर की तरह ही हिन्दू कैलेंडर में भी 12 महीने होते हैं। उनमें से 8th कार्तिक महीने का महत्व ज्यादा है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि इस महीने में भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों ही धरती पर वास् करते हैं। तो आइये बात करते हैं कर्तिक महीने की ।

ऐसी मान्यता हैं कि भगवान अपने प्रथम अवतार मत्स्य रूप में इसी माह में धरती पर आये थे और अभी भी इसी रूप पूरे मास भर निवास करते हैं। अत: मानने वाले इस पूरे महीने भर सूर्योदय से पहले स्नान करके तुलसी पूजन करते हैं। विशेष रूप से बुजुर्ग लोगों में इसका महत्व ज्यादा है। लोग जगन्नाथपुरी या मथुरा वृंदावन में ही निवास करके अपनी पूजा आराधना में लीन रहते हैं।

ऐसी भी मान्यता है कि साल के 11 महीने माँ गंगा के और कार्तिक महीना माँ यमुना का होता है। इसलिए प्रयागराज के बलुआघाट में यमुना जी के किनारे पूरे महीने भर का मेला लगता है जो काफी विशाल होता है और दैनिक ज़रूरत से लेकर सभी सामान हस्तशिल्प सामान भी सब आपके बजट के हिसाब से मिल जाएंगे।

भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी को चार माह के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं जिसे देवशयनी एकादशी भी कहते हैं। इसके बाद वह कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं। इन् चार महीनों में देव शयन के कारण समस्त मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं। जब भगवान विष्णु जागते हैं तब मांगलिक कार्य  की शुरू आत होती है ।

इस कारण इस दिन  को देवोत्थान एकादशी कहते हैं। इसी दिन तुलसी भी शालिग्राम से विवाह करके बैकुंठ धाम को चली गई थीं। इसलिए पूरे मास भर तुलसी के पौधे के सामने दीपक जलाने की मान्यता है। तुलसी को लक्ष्मी स्वरूप माना गया है।

कार्तिक पूर्णिमा का भी बहुत महत्व है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव ने इसी दिन त्रिपुरासुर नाम के राक्षस का वध करके तीनों लोकों की रक्षा की थी और भगवान शिव को त्रिपुरारी नाम मिला था। इससे खुश होकर सभी देवों ने काशी में इकट्ठे होकर दीवाली मनाई थी इसलिए कार्तिक पूर्णिमा को देव दीवाली के रूप में भी मनाया जाता है।

Dev Diwali in kashi

महाभारत के बाद जब पांडव अपने सगे सम्बन्धियों के अकाल मृत्यु से शोकाकुल थे और सोच रहे थे कि असमय मृत्यु के कारण उनकी आत्मा को शांति कैसे मिलेगी । तब भगवान कृष्ण के कहने पर कार्तिक शुक्ल पक्ष की अष्टमी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक पितरों की आत्मा की तृप्ति के लिए तर्पण और दीपदान किया। तभी से कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा स्नान और पितरों को तर्पण देने का रिवाज शुरू हुआ।

 

कार्तिक पूर्णिमा का महत्व अन्य धर्मों में भी बहुत है।

कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही सिख धर्म के पहले गुरु, गुरु नानक देव का जन्म हुआ था इसलिए इसको गुरु नानक जयंती और प्रकाश पर्व के रूप में भी मनाया जाता है।

जैन धर्म में भी कार्तिक माह की पूर्णिमा का  काफी महत्व है इस दिन चातुर्मास पश्चात श्री शत्रुंजय महातीर्थ पलिताना की यात्रा पुनः शुरू होती है। साथ ही साथ इस दिन के बाद जैन साधू-साध्वी चातुर्मास संपन्न होने से अपनी विहार यात्रा पुनः शुरू करते हैं।

कार्तिक माह दक्षिणायन का समय होता है अर्थात इस समय सूर्य अपनी भौगोलिक स्थिति बदलता है और धीरे धीरे दक्षिण की ओर गमन करता है और कर्क संक्रांति से लेकर मकर सक्रांति तक होता है। इसलिए इस समय दिन छोटा और रात बड़ी होती है इसलिए खुद को ज्यादा स्फूर्तिवान रखने की ज़रूरत पड़ती है ताकि हमारे सभी काम सुचारू रूप से चलते रहें। अपने मन के अंदर के दीपक को जलाने के लिए हम बाहर भी दीपक जलाकर उजाला करते हैं।

साथ ही साथ योग की भाषा में साधना पद खत्म होकर कैवल्य पद की शुरुआत होती है। साधना पद कर्म करने का समय होता है जिसमें कृषि कार्य से सम्बंधित सभी कार्य तथा अन्य वर्गों के लिए उनके कार्य होते हैं जबकि कैवल्य पद फल प्राप्त करने का समय होता है जिसके लिए खुद को मजबूत करना होता है और अपने को ईनाम भी देना होता है वह समय कार्तिक माह का होता है।

अत: हम देख पाते हैं कि भारत विविधताओं में भी एकता बनाये रखने वाला देश है। यहाँ सभी धर्मों से जुड़े त्यौहारों और मान्यताओं से जुड़ी कुछ धार्मिक और कुछ वैज्ञानिक कारण ज़रूर होता है ज़रूरत है बस उसको मालूम करने की और उसको उसी तरह सेलिब्रेट करने की।

 

देवशयनी एकादशी: धर्म और विज्ञान साथ साथ

हिन्दू धर्म के अनुसार हिंदी कैलेंडर के आषाढ़ मास की एकादशी को देवशयनी एकादशी के रूप में जानते और मनाते हैं। माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार मास के लिए क्षीरसागर में विश्राम करने चले जाते हैं और इसीलिए इसके बाद का श्रावण माह पूरी तरह से भोलेनाथ महादेव का माना जाता है कि सृष्टि का संचालन अब महादेव के हाथ में है।इस दिन से सभी मांगलिक कार्यक्रम जैसे विवाह, गृहप्रवेश आदि अगले चार महीनों के लिये वर्जित हो जाते हैं। 2021 में देवशयनी एकादशी 19  जुलाई की शाम से शुरू होकर 20 जुलाई की शाम तक  है और यह चातुर्मास लगने का संकेत है। चतुर्मास में श्रावण, भाद्रपद, अश्विन और कार्तिक महीने शामिल हैं।

प्राचीन काल में भी भारत का विज्ञान काफी आगे था। हमारे ऋषि मुनि जो भी करते थे उसके पीछे ठोस वैज्ञानिक आधार होता था। आषाढ़ मास यहाँ पर मानूसन यानी वर्षा ऋतु का मास है और एकादशी तक देश के सभी प्रांत तक मानसून पहुंच ही जाता है। हमारे देश में गाँव में आज भी मानसून आने के बाद मुख्य रूप से खेती ही की जाती है और तमाम रास्ते बारिश और जंगलों की वजह से अवरुद्ध हो जाते हैं। पहले यातायात के साधन भी पशुओं और ग्रामीण रास्तों को ध्यान में रखकर बनाए जाते थे इसलिए मानसून के चार महीने वैवाहिक कार्यक्रम बन्द कर दिए जाते थे ताकि किसी को परेशानी न हो।
हमारे यहाँ ऋषि मुनि जंगलों में तप करने जाते थे। वर्षा काल में जंगली और खूंखार जानवरों के डर से वो नगर या गाँव के आसपास ही अपना ठिकाना बना लेते थे और वर्षा काल बीतने के बाद वापस अपने ठिकानों पर चले जाते थे। हमारे यहाँ ऋषि मुनियों के स्थान भी देवतुल्य ही माना गया है । और ऋषि मुनि अपनी पूजा तप छोड़कर गांव नगर की तरफ प्रस्थान करते हैं इसलिए भी इसे देवशयन समय माना गया है।
देवशयनी एकादशी में वैसे तो व्रत पूजा पाठ किया जाता है लेकिन अगर व्रत वगैरह में विश्वास नहीं है तो भी वेद पुराण पढ़ने और अपना ज्ञान बढाने में किसी को भी दिक्कत नही होनी चाहिए। साथ ही साथ इस दिन चावल वर्जित माना गया है इसके पीछे वैज्ञानिक आधार यह है कि चावल खाकर बारिश के मौसम में आप शान्ति से ज्ञान अर्ज़न नहीं कर सकते और ध्यान मग्न भी नहीं हो सकते।

 

सूर्य ग्रहण :- कुछ तथ्य कुछ मिथक

 

 

10 जून 2021 को साल का पहला सूर्य ग्रहण लग रहा। भारतीय समयानुसार दोपहर 1.43 पर यह खगोलीय घटना होने वाली है जिसका असर शाम 6 बजकर 41 मिनट पर खत्म होगा। भारत में यह ग्रहण नहीं दिखाई देगा।ये ग्रहण मुख्य रूप से उत्तरी अमेरिका, यूरोप और एशिया में आंशिक व उत्तरी कनाडा, ग्रीन लैंड और रूस में पूर्ण रूप से दिखाई देगा।

2021 का दूसरा सूर्यग्रहण 4 दिसंबर को दिखेगा।

क्या है सूर्यग्रहण

वैसे तो सूर्य ग्रहण एक खगोलीय घटना है जिसमें चंद्रमा अपनी धुरी पर घूमते हुए सूर्य एवं पृथ्वी के बीच में जाता है और आंशिक या पूर्ण रूप से सूर्य को ढंक लेता है जिससे पृथ्वी पर उसकी छाया दिखाई देती है और पृथ्वी पर कुछ देर के लिए अंधेरा हो जाता है।

सूर्यग्रहण का धार्मिक पक्ष

सूर्य ग्रहण का अपना धार्मिक महत्व भी है। हमारे पुराणों के अनुसार राहु और केतु नाम के दो असुर हैं जो चन्द्रमा और सूर्य के आसपास ही रहते हैं तथा समयसमय पर राहु चंद्रमा को और केतु सूर्य को खाने की कोशिश करते हैं, वही चंद्रग्रहण और सूर्यग्रहण के रूप में सामने आता है। हालांकि इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है और जानकारी के अभाव में लोगों ने अपनी एक धारणा विकसित कर ली थी।

क्या करें क्या न करें और क्यों?

सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण के दौरान खाना, पीना, मलमूत्र त्याग करना, सोना आदि वर्जित माना जाता है।हालांकि इसका वैज्ञानिक कारण यह है कि ग्रहण के दौरान हानिकारक विकिरण निकलते हैं जिनके बैक्टीरिया खाने को खराब कर देते हैं और वो पाचनतंत्र में जाकर अनेक रोगों को भी आमंत्रित करते हैं। इस दौरान खाद्य पदार्थों जैसे दूध, सूखे अनाज इन सबमें कुश या तुलसी पत्ता रखने का रिवाज है जिससे सब बैक्टीरिया इसी में चिपक जाएं और ग्रहण के बाद उनको निकाल कर बाहर कर देना चाहिए।

ग्रहण के बाद स्नान आदि करने का भी रिवाज़ है ताकि इस दौरान जो भी हानिकारक विकिरण या बैक्टीरिया हमारे शरीर पर चिपकें वो साबुन और पानी में मिलके बह जाएं।

फिलहाल तो कोरोना नामक ग्रहण पूरी दुनिया पर ही लगा हुआ है इसलिए अपना और अपने परिवार को हानिकारक विकिरणों और बैक्टीरिया वायरस से सुरक्षित रखना हमारा प्रथम कर्तव्य है। सब खुश और स्वस्थ रहें यही ईश्वर से प्रार्थना है।

 

 

मैं तुलसी तेरे आंगन की

तुलसी का हमारे भारतीय समाज खासकर हिन्दू धर्म में बड़ा ही महत्व है l हिन्दुओं में शायद ही कोई ऐसा घर मिले जिसके आँगन या बालकनी में तुलसी का पौधा न मिले। हिन्दुओं के प्रत्येक शुभ कार्य में, भगवान के प्रसाद में तुलसी-दल का प्रयोग होता है । पौराणिक महत्व के अलावा तुलसी वैज्ञानिक महत्व भी रखती है।

प्रचलित पौराणिक कथाओं के अनुसार देव और दानव द्वारा किए गए समुद्र मंथन के समय जो अमृत धरती पर छलका उसी से तुलसी की उत्पत्ति हुई।ब्रह्म देव ने उसे भगवान विष्णु को सौंपा। इसलिए ये विष्णु प्रिया भी कहलाती हैं। वैसे तो वर्ष भर ही तुलसी की पूजा की जाती है लेकिन कार्तिक मास में विशेष तौर से इनको पूजा जाता है और इसी माह में एकादशी को तुलसी विवाह भी सुहागन स्त्रियों द्वारा किया जाता है।

पौराणिक महत्व

1 – तुलसी की माला गले में धारण करने से शरीर में विद्युत शक्ति का संचार अच्छा होता है । जीवन शक्ति बढ़ती है, शरीर में ओज-तेज बना रहता है ।

2 – तुलसी की माला धारण करके किया गया शुभ कर्म अनंत फल देता है ।

3 – तुलसी के निकट रहने से मन शांत रहता है, क्रोध जल्दी नहीं आता ।

4 – मृतक व्यक्ति के मुँह में तुलसीदल और गंगाजल डालने से उसकी सद्गति होती है ।

5 – तुलसी की लकड़ी से शरीर का दाह संस्कार किया जाये तो उसका पुनर्जन्म नहीं होता ।

6 – ‘गरुड़ पुराण’ के अनुसार ‘तुलसी का वृक्ष लगाने, पालन करने, सींचने तथा ध्यान, स्पर्श और गुणगान करने से मनुष्यों के पूर्व जन्मार्जित पाप जलकर विनष्ट हो जाते हैं ।’

7 – मात्र भारत में ही नहीं वरन् विश्व के कई अन्य देशों में भी तुलसी को पूजनीय व शुभ माना गया है । ग्रीस में इस्टर्न चर्च नामक सम्प्रदाय में तुलसी की पूजा होती थी और सेंट बेजिल जयंती के दिन ‘नूतन वर्ष भाग्यशाली हो’ इस भावना से देवल में चढ़ाई गयी तुलसी के प्रसाद को स्त्रियाँ अपने घर ले जाती थीं ।

 

वैज्ञानिक महत्व

विज्ञान के अनुसार घर में तुलसी-पौधे लगाने से स्वस्थ वायुमंडल का निर्माण होता है । तुलसी का वैज्ञानिक नाम औसीमम सैंक्टम है।  मुख्य रूप से दो प्रकार की तुलसी मिलती है जिसे राम तुलसी और श्याम तुलसी कहते हैं। तुलसी से उड़ते रहने वाला तेल आपको अदृश्य रूप से कांति, ओज और शक्ति से भर देता है । अतः सुबह-शाम तुलसी के नीचे धूप-दीप जलाने से नेत्रज्योति बढ़ती है, श्वास का कष्ट मिटता है । तुलसी के बगीचे में बैठकर पढ़ने, लेटने, खेलने व व्यायाम करने वाले दीर्घायु व उत्साही होते हैं । तुलसी उनकी कवच की तरह रक्षा करती है ।

इसमें कई औषधीय गुण पाए जाते हैं जिनमें से कुछ निम्न हैं:-

 1 – सर्दी-खांसी में तुलसी, काली मिर्च, गुड़, हल्दी एवं अदरक या सोंठ को पानी में अच्छे से उबालकर पीने से तुरंत असर दिखता है।

2 – तुलसी त्वचा के लिए काफी लाभदायक होती है। यह कील-मुँहासों में बहुत फायदेमन्द है।

3 – दस्त पड़ रही हो तो तुलसी में जीरा पीसकर पाउडर रूप में लेने से फायदा होता है।

4 – तुलसी की पत्तियों को चबाने से मुँह की बदबू गायब हो जाती है और चूँकि यह प्राकृतिक है तो किसी तरह का नुकसान भी नहीं होता।

5 – तुलसी माहवारी को भी नियमित करती है।

6 – कुछ शोधों में पाया गया है कि तुलसी कैंसर में भी लाभदायक है, हालांकि इसकी पूर्ण पुष्टि नहीं हुई है। कफजन्य रोग, दमा, अस्थमा आदि रोगों में भी तुलसी वरदानस्वरूप है ।

7 – तुलसी के पत्तों को जल में डालने से जल सुगंधित व तुलसी के समान गुणकारी हो जाता है । यदि पानी में उचित मात्रा में तुलसी-पत्ते डालकर उसे शुद्ध किया जाए तो उसके सारे दोष समाप्त हो जाते हैं । यह पानी शरीर को पुष्ट बनाता है तथा मुख का तेज, शरीर का बल एवं मेधा व स्मरण शक्ति बढ़ाता है ।

8 – फ्रेंच वैज्ञानिक डॉ. विक्टर रेसिन ने कहा कि इससे हिमोग्लोबिन बढ़ता है, लिवर नियंत्रित होता है, कोलेस्ट्रोल कंट्रोल होता है । कई प्रकार के बुखार मलेरिया, टाइफाइड आदि दूर होते हैं । हृदय रोगों में विशेष लाभकारी है ।

9 – एक अध्ययन के अनुसार ‘तुलसी का पौधा उच्छ्वास में ओजोन वायु छोड़ता है, जो विशेष स्फूर्तिप्रद है । तुलसी के पत्तों में एक विशिष्ट तेल होता है जो कीटाणुयुक्त वायु को शुद्ध करता है ।

10 – डिफेन्स रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन के वैज्ञानिकों द्वारा किये गये अनुसंधानों से यह सिद्ध हुआ है कि ‘तुलसी में एंटी ऑक्सीडंट गुणधर्म है और वह आण्विक विकिरणों से क्षतिग्रस्त कोषों को स्वस्थ बना देती है । कुछ रोगों एवं जहरीले द्रव्यों, विकिरणों तथा धूम्रपान के कारण जो कोषों को हानि पहुँचाने वाले रसायन शरीर में उत्पन्न होते हैं, उनको तुलसी नष्ट कर देती है ।’

इस प्रकार तुलसी बड़ी पवित्र एवं अनेक दृष्टियों से महत्वपूर्ण है । यह माँ के समान सभी प्रकार से हमारा रक्षण व पोषण करती है ।  जहाँ तुलसी के पौधे होते हैं, वहाँ की वायु शुद्ध और पवित्र रहती है ।