Social issues

दशहरा की शुभकामनाएं

selective focus of two kingfisher birds on tree branch

दशहरा पर दसमुख रावण को हर बार हम जलाते हैं । 

बुराई पर अच्छाई की जीत हमेशा दिखाते हैं । 
समय आ गया सोचो और विचार करो
क्या क्या बदला अब तक तब में और अब में

तब रावण के दस सर थे जो उसकी पहचान थे
अब सबके अंदर कितने रावण सब खुद उनसे अनजान हैं । 

क्या मन में बसे क्रोध मोह माया का त्याग हम कर पाए
या प्रतीक रूप में हर बार पुतला जलाकर सारी कमियां घर लाए । 

कभी पुत्र मोह कभी सत्ता लोभ
कभी काम वासना जैसे अगणित रावण हैं । 
क्रोध, अहंकार जैसे इनके अनेकों गण हैं । 

घमंड, स्वार्थ, ईर्ष्या द्वेष को मार पाएंगे
मानवता कब की जर्जर हो गई कब ये जानेंगें । 

कब तक राम हमें जगाएँगें
इन तमाम बुराई को मिलकर हम कब  भगा पाएंगे । 

दस पर वश करने का अब भरपूर प्रयत्न करो

अपनी अगली पीढ़ी को हम पुनः रामराज्य दें पाएं  ऐसा समुचित यत्न करो

वास्तव में तभी
हम दशहरा की शुभकामनाएँ सबको दे पायेंगें । 

हिंदी भाषा ::फिर वही सम्मान दिलाना है

बरसों रहे गुलामी में हम

आज़ादी कहाँ से भाएगी

अपनी भाषा अपना देश

सबसे बढ़िया कहने की हिम्मत कहाँ से आएगी

सत्ता की खातिर सबने बंटवारा क्या खूब किया

देश को बांटा कई हिस्सों में

लोगों को अंग्रेजी के आधीन किया

अपनी भाषा अपनी शैली पर शर्म हमें आती है

अंग्रेजी भाषा और पाश्चात्य शैली हमेशा हमें लुभाती है।

कहने को राष्ट्रभाषा है हिन्दी

पर उसकी याद हमें एक दिन ही आती है।

आज भी उनसठ,उनहत्तर, उन्यासी, नवासी

हममें से बहुतों को समझ नहीं आती है।

हिंदी दिवस की शुभकामनाएं भी हम अंग्रेजी में देते हैं

बच्चों को अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाकर

खुद में ही इतराते हैं।

कैसे होंगे  हम स्वाधीन जब तक ऐसी सोच है।

हिंदी भाषा अपने घर में ही सबपर बोझ है।

अपनी मातृभाषा को फिर वही सम्मान दिलाना है

किसी और भाषा के आगे इससे नहीं शर्माना है

अब हर हिंदुस्तानी ने यह ठाना है

 

नागपंचमी: धार्मिक और वैज्ञानिक आधार

brown snake

नागपंचमी

हमारा भारत देश हर जीव को सम्मान देने में विश्वास रखता है और ऐसे ही सम्मान देने में हमारे कई त्यौहार बन जाते हैं। ऐसा ही एक त्यौहार है नागपंचमी जो श्रावण मास की शुक्लपक्ष की पंचमी को मनाया जाता है चूंकि तब तक मानसून अपने शीर्ष पर होता है ऐसे में बिल और कंदराओं में रहने वाले पशु पक्षी बेघर होकर इधर उधर घूमते रहते हैं और जाने अनजाने में उनको चोट पहुंचाने वालों को वो हरगिज़ नहीं छोड़ते ऐसे में सांप को प्रसन्न करने के लिए नागपंचमी पर्व मनाया जाता है । इस दिन विवाहिता स्त्रियां नागों की पूजा अर्चना करने के बाद दूध और लावा (धान को  बालू में तेज आंच पर गर्म करने पर बना ) चढ़ाती हैं। और अपने परिवार की सुख समृद्धि की प्रार्थना करती हैं।

ऐसा माना जाता है कि जब नागों का राजा तक्षक राजा जन्मजेय की पिता राजा परीक्षित को डस लिया इससे नाराज़ होकर राजा जन्मजेय ने पृथ्वी को सर्पविहीन बनाने के लिये एक यज्ञ शुरू किया। इससे डरकर मुनि अस्तिका ऋषि ने राजा जन्मजेय को समझाया और ये यज्ञ बंद करवाया। जिस दिन यह यज्ञ बंद हुआ वह श्रावण मास की पंचमी थी तब से यह दिन नागपंचमी के रूप में मनाया जाने लगा।

ऐसी ही एक कथा के अनुसार जिस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने कालिया नाग का वध करके यमुना और गोकुल वासियों को नाग से मुक्ति दिलाई थी, वह भी श्रावण मास के शुक्लपक्ष की पंचमी थी। तब से इस दिन सर्प की पूजा होने लगी।

2022 में यह 2 अगस्त को है।

बरसात के मौसम में जब किसान अपने खेतों में काम करते हैं तो और भी जीव जंतु जैसे चूहा, गिरगिट आदि फसलों को नष्ट करते जिसे साँप इनकी संख्या कम कर फसलो को बचाते हैं इसलिए भी उनकी पूजा होती।

अगर आपने 90’s की नाग नागिन मूवी देखी हो तो उसमें नाग को मारने वाले कि इमेज उसकी आँखों में छप जाती और उसीको देखकर नागिन सबसे बदला लेती है। पहले के लोगों में यह भी एक अंधविश्वास था।

हमारे पुराणों में देखा जाय तो भोलेनाथ के गले में साँप का बसेरा है श्रीहरि विष्णु नाग की शैया पर विराजमान हैं और कृष्ण जी ने कालिया नाग को मुक्ति दी।और तो और ऐसी मान्यता है कि हमारी पूरी पृथ्वी ही शेष नाग के फन पर विराजमान है।ऐसे में तो साँप पूज्यनीय हो ही जाते हैं।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण में साँप को गुस्सा, क्रोध अहंकार से जोड़ा गया है क्योंकि उनके अंदर का विष किसी को भी खत्म करने के लिए काफी होता है तो उनमें अहंकार होना स्वाभाविक है लेकिन इतने शक्तिशाली होने के बाद भी अपने आपको स्थिर शांत और दयालु बनाए रखना महानता होती है नागपंचमी का पर्व अपने अंदर का क्रोध और अहंकार इसी व्रत पर्व के साथ खत्म करने की बहुत बड़ी सीख लिए होता है।

 

श्रावण और तीज़ : हरियाली, कजरी और हरितालिका तीज़

depth of field photo of diety god statuette

हिन्दू कैलेंडर के अनुसार पांचवां महीना और मानसून का दूसरा महीना श्रावण का होता है जिसको भोजपुरी में सावन भी बोलते हैं। श्रावण मास बड़ा ही शुभ और भक्तिमय माहौल लिए हुए होता है जगह जगह कांवरिये बोल बम करते गंगा जल लेकर भोलेनाथ के धाम जाते दिख जाते हैं। श्रावण मास के सोमवार को व्रत करने से मनचाहा पति मिलने की आस्था रखने वाले बहूत लोग हैं। इन्हीं व्रत और त्यौहारों में एक व्रत होता है तीज़ का। तीज़ का मतलब तीसरा दिन या तो पूर्णिमा के बाद का तीसरा दिन या फिर अमावस्या के बाद तीसरा दिन। इस तरह यह एक महीने में दो बार पड़ता है एक बार शुक्ल पक्ष की तृतीया और एक कृष्ण पक्ष की तृतीया।श्रावण और भाद्रपद दोनों महीने में 4 तृतीया आती है जिसमें से 3 तृतीया को हम तीज़ के रूप में मनाते हैं जो मुख्य रूप से उत्तर भारत में उत्तर प्रदेश, बिहार, और राजस्थान में बहुत ही उल्लास के साथ मनाया जाता है। तीज में विवाहिता महिलाएं अपने पति की मंगल कामना के लिये और विवाह योग्य लड़कियां अपने मनपसंद वर के लिए मां पार्वती और महादेव की आराधना करते हैं निर्जला व्रत और पूजा बंदन भी करते हैं।

हरियाली तीज

यह श्रावण के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है और उसके 2 दिन बाद नागपंचमी का त्योहार आता है। जैसा कि इसके नाम से ही ज्ञात होता है इसमें स्त्रियां हरे वस्त्र पहनकर और हरे रंग के ही श्रृंगार करके पूरे दिन व्रत रहकर शाम को मां पार्वती और शंकर जी की प्रतिमा की पूजा करती हैं और दिन भर अपने को व्यस्त रखने के लिए माला फूल से सजावट और बाकी परिवार वालों के लिये तरह तरह के व्यंजन बनाती हैं। 2021 में यह 11 अगस्त को होगा।

Ladies celebrate Hariyali Teez

कजरी तीज़

यह भाद्रपद शुक्लपक्ष की तृतीया को मनाया जाता है और रक्षा बंधन के तीन दिन बाद और इसके 5 दिन बाद कृष्ण जन्माष्टमी मनाया जाता है। कजरी का शाब्दिक अर्थ ही विछोह है तो जहाँ भी यह त्योहार मनाया जाता है वहाँ विवाहिता स्त्रियां इसे अपने मायके जाकर मनाती हैं मतलब ससुराल और पति से दूर। इस दिन नीम की पूजा होती है और तरह तरह के झूले डालकर लड़कियां और स्त्रियां तमाम गीत गाते हुए झूला झूलती हैं। कजरी गीत अपने आप में अलग ही शैली है और इसको पसन्द करने वालों का अपना अलग ही एक वर्ग है। मिर्ज़ापुर की कजरी बहुत ही मशहूर है। यह मानसून त्यौहार है और इस समय तक किसान अपने खेतों में खरीफ फसलों की रोपाई करते हैं इसी के महत्व को बताने के लिए गांव में बच्चियां मिट्टी का एक गोला बनाकर उसमें जौ का बीज लगाकर 10 से 15 दिन उसकी देखभाल करती हैं और उसके बाद उसके फसल (जरई)को सबके कान पर रखकर आशीर्वाद लेते हैं। 2021 में यह 25 अगस्त को है।

wood sea landscape beach

हरितालिका तीज़

यह भाद्रपद के कृष्णपक्ष की तृतीया को मनाया जाता है इसके अगले दिन ही गणेश चतुर्थी मनाया जाता है और हरियाली तीज के एक महीने बाद पड़ता है। इस दिन विवाहिता स्त्रियाँ 24 घण्टे निर्जला ( बिना अन्न, जल) व्रत रहकर भगवान शिव व पार्वती माँ की आराधना करती हैं और अपने सुहाग और संतान की दीर्घायु और मंगलकामना की प्रार्थना करती हैं। 2021 में यह त्योहार 9 सितंबर को पड़ रहा है।

Beatuitful bride celebrating Haritalika Teez

व्रत कैसे करते हैं

हरितालिका तीज़ तीनों तीजों में सबसे महत्वपूर्ण और सबसे कठिन होता है। इसको करने वाली स्त्री सुबह सूर्योदय होने से पहले अपने दैनिक कार्य निवृत्त करके स्नान ध्यान करके घर को साफ सुथरा करके तोरण मंडप सजाती है। बालू या मिट्टी से शिव गौरी की प्रतिमा बनाती है 16 श्रृंगार करके सौभाग्य सूचक सभी सामग्री जैसे फल, फूल, पान, वस्त्र, दुग्ध, दही, मिष्ठान, बेलपत्र, अक्षत, कुमकुम सुहाग की सामग्री ( चूड़ी, बिंदी आदि) इकट्ठा करके फिर किसी आचार्य से या स्वयं व्रत कथा वाचन करती है। अगले दिन यह सब सामग्री प्रतिमा सहित नदी में प्रवाहित करते हैं।

तृतीया तिथि के सूर्योदय से चतुर्थी तिथि के सूर्योदय तक बिना जल और अन्न के रहना होता है साथ ही साथ इस व्रत में शयन वर्जित होता है। इस व्रत को करने वाला इस व्रत को छोड़ नहीं सकता है विशेष परिस्थितियों जैसे किसी बीमारी या गर्भावस्था में उसकी जगह उसके पति उसका व्रत कर सकते हैं।

व्रत के पीछे की मान्यता और शाब्दिक अर्थ

ऐसी मान्यता है कि मां पार्वती और शिव जी की जोड़ी आदर्श जोड़ी है जन्म जन्मांतर में हर जन्म में माँ पार्वती ने शिव जी को ही पति के रूप में चुना। मां पार्वती के रूप में जब उनका जन्म हुआ तो उनके पिता गिरिराज हिमालय और माता मैना उनकी शादी विष्णु जी से करवाना चाहते थे ऐसे में वह जंगल में जाकर बहुत कठोर तप की जिससे शिव जी का आसन हिलने लगा तब भगवान भोलेनाथ ने मां पार्वती को अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया। जंगल में तप करने के लिए मां पार्वती की सहेलियाँ उन्हें हरण करके ले गईं इसीलिए इस व्रत को हरतालिका ( हरत+आलिका) कहते हैं जिसमें आलिका मतलब सहेलियों से है और हरत मतलब भगा ले जाना।

तीज़ के बारे में यह मान्यता भी है कि देवी सती की मृत्यु के बाद कई सौ साल के लंबे इंतजार के बाद इस दिन माँ पार्वती को भगवान शिव की स्वीकृति मिली थी उनकी अर्धांगिनी के रुप में। स्त्रियों और बच्चों में इन त्योहारों का उत्साह देखते ही बनता है। एक तो श्रावण मास में प्रकृति अपने उत्कर्ष पर होती है ऊपर से यह तीज़ त्योहार उसपर चार चाँद लगा देते हैं।

इन सब पौराणिक कथाओं के अलावा इस व्रत का  वैज्ञानिक कारण यह है कि श्रावण और भाद्रपद मास की हरियाली और मनभावन मौसम में कौन सी स्त्री अपने आपको सुसज्जित नहीं करना चाहेगी साथ ही साथ वज़न नियंत्रण और मानसून की बीमारियों से दूर रहने के लिए व्रत रहना काफी फलदायक होता है।

तो आप भी मानसून के साथ ही ये पर्व मनाइये और कुछ जानकारी अधूरी रह गई हो तो हमें कमेंट करके ज़रूर बताएं।

गुरू पुर्णिमा: नमन गुरुजन को

light man people woman

 

 

हमलोग बचपन से ही सुनते आ रहे हैं :

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेेेश्वरः ।

गुरुः साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः ।।

मतलब ब्रम्हा विष्णु महेश सब एक गुरु में ही शामिल हैं गुरू की पदवी सबसे बड़ी है। वैसे तो साल के 365 दिन भी गुरु की महिमा और पूजा के लिए कम हैं लेकिन आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। इस दिन हमारे वेदों के जनक ऋषि वेदव्यास का जन्म हुआ था ।  उनका बचपन का नाम कृष्ण द्वैपायन व्यास था और वह ऋषि पराशर के पुत्र थे । उन्होंने महाभारत के साथ ही साथ चारों वेदों ऋग्वेद, सामवेद ,अथर्ववेद और यजुर्वेद को लिखा। उन्हें  आदिगुरु का दर्जा प्राप्त है और उन्हीं के सम्मान में तब से यह दिन गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है ।

2021 में यह 24 जुलाई को है।

गुरु पूर्णिमा, जिसमें सभी लोग अपने गुरुओं खासकर अध्यात्म  और अकादमी गुरु से मिलकर उनकी पूजा अर्चना करते हैं। मिर्ज़ापुर में कुछ गुरु जैसे स्वामी अड़गड़ानंद, देवरहा बाबा, जैसे गुरुओं का आश्रम भक्तों से भरा होता है। और भी अध्यात्म गुरु जैसे स्वामी परमहंस, सत्य साईं बाबा, सुदर्शनाचार्य, स्वरूपानंद सरस्वती, स्वामी ज्ञानानंद, ओशो जैसे अनेकों नाम शामिल हैं जिनके भक्तों की संख्या करोड़ों में हैं । इन गुरुओं की भी गद्दी परम्परा होती है उनके बाद उनके वारिस उनकी गद्दी सम्हालते हैं और पीढ़ी दर पीढ़ी गुरु और शिष्य परम्परा चलती रहती है।

गुरु में ‘गु’ का मतलब अंधकार या अज्ञान और ‘रु’ का मतलब दूर करने वाला अर्थात गुरु का शाब्दिक अर्थ ही है अंधकार या अज्ञान दूर करने वाला। इस पर्व की ख़ास बात यह है कि यह हिन्दू, बौद्ध, जैन, सिख सभी धर्मों में मनाया जाता है।

इस दिन खीर दान में देने की भी परम्परा है। यह पर्व आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है आषाढ़ मास चतुर्मास (आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद और अश्विन) में पड़ता है जिसमें सभी गुरु, सन्त महात्मा नगर, कोलाहल से दूर अध्यात्म और ज्ञान की तलाश में वन में प्रस्थान कर जाते हैं और इस समय प्रकृति भी हरियाली और ख़ुशनुमा माहौल लेकर ज्ञान बढ़ाने के लिए अनुकूल वातावरण देती है।

जीवन सतत बढ़ते रहने का ही नाम है और आगे बढ़ने के लिए कुछ न कुछ सीखते रहना चाहिए इस संसार में कुछ भी परफेक्ट नहीं हैं ज्ञान अगर अपने से छोटे से भी मिले तो ले लेना चाहिए । कई बार समस्या इतनी गम्भीर नहीं होती जितनी हम समझते हैं फर्क सिर्फ नज़रिए का होता है कबीर दास का एक दोहा है:

गुरु कुम्हार शिष्य कुम्भ है गढ़ी गढ़ी काढ़े खोट ।

अंदर हाथ सहार दे बाहर बाहै चोट ।।

जिस तरह आप किसी कुम्हार को बर्तन बनाते हुए देखेंगे तो ऐसा लगेगा कि वह बरतनों पर बहुत तेज़ी से मारकर उन्हें तोड़ न दे लेकिन उसका एक हाथ बर्तन के अंदर भी होता है जो बर्तन को सहारा देता है ठीक उसी तरह का गुरु शिष्य का रिश्ता भी होता है हमारे अंदर की कमियों और बुराइयों को दूर करने के लिये कई बार गुरु कई कठोर निर्णय लेते हैं जो तुरंत तो दुखदाई होते हैं लेकिन दूरगामी सुखद परिणाम देते हैं।

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में वैसे तो हम सभी के लिये मॉडर्न गुरु गूगल ही हो गया हैं, फिर भी अपनी ज़िंदगी को एक दिशा देने वाले अपने गुरुजन को कम से कम इस दिन जरूर याद करें और दिल से उनका धन्यवाद करें क्यूंकि जब हम जिंदगी का पहला कदम उठाने में हिचकिचा रहे थे या डर रहे थे तब हमारा हाथ मज़बूती से थामे ये गुरुजन ही थे वो मां के रूप में हों या स्कूल की पहली टीचर के रूप में, हमें हर मुश्किल से लड़ना सिखाया और हर हालात में साथ खड़े रहे।

गुरु पूर्णिमा के दिन ऐसे सभी गुरुओं को शत शत नमन।

 

दो पल अपने लिए

चाहे कितने ही हो मशरूफ ज़िन्दगी में

दो पल अपने लिए ज़रूर निकालो यारों

बड़ी सुकून देती है वो बालकनी में चाय

अड़ोस पड़ोस या पुराने दोस्तों से हाय

कभी बच्चों के साथ बचपना करना

तो कभी बाग की ताजी हवा फेफड़ों में भरना

कुछ ऐसे अरमान जो आँखों में रह गए

या फिर विदाई के संग आंसुओं में बह गए

हो ज़िंदा इस बात को बनाए रखना

कभी सोकर तो कभी जगके सपने बनाए रखना

ज़िंदगी में चाहे कितने भी हो गम

चाहे उस पर लगानी पड़े खुद ही मरहम

जगी या फिर सोई हुई आँखों से देखे हुए ख्वाब

सबका तुम्हे देना है खुद को जवाब

 

कोरोना महामारी. एक गुज़ारिश सबसे

unrecognizable little boys holding hands and walking on sandy seashore

 

आज जब पूरा विश्व ही कोरोना नामक महामारी से गम्भीर रूप से जूझ रहा है कोई भी इस से अछूता नही है। हर घर में कोई न कोई बीमार है और कई घरों में तो पूरा का पूरा परिवार ही बीमार है। ऐसे में घरों में रह रहे छोटे बच्चे की हालत वाकई चिंताजनक है। जब घर के बड़े ऐसी बीमारी से त्रस्त हों जिसमें सिर्फ छूने आसपास रहने से यह रोग होने का डर हो वैसे में छोटे बच्चों को कोरोना प्रोटोकॉल समझाना फॉलो करवाना बड़ा ही मुश्किल काम है।

आज जहाँ मानवता दम तोड़ रही है लोग बस अपनी जान बचाने में लगे हैं किसी को किसी से कोई खास फर्क नहीं पड़ता ऐसे में अगर आपके जानपहचान में या आसपास कोई कोरोना संक्रमित हो और उन्हें सिर्फ आपके दो मीठे बोल या सिर्फ हम हैं ना इतना सुनना ही इम्युनिटी बूस्टर का काम कर जाए। विशेषज्ञ भी यही कह रहे हैं कि लोग कोरोना की वजह से कम मर रहे उसके खौफ से ज्यादा मर रहे। अगर आपके जान पहचान में आसपास कोई संक्रमित है और उनके यहाँ कोई भी देखभाल के लिए नहीं है तो हो सके तो उनके खाने और दवाई की व्यवस्था अगर आप कर पाए तो यकीन मानिए की इससे बड़ी सहायता इस समय भगवान भी उनकी नहीं कर सकते। हां इन सबमें खुद को भी बचाना है तो खुद की सुरक्षा का पूरा ध्यान रखें और संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में न आएं।

कहीं पढ़ा था कि फांसी की सज़ा पाए हुए कैदियों को बोला गया कि उनको सांप से कटवाकर मारने की सज़ा दी जाएगी। उनके आंखों पर पट्टी बांध कर सिर्फ मामूली सी पिन चुभाई गई और उन कैदियों की मौत हो गई और बाद में जांच में उनके शरीर में जहरीले साँप के काटने जितना ज़हर पाया गया। अब सोचने वाली बात है कि यह ज़हर आया कहाँ से🤔  तो यह ज़हर हमारे खुद के शरीर ने डर की वज़ह से बना लिया। इसलिए बिना वजह परेशान और टेंशन न लें। अगर आपको खांसी, बुखार आ भी रहा तो फोन से डॉ से कंसल्ट करें और बिना रिपोर्ट का wait किये अपने आपको घर में ही आइसोलेट कर ले ताकि घर के बाकी लोग सेफ रहें। डॉ के सुझाव के अनुसार दवा और चेक अप करवाए और जितना हो सके आराम करें। breathing एक्सरसाइज़ भी करते रहें और साफ औऱ हवादार कमरें में रहें।

ऑक्सीजन और टेम्प्रेचर मोनिटर करते रहें । कोरोना से डेथ रेट अभी भी संक्रमित होने वालों की तुलना में बहुत कम है तो अपना ध्यान रखें और खुद को व्यस्त रखने की कोशिश करें हर तरफ की नेगेटिविटी से दूर रहने की कोशिश करें। न्यूज़ और सोशल मीडिया से एक दूरी बनाना ज्यादा बेहतर है। 

एक गुज़ारिश है सबसे ऐ दोस्त

हाल-ए-खबर रखना सबका

माना कि मुश्किल दौर है अभी

हो जाएगा ये भी खत्म एक दिन

सिर्फ दवा ही नहीं दुआएं भी ज़रूरी हैं

फिक्रमंद को बेफिक्री का अहसास भी ज़रूरी है

हर रात के बाद सुबह है आती

मन में ये विश्वास पक्का हो ये भी ज़रूरी है।

जंग जीत तो लेते हैं सभी

लेकिन उसमें अपनों का अहसास भी ज़रूरी है।

तन्हाई मुँह बाये अजगर सी खड़ी है

उससे कैसे है बचना वो भी ज़रूरी है।

 

क्या है अक्षय तृतीया? जानें इससे जुड़े कुछ और तथ्य

 

Akshaya Tritiya

हमारे भारत देश की परम्परायें, संस्कृति, रहन सहन, खान पान और त्यौहार सभी के पीछे कुछ न कुछ धार्मिक और वैज्ञानिक कारण ज़रूर होता है। यही कारण है कि प्राचीन काल से हम ऋषि मुनियों और कृषि आधारित परिवेश में पल बढ़कर कई तरह की औषधियों और रोग प्रतिरोधक क्षमता को विकसित करने के लिए उचित खान पान अपने निजी जीवन में अपने आप ही सम्मिलित किये हुए हैं।

ऐसे ही आज यानी 14 मई 2021 को वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि है जिसको अक्षय तृतीया भी कहतेहैं।अक्षय तृतीया नाम तो हममे से सबने ही सुना होगा आज हम इसके महत्व और इसकी विशेषता के बारे में जानते हैं।

अक्षय तृतीया एक ऐसी तिथि है जिसपर आप कोई भी शुभ कार्य  जैसे शादी, मुण्डन, गृह प्रवेश, कर्ण छेदन, यज्ञोपवीत आदि  बिना पंचांग देखे कर सकते हैं।

हिन्दू मान्यता के अनुसार पूरे साल में 4 ऐसी अबूझ तिथियां होती हैं जिस दिन कोई शुभ कार्य करने के लिये किसी विचार, विमर्श की ज़रूरत नहीं होती। ये चार तिथियां हैं अक्षय तृतीया(वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि), भड़ली नवमी(आषाढ़ माह में शुक्ल पक्ष नवमी तिथि),देव उठनी एकादशी(कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी) और बसन्त पंचमी। इनको अबूझ तिथियां भी कहा जाता है।

इस दिन से जुड़ी कुछ घटनाएं

1.अक्षय तृतीया ही वह तिथि है जिस दिन सतयुग से त्रेतायुग की शुरुआत हुई थी।

2.इसी दिन भगवान विष्णु के छठवें अवतार भगवान परशुराम का जन्म हुआ था। परशुराम सप्तर्षियों में से एक ऋषि जमदग्नि तथा रेणुका के पुत्र थे। यह ब्राह्मण कुल में जन्में।

3.इसी दिन मां गंगा स्वर्ग से धरती पर अवतरित हुई थी।

4.इस दिन मां अन्नपूर्णा का भी जन्मदिन मनाया जाता है। मां अन्नपूर्णा के पूजन से रसोई का अन्न भंडार अक्षय रहता है।

5.अक्षय तृतीया के दिन ही महर्षि वेदव्यास ने महाभारत लिखना आरम्भ किया था।

6.अक्षय तृतीया के दिन ही पांडव पुत्र युधिष्ठिर को अक्षय पात्र की प्राप्ति भी हुई थी।उसकी विशेषता यह थी कि इसमें कभी भी भोजन समाप्त नहीं होता था।

7.अक्षय तृतीया के दिन ही चार धामों में एक बद्रीनाथ के कपाट खुलते हैं और जगन्नाथ पुरी रथयात्रा भी शुरू होती है।

ऐसी मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन किये गए कोई भी पुण्य कार्य, दान,  पूजा पाठ कई गुना रूप में आपको अगले जन्म तक मिलते रहेंगें।

चूँकि भगवान विष्णु ने इस दिन अपना एक अवतार लिया था इसलिए इस दिन विष्णु प्रिया लक्ष्मी जी की पूजा आराधना का विशेष प्रयोजन है साथ ही साथ भारतीय संस्कृति में इस दिन सोना खरीदने का भी रिवाज़ है ताकि उनका धन धान्य हमेशा भरा रहे अक्षय मतलब शाश्वत इसलिए लोग अपने जीवन में समृद्धि लाने के लिए कार, महंगे इलेक्ट्रॉनिक सामान वगैरह भी खरीदते हैं।

अक्षय तृतीया के दिन का अपना एक वैज्ञानिक कारण भी है कि इस दिन सूर्य और चंद्रमा दोनों अपने अधिकतम विकिरण के साथ अपने उच्चतम स्थान पर होते हैं जोकि ज्योतिष के अनुसार एक शुभ संयोग होता है और ऐसे में किये गए सभी कार्य शुभ फल देते हैं।

फिलहाल तो कोरोना महामारी का भयंकर प्रकोप देखते हुए घर में रहे सुरक्षित रहें और घर में रहते हुए अपने रीति रिवाज और त्यौहार समझते हुए कोरोना से लड़ने के लिए अपनी इम्युनिटी मज़बूत करते रहें और हौसला मज़बूत रखें।

लॉक डाउन तब भी था और अब भी है।

पिछले साल भी लॉक डाउन हुआ और हुआ इस साल भी ।

पिछले साल ताली भी पिटी  और पीटी थाली भी।।

लेकिन इस साल न कोई बोल रहा न कोई करने वाला

हर तरफ मौत घूम रही बिना तलवार बिना भाला।।लॉक डाउन छवि

घर में भरा हुआ है मेवा भी और मैदा भी

न बनाया जा रहा अब खाना भी खज़ाना भी।।

तब ज्यादा पता न था बीमारी का न इलाज का ही आईडिया था

तब भी घर में रहकर रामायण देखना ही बढ़िया था।।

इस बार 3-3 वैक्सीन होकर भी एक अनजाना सा डर है

न जाने किस घड़ी किस पल कब किसका नम्बर है।।

पिछले साल कुछ आंकड़े थे  सीनियर सिटीजन थे या थे कुछ नम्बर

कब बदल गए वो अपने ही किसी पड़ोसी, खुद या किसी रिश्तेदार में

भरोसे की उड़ गई धज़्ज़ियाँ हैं यारों

क्या डॉक्टर क्या मरीज़ सब तरफ हालात बिगड़ें हैं।।

ख्वाहिश थी मंगल पे आशियाना बनाने की

अब तो पता ही नहीं धरती पे ठिकाने की।।

कोरोना तब और अब…2021 में भी ज़ंग जारी है

Corona 2021दिसंबर 2019 सुनकर आपके दिमाग में अपने हिसाब से अलग अलग स्मृतियां हो सकती हैं लेकिन एक भयावह स्मृति जो दिन प्रतिदिन और भयावह होती जा रही है वह यह है कि यहीं से कोरोना नामक महामारी हमारे संज्ञान में आई थी उस समय किसी को भी पता नहीं था कि ये क्या है, इसके लक्षण क्या है और सबसे महत्वपूर्ण की इसका इलाज़ क्या है? एक वो दिन था और एक आज का दिन कहने को तो हम 2019 से 2021 में पहुंच गए लेकिन कोरोना के मामले में हम ज्यादा कुछ नहीं कर पाए और यह महामारी दिन पर दिन और विकराल रूप लेती जा रही। दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने अथक परिश्रम करके कोरोना की वैक्सीन बना तो ली लेकिन लगता है कोरोना वायरस भी आंख मिचौली खेलने के मूड में है अभी 2021 में उसका जो म्युटेटेड version ( यूके वैरिएंट, साउथ अफ्रीकन वैरिएंट और ब्राजील वैरिएंट) आया है और खतरनाक बताया जा रहा खासकर बच्चों के लिये।

पेरेंटिंग के लिये कठिन समय

इस महामारी का शिकार तो सभी ही हैं किसी न किसी रूप में लेकिन हमारे मासूम बच्चे जो दिन में एक मिनट भी बैठना नहीं चाहते उनकी पुरी दुनिया ही चारदीवारी में कैद हो गई है। उनका मासूम बचपन उनके दोस्त साथी और सबसे बड़ी बात उनके स्कूल टोटल उन मोबाइल फोन और लैपटॉप पर निर्भर हो गए जिनसे हम उनको दूर रखने की कोशिश करते रहे। ऐसे में उनकी फिजिकल हेल्थ के साथ ही साथ मेन्टल हेल्थ भी दांव पे लगी हुई है और उसपर दुःखद पहलू यह है कि हममें में से कोई भी नहीं बता सकता कि इन हालातों से निकलने में कितना समय लगेगा और कब तक सब सामान्य होगा।

पर अभिभावक भी परिस्थितियों के आगे मजबूर हैं किंतु समय संयम दिखाने का हैं । कोशिश करें ये सबके लिए मुश्किल समय है, कोरोना से तो जंग चल ही रही, अभी समय है अपना मानसिक संतुलन नियंत्रित रखने के साथ ही साथ अपनी इम्युनिटी मज़बूत रखें। सब तरफ नकारात्मक शक्तियां ही सक्रिय हैं तो कोशिश करें कि खुद को और अपने परिवार को सकारात्मक माहौल देने की कोशिश करें और घर में हँसी खुशी का माहौल बनाए रखने की।  इसके लिए ज्यादा से ज्यादा बच्चों के साथ इन्वॉल्व रहें खुद भी व्यस्त रहें और बच्चों को भी रखें।

कोरोना के डर से ही सही, ज़िन्दगी को फुर्सत तो मिली; सड़कों और बाजारों को राहत, और घरों को रौनक तो मिली।

ऐसे में कुछ सकारात्मक कदम उठाये जा सकते हैं जैसे कि:

  1. जितना हो सके न्यूज़ और अफवाहों से सावधान रहें।
  2. दिमाग में यह बनाये रखें कि यह भी एक समय है गुजर जाएगा। ये एक लाइन ऐसी है जो सुख और दुख दोनों में ही सुकून देती है।
  3. जितना संभव हो संगीत सुनें, अध्यात्म, भजन आदि भी सुन सकते है, बच्चों के साथ बोर्ड गेम खेलें, परिवार के साथ बैठकर आने वाले वर्षों के लिए प्रोग्राम बनाएं ।
  4. दूसरों को वायरस से संबंधित सलाह ना दें क्योंकि सभी व्यक्तियों की मानसिक क्षमता एक सी नहीं होती, कुछ डिप्रेशन अर्थात अवसाद का शिकार हो सकते हैं ।
  5. आपकी नकारात्मक सोच-विचार की प्रवृति डिप्रेशन बढ़ाएगी और वायरस से लड़ने की क्षमता कम करेगी दूसरी ओर सकारात्मक सोच आपको शरीर और मानसिक रूप से मजबूत बनाकर किसी भी स्तिथि या बीमारी से लड़ने में सक्षम बनाएगी ।

आइये मिलकर-सकारात्मक विचार फैलाए “ईश्वर आपको स्वस्थ और प्रसन्न रखे”।

Different Shades of Life

कोरोना और उसका बचाव

चलते चलते फिर से कोरोना और उससे बचाव की बाते दोहरा लिया जाये ताकि यह लड़ाई अपने निर्णायक अंत पर पहुचे और हम सभी सकुशल इसमे जीत जाये।

  1. कोरोना के बचाव का सबसे मुलभूत तरीका आज भी मास्क लगाना, सेनेटाइजर का उपयोग और सोशियल डिस्टेसिग ही है। फिर से इसे आदत में लाये।
  2. कोरोना के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी लगभग सबको ही है कुछ और लक्षण शामिल हो गए हैं जैसे उल्टी या चक्कर जैसा लगना , कमज़ोरी थकान अनुभव करना, पेट खराब होना , ठंड के साथ बुखार आना ये कुछ नए लक्षण हैं जो कोरोना का नया स्ट्रेन अपने साथ लाया है।
  3. कोरोना का वायरस बॉडी में एंटर करने से पहले 3, 4 दिन तक गले में रहता है इसलिए गर्म चीजों का उपयोग करने की सलाह दी जाती है जैसे गर्म पानी, काढ़ा, हल्दी आदि। क्योंकि वायरस के ऊपर कोई रिजिड वाल नहीं होती एक लिपिड लेयर होती जो गर्म चीजों या नमक से नष्ट हो जाती ऐसा वैज्ञानिक मानते हैं।
  4. वैक्सीन के बारे में भी कई भ्रांतियां फैली हुई हैं उस पर ज्यादा ध्यान नहीं देना है। बच्चों को वैक्सीनेशन तो हम सबने करवाया ही है यह भी वैसी ही वैक्सीनेशन है इसको करवाने के बाद एक दो दिन थोड़ा सावधानी बरतने की ज़रूरत रहती की बुखार वगैरह तो नही आ रहा साथ ही साथ यह आपको कब तक सुरक्षित रखेगा इस बारे में सबके अलग अलग मत हो सकते लेकिन ध्यान रखिये की आज के माहौल में कोरोना से बचने का सबसे सुरक्षित तरीका वैक्सीनेशन ही है।
  5. बच्चों के लिए तो वैक्सीन का भी कोई अता पता नहीं है ऐसे में विकल्प यही है कि सावधानी के साथ घर में रहे खासकर 10 साल से कम के बच्चों को तो किसी भी रूप में न निकलने दें  और सभी नियमों का कड़ाई से पालन करें कोई भी लक्षण दिखने पे सतर्क हो जाएं  और बचाव के उपाय करते रहें।

वैसे तो कोरोना एक जंग हैं पर इस सुक्ष्म जीव को हम ऑखो से देख नही सकते इसलिये हर जगह लड़ाई ही सफल नहीं होती, प्रकृति के प्रकोप से बचने के लिए हमें भी कुछ समय के लिए सारे काम छोड़ कर, चुपचाप हाथ जोड़कर, मन में सुविचार रख कर एक जगह ठहर जाना चाहिए तभी हम इसके कहर से बचे रह पाएंगे।

 

 

क्या है होलाष्टक ? जानें इसका महत्व

Holastak

होली रंगों का त्यौहार है जो ढ़ेरों रंगों के साथ ही साथ अपने संग ले आता है प्रेम और सौहार्द और सारे गिले शिकवे भुला देता है। 2021 में होली 28 मार्च से शुरू होकर 29 मार्च तक चलेगी।

वैसे तो होली क्यों मनाते हैं इसके पीछे की कहानी हम बचपन से पढ़ते आ रहे हैं। भगवान का अनन्य भक्त प्रह्लाद को जब उनके पिता अपने तमाम प्रयासों के बाद भी मार नहीं पाए और न ही भगवान की भक्ति करने से रोक पाए तब उन्होंने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद को गोद में लेकर ज़िंदा ही आग में बैठने को बोला । होलिका को ये वरदान था कि वो आग में जल नहीं सकती । लेकिन भगवान भक्त की न सुने ऐसा कहाँ सम्भव है और होलिका जल गई और प्रह्लाद वैसा ही आग से बाहर निकल आया। तब से होली फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है और उसके एक दिन पहले होलिका दहन  मनाया जाता है।

भारत कृषि प्रधान देश है और यहाँ त्यौहार भी कृषि कार्यों से फुरसत पाने के बाद ही मनाने का रिवाज़ है। ठीक इसी तरह होली का समय भी ऐसा ही कुछ होता है जब रबी की फसल लगभग तैयार होती है और  किसान उत्सव के मूड में होते हैं और त्यौहारों का भी सीजन शुरू हो जाता है होली के बाद ही चैत्र नवरात्र भी शुरू हो जाते हैं।

होली से आठ दिन पहले होलाष्टक लग जाता है यह फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष के अष्टमी तिथि से शुरू होता है इसलिए इसको होली और अष्टमी मिलाकर होलाष्टक बोला जाता है।  2021 में यह 22 मार्च से शुरू होकर 28 मार्च तक चलेगा।  यह भक्ति की शक्ति दिखाने का त्यौहार है। जिसमें कई मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं और होली के त्यौहार की तैयारियां ही की जाती हैं। होलाष्टक में घर खरीदना, गृह प्रवेश, वाहन खरीदना, भूमि पूजन, किसी नए कार्य की नींव नहीं रखी जाती है। इसके साथ ही मांगलिक कार्य  शादी विवाह, जनेऊ, मुंडन,  कर्ण छेदन आदि भी वर्जित माने गए हैं।

होलाष्टक में भगवान का भजन और उपासना करनी चाहिए। बसंत के मौसम में कई बदलाव होते हैं जिनका प्रभाव शारीरीक और मानसिक दोनों सेहत पर होता है। मौसम ठंड से गर्म की ओर बढ़ता है ऐसे में तमाम बैक्टीरिया और तमाम सूक्ष्म जीव वातावरण में तेज़ी से सक्रिय हो जाते हैं जिन्हें होलिका की अग्नि और उसका धुआं नष्ट कर देते हैं।

सूर्य की स्थिति के हिसाब से मौसम बदलने के साथ ही हार्मोन्स और एंजाइम भी बदलते हैं जिससे मूड स्विंग और हार्ट और लीवर में बदलाव महसूस होता है जो इस बात की तरफ इशारा करते हैं कि हमें अपने खानपान और रहन सहन में बदलाव की ज़रूरत है।

तो अपना ध्यान रखते हुए त्यौहारों का आनंद लीजिये और मेरे ब्लॉग पर भी अपनी प्रतिक्रिया ज़रूर दें।

The Corona teachings: Journey from 2021 to 2022

The Year 2021 has just passed by, the year will be remembered for Corona Pandemic around the world and survival struggle of mankind against it. With the advent of New Year 2022, the hope of overcoming this pandemic has started brewing with majority population are now vaccinated. So it’s high time to take a pause, look into flashback memories and realize that, did the cruel Pandemic teach us anything or can we learn any thing from heartbreaking Pandemic. Though corona tragedies made us realize how much we are superficial and brittle in humanity, feelings and overall responsibilities. But in the hindsight it also gave us some positive lessons we must not ever forget ever. I have tried to list few based on my experience which you might also agree:

1.Every problem has solution.

It’s a old slogan but in corona pandemic it is again proved that every problem has a solution. From simple steps of Social distancing, mask, sanitizer and now vaccine within just 1year, all have come as solution of once looked unconquerable corona pandemic. The need is not to be bogged down  or loose balance, but face the problem head on for solution. Its true of individuals, society or even country.

2.Problems brings opportunity also.

Though many lost their livelihood in pandemic but some looked it in another way and started from scratch to turn away this misfortune, turning adversities into opportunities. This pandemic gave new opportunities to the makers of mask and PPE kit as well as of sanitizer makers. Even many giant companies realized that there is no need of such big company infrastructure and maintenance, work can be done from home, helped them optimizing the cost and sail through turbulent times.

 

3.Savings are capital.

As a generation, we always lived by credit cards and spending like there is no tomorrow. We forgot the golden learning taught by our elder to save a little for hard times. Corona pandemic told us that you never know when you became jobless, homeless or may be with half salary. So keeping some saving for such unknown future should always be mantra from now.

4.Every work has its own importance, no work is small.

With spread of pandemic and the lockdown followed, we all got locked up in our houses. We then realized that even managing good & clean home is both an art and a science. Corona pandemic told us that no work is small and even sweeper and house maids are much more important for maintaining our life continuity. So always respect the service rendered by them which we lot of time forget to do.

5.Patience is real strength.

Our patience is terribly tested by this Pandemic by closing us in our houses and making a social distance from community. So we could not go out for office, for shopping and meeting our friends, children could not go to parks & what not. but we all waited patiently to see the things change slowly and finally the happy days are again knocking our doors.

6.Incomplete knowledge is dangerous.

When Corona struck us, no body had any idea about this deadly virus. And every day some new information came some baked and some half baked. With fast paced social media apps and internet, at start many rumors were also got circulated about corona which caused large scale spread of disease. So, rather trusting any forwards, a clear and complete information of any situation, may be from multiple sources can help us to make better decisions.

7.Many droplets in combined may fill ocean.

When this terrible tragedy struck, no one was sure how to respond. Everything was looking big mesh and no where to start from. Then some wise people started individual efforts at their level to untie the situation, then lot of single efforts started pouring from all side and from the combined efforts of these, lot of help could be generated for needy people. So no effort is small however big the problem is, the better will come one day only when a small start is made by some one somewhere and need is to unite the people in worthy cause.

8.Superheros really exists.

We all grow up following media & cricket stars, thinking them reel heroes on screen. But in Pandemic Doctors, Nurses, Health workers, Paramedical staffs, Police even Ambulance drivers turned out to be real superheros, as it were them who stood in front line to save us from deadly virus with scant regard for their safety and families. So, now when your little toddler ask you that whether Superheros exist, tell them that Yes, superheros really exist and we have seen them toiling hard against virus and saving lifes.

9.The more you distribute to needy people, more you have.

The pandemic brought out some of best trait of human being that is to help others. Many hands came forward to help the people in distress and keep the spirit of humanity alive. Many distributed clothes, foods, medicines, water and got themselves richer by earning the blessing of distressed mothers, sisters, fathers and sons.

संवेदनहीन और भावशून्य होता इंसान

भारत! कोरोना! लॉकडाउन

आज विश्व के सभी देशों में कोरोना का कहर फैला हुआ है। अमेरिका, इटली, चीन जैसे विकसित और हर तरह से सम्पन्न देश भी इस वायरस के सामने पानी माँगते नज़र आ रहे। ऐसे में भारत जहाँ पहले से ही मूलभूत सुविधाओं के लिए जद्दोजहद मची हुई थी, इस विपदा से लड़ने के लिए कोशिश तो बहुत बढ़िया की, पर अभी हाल-फिलहाल स्थिति दिन-प्रतिदिन भयावह होती जा रही है। शुरुआत में ही जब हमारे यहाँ सरकारी आँकड़ों के हिसाब से मात्र 10 केस थे, 22 मार्च से ही लॉकडाउन का ऐलान कर दिया गया। लेकिन ऐलान करते समय इस बात का ध्यान नहीं दिया गया कि हमारे यहाँ आधे से ज्यादा आबादी उस तबके की है जो गाँव से शहर की ओर दो जून की रोटी के जुगाड़ में आई है और वही मजदूर आज अपने ही देश में प्रवासी बन कर रह गए हैं। उनको बहुत लंबे समय तक बैठाकर खिलाना हमारे देश की अर्थव्यवस्था मंज़ूर नहीं कर पाएगी। आज हर तरफ हमारे देश का मजदूर वर्ग परेशान होकर सड़कों पर उतर आया है क्योंकि शहरों में उनका गुजारा अब नामुमकिन हो गया है और गाँव के लिए पलायन करने के सारे रास्ते लॉकडाउन करके बंद कर दिए गए। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या हमारे स्वास्थ्य विभाग को कोरोना की भयावहता का अंदाजा नहीं था कि ये एक दो महीने के लॉकडाउन से खत्म नहीं होने वाला या फिर हमारे आँकड़े इतने कमज़ोर हैं कि सरकारी दफ्तरों में बैठे आला अधिकारियों को ये पता ही नहीं कि हमारी आधी से ज्यादा आबादी उनकी भाषा में “प्रवासी मज़दूरों” की है, जिनको या तो उनके जीवन-यापन के लिए मूलभूत सुविधाएँ उपलब्ध करवाई जाती या उनको पहले ही बता दिया गया होता कि कोरोना से जंग लम्बी चलने वाली है, इसलिए आप लोग अपने गाँव वापस चले जाएँ। अभी फिलहाल जब 2 महीने से लॉकडाउन चल रहा है और इस दौरान सारे कामकाज ठप पड़े हुए हैं, सभी लोग सोच रहे कि घर में बंद रहकर हमने कोरोना से आधी जंग जीत ली। ऐसे में हमारे मज़दूर भाइयों की ह्रृदय विदारक पीड़ा देखकर वाकई हम-आप जैसे लोग निःसहाय ही महसूस कर रहे। उन सभी मजदूरों की पीड़ा हमें आत्म-चिंतन करने को मजबूर कर रही कि किस युग में जी रहे हैं हम, जहाँ हमारे अपने ही चिलचिलाती धूप में परिवार सहित पैदल हज़ारों किलोमीटर के लिए निकल पड़े और हम मूकदर्शक बने हुए हैं। यह वही वोटर हैं जो चुनाव में न निकलें तो गाड़ी भेजकर उनको घर से निकाला जाता है तरह-तरह के लोकलुभावन वादों के साथ और आज जब उन्हें हमारी ज़रूरत है तो हम घर की बालकनी से ताली और थाली पीटने के बाद रामायण आदि में व्यस्त हैं।

लॉकडाउन : कोरोना से बचाव या सिर्फ कोरोना के साथ रहने के लिए खुद को मजबूत करने का तरीका

कोरोना जो कि वैश्विक महामारी के रूप में प्रचंड रूप लेता जा रहा है और तमाम देश जो कि स्वास्थ्य सुविधाओं में अव्वल हैं वो भी अपनी जनता को काल के गाल में समाने से नहीं रोक पा रहे। कुछ दवाइयों के मेल से कुछ लोगों को ठीक किया गया लेकिन अभी तक कोई भी कारगर दवा नहीं बन पाई जिसको बोला जाए कि कोरोना पर 100% काम करेगी।

ऐसे में लॉकडाउन ही एकमात्र विकल्प है भारत के साथ-साथ बाकी देशों में भी कोरोना को फैलने से रोकने का.. अब इसका ये बिल्कुल भी मतलब नहीं कि लॉकडाउन खत्म तो कोरोना खत्म..लॉकडाउन से ये खत्म नहीं होगा बस इसकी चेन टूटेगी और लोग घर से कम निकलेंगे तो कम से कम एक दूसरे के सम्पर्क में रहेंगे और इस दौरान कोरोना से लड़ने की अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा पाएँगे।

भारत में 22 मार्च से शुरु हुआ लॉकडाउन अभी 3rd स्टेज में चल रहा है लेकिन लॉकडाउन शुरू करने से पहले कुछ मुख्य बातों को ध्यान में न रखने की वजह से कोरोना मरीज़ों की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी ही हो रही है।लॉकडाउन शुरू करने से पहले प्रवासी मज़दूरों को उनके घर वापस भेज देना चाहिए था।

दूसरा और सबसे ज़रूरी काम कि विदेश से आने वालों को सिर्फ थर्मल स्कैन करके नहीं छोड़ना चाहिए था बल्कि उनकी प्रॉपर जाँच होनी चाहिए थी।कुछ एहतियात के साथ सोशल डिस्टेंसिंग लागू होती तो शायद हम कोरोना की जंग में अब तक जीत चुके होते लेकिन अब भुखमरी और गरीबी,सुरसा की तरह हमारे सामने मुँह फैलाए खड़ी है I

कोरोना की वैक्सीन हो सकता है एक दो महीने में बन जाए और हो सकता है साल दो साल में भी न बन पाए और जब तक इसकी दवा नहीं बनेगी कोरोना जड़ से नहीं खत्म होने वाला I हमको इसके साथ ही जीने की आदत डालनी पड़ेगी..सरकार ने लगातार 3 लॉकडाउन करके कोरोना के बारे में सभी एहतियात बरतने की सलाह हमें दे दी साथ ही साथ इसके भयंकर परिणाम से भी हमें अवगत करा दिया..अब ये हम पर निर्भर है कि हम इस लॉकडाउन का उपयोग करके खुद को पहले से फिट,जागरूक और सभी सावधानियाँ अपनाते हुए स्वयं और अपने परिवार को सुरक्षित रखते हैं या इसकी भेंट चढ़ जाते हैं।

कोरोना और प्रकृति हमसे कुछ कहना चाहते हैं लेकिन क्या हम सुनना चाहते हैं

कोरोना जो कि वैश्विक महामारी के रूप में प्रचंड रूप लेता जा रहा है और तमाम देश जो कि स्वास्थ्य सुविधाओं में अव्वल हैं वो भी अपनी जनता को काल के गाल में समाने से नहीं रोक पा रहे।कुछ दवाइयों के मेल से कुछ लोगों को ठीक किया गया लेकिन अभी तक कोई भी कारगर दवा नहीं बन पाई जिसको बोला जाए कि कोरोना पर 100% काम करेगी।

ऐसे में लॉकडाउन ही एकमात्र विकल्प है भारत के साथ-साथ बाकी देशों में भी कोरोना को फैलने से रोकने का.. अब इसका ये बिल्कुल भी मतलब नहीं कि लॉकडाउन खत्म तो कोरोना खत्म..लॉकडाउन से ये खत्म नहीं होगा बस इसकी चेन टूटेगी और लोग घर से कम निकलेंगे तो कम से कम एक दूसरे के सम्पर्क में रहेंगे और इस दौरान कोरोना से लड़ने की अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा पाएँगे।

भारत में 22 मार्च से शुरु हुआ लॉकडाउन अभी 3rd स्टेज में चल रहा है लेकिन लॉकडाउन शुरू करने से पहले कुछ मुख्य बातों को ध्यान में न रखने की वजह से कोरोना मरीज़ों की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी ही हो रही है।लॉकडाउन शुरू करने से पहले प्रवासी मज़दूरों को उनके घर वापस भेज देना चाहिए था।

दूसरा और सबसे ज़रूरी काम कि विदेश से आने वालों को सिर्फ थर्मल स्कैन करके नहीं छोड़ना चाहिए था बल्कि उनकी प्रॉपर जाँच होनी चाहिए थी।कुछ एहतियात के साथ सोशल डिस्टेंसिंग लागू होती तो शायद हम कोरोना की जंग में अब तक जीत चुके होते लेकिन अब भुखमरी और गरीबी,सुरसा की तरह हमारे सामने मुँह फैलाए खड़ी है I

कोरोना की वैक्सीन हो सकता है एक दो महीने में बन जाए और हो सकता है साल दो साल में भी न बन पाए और जब तक इसकी दवा नहीं बनेगी कोरोना जड़ से नहीं खत्म होने वाला I हमको इसके साथ ही जीने की आदत डालनी पड़ेगी..सरकार ने लगातार 3 लॉकडाउन करके कोरोना के बारे में सभी एहतियात बरतने की सलाह हमें दे दी साथ ही साथ इसके भयंकर परिणाम से भी हमें अवगत करा दिया..अब ये हम पर निर्भर है कि हम इस लॉकडाउन का उपयोग करके खुद को पहले से फिट,जागरूक और सभी सावधानियाँ अपनाते हुए स्वयं और अपने परिवार को सुरक्षित रखते हैं या इसकी भेंट चढ़ जाते हैं।

यह जैविक आपदा जहाँ चारों ओर कहर ढ़ा रही है।सभी त्राहि-त्राहि कर रहे हैं और परेशान हैं कि अगर तनख्वाह नहीं मिली तो घर कैसे चलेगा।किसी को नौकरी जाने का गम है तो किसी को अकेलेपन से घबराहट l

मज़दूर वर्ग परेशान है कि अपने घर कैसे जाएँ,मध्यम वर्ग परेशान है कि घर कैसे चलाएँ।

इन सब ज़द्दोज़हद में क्या एक बार भी हमारा ध्यान इस तरफ गया कि ये महामारी हमें दे क्या रही है..

1 – अपने आस-पास देखिए इतनी शुद्ध वायु और वातावरण आपने अब तक की अपनी जिंदगी में तो नहीं ही देखा होगा।

2 – हमारी नदियाँ जिनकी साफ-सफाई के लिए हमने एड़ी चोटी लगा दी तब भी वो वैसी की वैसी ही रही आज बिना कुछ किए अपने आप ही साफ हो गईं।

3 – चिड़ियों की चहचहाहट,सूर्योदय एवं सूर्यास्त पर भी क्या हमने ध्यान दिया था l

4 – प्रीमियर लीग, मूवीज और न जाने कितने टूर्नामेंट के हीरोज़ में क्या कभी हम ये ढूँढ़ पाए कि एक दिन ऐसा भी आएगा जब ये डॉक्टर और नर्स ही असली सिपाही होंगे।

5 – क्या सुबह-सुबह ओस की बूँदों से नहाई हुई हरी घास पर अपने बच्चों के साथ टहलने का लुत्फ लिया आपने..आज एक बार आपको मौका मिला है़ l

6 – याद करिए आपने अपनी माँ अथवा अपने बच्चों को आखिरी बार इत्मीनान से गले कब लगाया था खासकर नौकरी वाले लोग।

7 – वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग जैसी गम्भीर समस्याएँ अपने आप ही सीमित हो गईं।

8 – इस आपदा ने मनुष्य को ये समझा दिया कि सिर्फ पैसा ही सब कुछ नहीं होता,आपके पास कितना भी पैसा हो लेकिन आप घर में बंद हैं कोरोना के आतंक से ..उससे लड़ने में पैसा आपकी मदद नहीं कर सकता।

9 – काम में अपने आपको डुबाकर रखने वालों के लिए ये एक बढ़िया संदेश है कि अगर आप स्वस्थ और संयमित जीवन नहीं जी रहे एवं अपनी इम्युनिटी पर फोकस नहीं किया तो आपकी मर्सिडीज़ और बंगला कोई और एंज्वॉय करेगा l