कभी तो उन्मुक्त परिंदा बन जाना चाहिए।
दिल अगर रोए आँखों को खुल कर हंसाना चाहिए
कभी फाड़े थे जो डायरी के पन्ने फिर से उन्हें चिपकाना चाहिए।
गैरों के कहने को हरदम हकीकत न समझ
कभी खुद की अक्ल भी लगाना चाहिए।
दीदारे जश्न में ही हरदम मज़ा क्या है
कभी शरीक होकर भी आजमाना चाहिए।
समंदर की लहरों से डरकर कब तक साहिल पर रहोगे
कभी तो हौसला भरकर गोते भी लगाना चाहिए।
ज़िंदगी की उलझनों में कब तक उलझे रहोगे
तोड़कर सारे बंधन को कभी तो उन्मुक्त परिंदा बन जाना चाहिए।