Some lines

कभी तो उन्मुक्त परिंदा बन जाना चाहिए। 

birds flying above concrete bulding

दिल अगर रोए आँखों को खुल कर हंसाना चाहिए

कभी फाड़े थे जो डायरी के पन्ने फिर से उन्हें चिपकाना  चाहिए।
गैरों के कहने को हरदम हकीकत न समझ
कभी खुद की अक्ल भी लगाना चाहिए।

दीदारे जश्न में ही हरदम मज़ा क्या है
कभी शरीक होकर भी आजमाना चाहिए।
समंदर की लहरों से डरकर कब तक साहिल पर रहोगे
कभी तो हौसला भरकर गोते भी लगाना चाहिए।
ज़िंदगी की उलझनों में कब तक उलझे रहोगे
तोड़कर सारे बंधन को कभी तो उन्मुक्त परिंदा बन जाना चाहिए।

एक नई सुबह

Sun dawn sunset at Ganga ghats

कभी देखा है ध्यान से बारिश के बाद की वो सतरंगी किरण

पक्षियों का चहचहाना और बादलों की गड़गड़

गर्मी की छुट्टियों के बाद स्कूल खुलने पर बच्चों की चहल पहल

वो गीली मिट्टी की सोंधी महक

वो किसान का खिला हुआ चेहरा वो उसका साफ करना अपना हल

वो अंकुरण को लालायित बीज़ और पेड़ों पे पकी कटहल

सब इशारा हैं करते एक नई सुबह की ओर

बदला है मौसम और बदला है दिन

मुश्किल हों कितने भी हालात और छाई हो कितनी भी काली घटा

उम्मीद है तो ज़िंदा हो तुम नहीं तो सब बेकार है

जैसे पंछी फिर से घोंसला बनाती है हर तूफान के बाद

इस सोच के साथ कि

फिर सब ठीक होगा फिर एक नई सुबह होगी।

 

 

फुर्सत

एक तमन्ना थी बरसों से फुर्सत का वक़्त बिताने की

आज फुर्सत मिली तो वो भी न रास आई।।

बच्चों और घर गृहस्थी में वक़्त का पता न चलता था।

आज तन्हाई मिली वो भी न रास आई।।

महामारी का कहर है चारो तरफ

आदमी आदमी को देखकर डर रहा है।

कहते थे जो कि मरने तक की फुर्सत नहीं

आज ज़ीने की हर मुमकिन कोशिश कर रहा है।

दो जून की रोटी के जुगाड़ में जो भागे थे शहरों को

आज फिर से गांव उनको रास आने लगे

ऐशोआराम भले न सही

लेकिन जिंन्दगी की किल्लत तो नहीं।

ऐ इंसान सम्हल जाओ अभी भी ऐसा न हो कि

हवा और पानी के साथ जीवाणु की ज़िल्लत

अब भी लौट आओ अपनी प्रकृति अपनी सभ्यता

और अपनी इंसानियत का सबक लेकर

ये ac के बंद कमरे ये मॉल की चकाचौंध

ये पाश्चात्य संस्कृति की नकल

करते करते हम अपनी ज़िंदगी को ही मोहताज़

हो गए ।