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वाराणसी और सारनाथ :: धर्म भी पर्यटन भी

वाराणसी शहर, उत्तर प्रदेश का एक महत्व्पुण जिला है जो दुनिया में सबसे प्राचीन और निरंतर आगे बढ़ने वाले शहरो में से एक है। इस शहर का नाम, वरुणा और असी दो नदियों के संगम पर है। इसको बनारस और काशी के नाम से भी जाना जाता है। तो आइये आज कुछ रोचक बातें वाराणसी शहर की कर लेते हैं ।

Image of ancient Varanasi Ghats

वाराणसी, हिंदू धर्म के सबसे पवित्रतम शहरों में से एक है। इस शहर को लेकर हिंदू धर्म में बड़ी मान्‍यता है कि अगर कोई व्‍यक्ति यहां आकर मर जाता है या काशी में उसका अंतिम सस्‍ंकार हो, तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है यानि उस व्‍यक्ति को जन्‍म और मृत्‍यु के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। इसीलिए, इस जगह को मुक्ति स्‍थल भी कहा जाता है।

abode at benaras ghat

यहां के मणिकर्णिका घाट पर कई शवों का एकसाथ अंतिम संस्‍कार होते हुए देखा जा सकता है । पहले राख और अस्थियों का विसर्जन गंगा नदी में कर दिया जाता था किंतु अभी नदी को साफ रखने के लिये कुछ सरकारी नियम बने हैं। ऐसा उचित भी हैं क्योंकि वाराणसी के बारे में लोगों का अटूट विश्‍वास है कि यहां बहने वाली पवित्र और निर्मल गंगा नदी में यदि डुबकी लगा ली जाएं तो सारे पाप धुल जाते है। कई पर्यटकों के लिए, गंगा नदी में सूर्योदय और सूर्यास्‍त के समय डुबकी लगाना एक अनोखा और यादगार अनुभव होता है।

Sun dawn sunset at Ganga ghats

वाराणसी शहर का दिलचस्‍प पहलू यहां स्थित कई घाट है और मुख्‍य घाटों पर हर शाम को आरती ( प्रार्थना ) का आयोजन होना है। इन घाटों से सीढि़यों से उतर कर गंगा नदी में नौकाविहार और बोट में आरती देखना पर्यटकों के लिए अविस्यमरिय अनुभव हैं। इन सभी घाटों में से कुछ घाट काफी विख्‍यात हैं जिनमें दशाश्‍वमेध प्रचलित घाट है, यहां हर सुबह और शाम को भव्‍य आरती का आयोजन किया जाता है।

इसके अलावा दरभंगा घाट, हनुमान घाट और मैन मंदिर घाट भी प्रमुख है। यहां के तुलसी घाट, हरिश्‍चंद्र घाट, शिवाला घाट और अत्‍यधिक प्रकाशित केदार घाट भी किसी परिचय के मोहताज नहीं है। यहां के अस्‍सी घाट में सबसे ज्‍यादा होटल और रेस्‍टोरेंट है।

वाराणसी शहर और आसपास के इलाकों में पूरी तरह से धार्मिक रंग में रंगे हुए है और पर्यटन स्थलो क़े रूप में प्रसिध्य है। भगवान शिव, हिंदुओं के प्रमुख देवता है जिन्‍हे सृजन और विनाश का प्रतीक माना जाता है, उन्हीं भगवान शिवं का मुख्य ज्योतिर्लिंग मंदिर काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी में ही हैं । इस शहर को भगवान शिव की नगरी भी कहा जाता है।

काशी विश्‍वनाथ मंदिर के अलावा यहां नया काशी विश्‍वनाथ मंदिर भी है जो वाराणसी के बीएचयू परिसर में बना हुआ है। इसके अलावा, यहां कई उल्‍लेखनीय मंदिर जैसे तुलसी मानस मंदिर और दुर्गा मंदिर भी है।

यहां मुस्लिम धर्म का प्रतिनिधित्‍व करने वाली आलमगीर मस्जिद है जबकि जैन भक्‍त, जैन मंदिर में शांति के लिए जाते है।

सारनाथ

विश्व भर में बौद्ध धर्म के बेहद श्रद्धेय तीर्थस्थलों में एक सारनाथ, वाराणसी से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि निर्वाण प्राप्ति के पश्चात् भगवान बुद्ध ने अपना पहला उपदेश यहीं पर दिया था, जो महाधर्म चक्र परिवर्तन सूत्र के नाम से पावन स्थली के रूप में विख्यात हुआ। सारनाथ में अनेक भवन बने हुए हैं जैसे धमेख स्तूप व चौखंडी स्तूप, जहां पर भगवान बुद्ध अपने पांच शिष्यों से मिले थे और मुलगंध कुट्टी विहार स्थित है। दुनिया में ऐसे अनेक देश हैं जहां बौद्ध मुख्य धर्म है, उन्होंने अपने देशों की विशिष्ट स्थापत्य शैली में सारनाथ में मंदिर व मठों का निर्माण किया है। यहां के बेहद लोकप्रिय आध्यात्मिक स्थलों में थाई मठ तथा बुद्ध की प्रतिमा भी है, जो चौखंडी स्तूप से दिखाई देते हैं। चौखंडी स्तूप वाराणसी से 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह धर्म चक्र स्तूप भी कहलाता है।

पर्यट्क, मंदिर के बाहर हरे-भरे बगीचे में सुकून से बैठकर अथवा ध्यान लगाकर मंदिर से उत्पन्न होने वाले आध्यात्मिक भावों के भवसागर में डुबकी लगा सकते हैं।

सारनाथ में अन्य लोकप्रिय आकर्षणों के अलावा धातु से बना एक स्तंभ भी है, जिसकी स्थापना सम्राट अशोक ने 272-273 ईसा पूर्व में की थी। यह बौद्ध संघ की नींव को चिन्हित करता है। यह स्तंभ 50 मीटर ऊंचा है तथा इसके शिखर पर चार सिंह की मूर्तियां विद्यमान हैं, जो सिंह चतुर्थमुख कहलाती हैं। भारतीय गणराज्य का प्रतीक यही से लिया गया हैं। इन चारों सिंह के नीचे, चार अन्य पशु – बैल, सिंह, हाथी तथा अश्व बने हुए हैं। ये भगवान बुद्ध के जीवन के विभिन्न चरणों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

सारनाथ जैनियों के 11वें तीर्थंकर की भी जन्मस्थली है, इस कारण से यह स्थल जैनियों के लिए सम्मानजनक माना जाता है।

धार्मिक स्‍थलों के अलावा, वाराणसी में नदी के दूसरी तरफ राम नगर किला है और जंतर – मंतर है जो कि एक वेधशाला है। इस शहर में वाराणसी हिंदू विश्‍वविद्यालय भी स्थित है जिसका परिसर बेहद शांतिपूर्ण वातावरण में बना है। वाराणसी के कुछ आकर्षणों में नया विश्‍वनाथ मंदिर, बटुक भैरव मंदिर, सेंट्रल इंस्‍टीट्यूट ऑफ हाईयर तिब्‍बती स्‍टडी, नेपाली मंदिर, ज्ञान वापी वेल, संकटमोचन हनुमान मंदिर, भारतमाता मंदिर आदि भी हैं।

यह शहर शास्त्रीय संगीत और नृत्य के लिए जाना जाता है। बनारस घराना भारतीय तबला वादन की छह सबसे आम शैलियों में से एक है।

वाराणसी अपने लज़ीज़ स्ट्रीट फूड्स के लिये भी काफी मशहूर है। यहाँ की कचौरी, टमाटर चाट, आलू चाट शुध्द देशी स्टाइल में साथ ही साथ लस्सी और पान का तो जवाब ही नहीं। भारतीय परम्परागत बनारसी साड़ी के बिना शायद ही कोई शादी विवाह सम्पन्न हो पाता हो।

वाराणसी कैसे पहुंचे

वाराणसी तक एयर द्वारा, ट्रेन द्वारा और सड़क मार्ग से आसानी से पहुंच सकते है। वाराणसी सड़क मार्ग वाराणसी के लिए राज्‍य के कई शहरों जैसे – लखनऊ( 8 घंटे ), कानपुर ( 9 घंटे ) और प्रयागराज ( 3 घंटे ) आदि से बसें आसानी से मिल जाती है। वाराणसी की यात्रा बस से करना थोड़ा सा असुविधानजक हो सकता है, रेल या फ्लाइट, वाराणसी जाने का सबसे अच्‍छा साधन है। ट्रेन द्वारा वाराणसी में दो रेलवे जंक्‍शन है : 1) वाराणसी जंक्‍शन और 2) मुगल सराय जंक्‍शन। यह दोनो रेलवे जंक्‍शन शहर से पूर्व की ओर 15 किमी. की दूरी पर स्थित है। नया बनारस रेलवे स्टेशन ( मंडुआडीह रेलवे स्टेशन) भी एक विश्वस्तरीय स्टेशन है, जिसे भारतीय रेलवे (IR) में हवाई अड्डे की शैली में, एक मॉडल रेलवे स्टेशन के रुप मे विकसित किया है । इन रेलवे स्‍टेशनों से दिल्‍ली, आगरा, लखनऊ, मुम्‍बई और कोलकाता के लिए दिन में कई ट्रेन आसानी से मिल जाती है। वाराणसी में लाल-बहादुर शास्त्री अंतर्राष्‍ट्रीय हवाई अड्डा देश के कई शहरों जैसे – दिल्‍ली, लखनऊ, मुम्‍बई, खजुराहो और कोलकाता आदि से सीधी एयर उड़ानों के द्वारा जुड़ा है।

तो अगली बार जब आप परिवार के साथ अपनी अगली यात्रा के बारे में सोचें, तो आध्यात्मिक ज्ञान के साथ फुरसत के समय का आनंद लेने के लिए वाराणसी के पवित्र शहर की यात्रा का विचार करना न भूलें। कृपया पोस्ट के बारे में अपने विचार साझा करें और पोस्ट पढ़ने के लिए धन्यवाद।


मध्यप्रदेश के 10 झरने जो आपको घूमने से नहीं चूकने चाहिए

मध्यप्रदेश क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का दूसरा सबसे बड़ा राज्य है। लेकिन इसकी आबादी कम है क्योंकि इसका अधिकतर भाग जंगल और प्राकृतिक संपदा से भरा हुआ है। यहाँ पहाड़ों पर गुजरते हुए नदियां झरनो (फॉल्स-Waterfall) का रूप ले लेती हैं इसलिए यहाँ फॉल बहुतायत में मिलते हैं। जिनमें से प्रमुख 10 की जानकारी लेकर हम आए हैं अपने इस ब्लॉग के साथ।

विंध्य क्षेत्र से गुजरने वाली टमस नदी जिसको तमसा और टोंस भी कहा जाता है पौराणिक रूप से बहुत मशहूर रही है।ऐसी मान्यता है कि श्री रामचन्द्र वन जाने से पहले अयोध्यावासियों के साथ इसी नदी के किनारे रात गुजारे थे और सुबह सबके उठने से पहले लक्ष्मण और माता सीता के साथ वन के लिए प्रस्थान कर गए थे।

बाद में ऋषि वाल्मीकि ने इसी नदी के किनारे अपना आश्रम बनाया जहाँ उन्होंने रामायण लिखी और लव और कुश की शिक्षा दीक्षा पूरी हुई।

यही टोंस नदी आगे जाकर बीहड़ नदी में रूपांतरित हुई है और आगे जाकर गंगा नदी में मिल जाती है। इसी नदी पर बहुती फॉल, केवटी फॉल, चाचाई फॉल और पुरवा फॉल के अलावा कई छोटे फॉल भी हैं।

1. बहुती जलप्रपात (Bahuti Water fall) मध्य प्रदेश का सबसे ऊंचा झरना है। इसकी ऊंचाई लगभग 650 फ़ीट है। यह फाल प्रदेश के रीवा जिले में स्थित है जो बीहड़ नदी पर बना हुआ है।बीहड़ नदी तमसा नदी की सहायक नदी है। बहुती जलप्रपात के पास ही चचाई और केवटी जलप्रपात हैं जिससे पर्यटकों को एक बार में ही 3 जलप्रपात देखने का मौका मिल जाता है।

2.केवटी जलप्रपात (Keoti Water fall ) मध्यप्रदेश का तीसरा सबसे ऊंचा जलप्रपात है। इसकी ऊंचाई 322 फ़ीट या 92 मीटर के आसपास है। यह जलप्रपात भी बीहड़ नदी के पानी से ही बनता है। यह रीवा जिले से 46 km दूर चित्रकूट की पहाड़ियों पर है।

इस जलप्रपात की खूबसूरती का अंदाज़ा आप नीचे दिखाया गया वीडियो देखकर लगा सकते हैं।

3.धुआँ धार जलप्रपात (Dhuandhar Waterfall )- यह जलप्रपात मध्यप्रदेश के जबलपुर शहर से लगभग 30 km दूर भेड़ाघाट क्षेत्र में पड़ता है। यह नर्मदा नदी पर बना हुआ है और इसकी ऊंचाई लगभग 30 मीटर है। इतनी ऊंचाई और अच्छी स्पीड से पानी गिरने की वजह से आसपास धुआँ (Smoke That Thunders) जैसा दिखता है। अभी इसको पर्यटन के हिसाब से विकसित किया गया है और रोपवे और सड़क के दोनों तरफ मार्बल और हास्तशिल्प की दुकानें बनाकर पर्यटकों को लुभाने का प्रयत्न किया गया है। यहाँ खाने के हिसाब से उबले बेर और उबले सिंघाड़े मेरे लिए तो नया एक्सपेरिएंस था।

धुआँ धार फाल देखने का बेस्ट टाइम शरद पूर्णिमा का समय होता है क्योंकि उस समय नर्मदा महोत्सव मनाया जाता है और देश विदेश से लोग इकट्ठे होते हैं। यहाँ आकर नौका विहार और मार्बल शो पीस लेना बिलकुल न भूलें।

4. पांडव जलप्रपात (Pandav Waterfall ) मध्यप्रदेश में केन नदी की एक सहायक नदी द्वारा गिराया गया एवरग्रीन फाल है।

यह फॉल पन्ना जिले में पन्ना राष्ट्रीय उद्यान के अंदर है और पन्ना से 14 km और खजुराहो से 34 km की डिस्टेंस पर है। इस फॉल की ऊँचाई 30 मीटर के आसपास है।

ऐसी मान्यता है कि पांडव अपने वनवास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा यही बिताए थे।

5.बी(मधुमक्खी झरना) (Bee Waterfall ) मध्यप्रदेश के सबसे खूबसूरत पर्यटन स्थल पंचमढ़ी की शोभा बढ़ाने वाला यह जलप्रपात होशंगाबाद जिले में पड़ता है। इसको बी(मधुमक्खी झरना) इसलिए बोलते हैं क्योंकि पहाड़ों से नीचे आते हुए ये मधुमक्खी के आकार जैसा दिखता है।

6. पूर्वा फॉल (Purwa Waterfall)  भी रीवा जिले में टोंस नदी पर ही बना हुआ है। इसकी ऊँचाई 70 मीटर के आसपास है।

यह जगह प्रसिद्ध चित्रकूट पहाड़ियों के नीचे है। इस जगह आने का सबसे अच्छा समय मार्च से मई तक होता है क्योंकि तब ज्यादा गर्मी शुरू नही हुई रहती है।

 

7.गाथा फॉल (Gatha Waterfalls)  भारतीय उपमहाद्वीप में 36th highest फॉल के रूप में जाना जाता है। इसकी ऊँचाई 91 मीटर के आसपास है। यह फॉल मध्यप्रदेश राज्य के पन्ना जिले में केन नदी पर बना हुआ है। वर्षा ऋतु के समय जब नदी अपने उफान पर होती है तब इस फॉल की छटा देखते ही बनती है।

झाँसी रेलवे स्टेशन से 176 km रेल द्वारा ही और आगे तय करने पर पन्ना जिला पहुंचा जा सकता है और पन्ना रेलवे स्टेशन से 12 km और आगे यह फॉल मिलता है। यहाँ से 26 km की दूरी पर खजुराहो हवाई अड्डा भी है।

8.चचाई झरना (Chachai Waterfalls ) मध्यप्रदेश का दूसरा सबसे ऊंचा झरना है इसकी ऊंचाई 430 फ़ीट के आसपास है। यह जलप्रपात भी रीवा जिले में बीहड़ नदी पर बना हुआ है। इसको भारत का नियाग्रा जलप्रपात भी कहते हैं क्योंकि इसकी प्राकृतिक सुंदरता अद्भुत है। चचाई फॉल रीवा से 29 km की दूरी पर है। चचाई से 10 km की दूरी पर सेमरिया तक रेल द्वारा पहुँचा जा सकता है।

 

9.रजत/सिल्वर फॉल (Silver fall /Rajat Pratap Waterfall ) का मतलब हिंदी में चाँदी होता है। इस फॉल से जब पानी गिरता है तो सफ़ेद दूधिया रंग लिए हुए चांदी जैसा प्रतीत होता है। यह फॉल मध्यप्रदेश के सबसे रमणीय पर्वतीय पर्यटक स्थल पचमढ़ी में है जो होशंगाबाद जिले में पड़ता है।

इसकी ऊंचाई 107 मीटर के आसपास है। यह भारत के highest फॉल्स में से एक है। चूंकि यह जंगल में पाया जाता है इसलिए यहाँ भ्रमण के लिये आपको फ़ॉरेस्ट डिपार्टमेंट से परमिशन की ज़रूरत पड़ेगी।

10.पाताल पानी जल प्रपात (Patalpani Waterfall) इंदौर मध्यप्रदेश प्रदेश का सबसे बड़ा शहर है और पर्यटन के हिसाब से भी यह काफी महत्वपूर्ण है। इसी शहर के महू। तहसील में पाताल पानी जल प्रपात पड़ता है जिसकी ऊंचाई 300 मीटर के आसपास है। वैसे माना जाता है कि इस झरने के कुंड की गहराई नापी नही गई है और इसका पानी पाताल लोक तक जाता है।

तो आप जब भी कभी मध्यप्रदेश आइये इन प्रपातों को देखना मत भूलियेगा और अपने व्यूज हमें बताना भी बिल्कुल मत भूलियेगा।

प्रयागराज: एक अद्भुत संगम

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज शहर का नाम सुनते ही कई तस्वीरें आंखों के समाने आती हैं क्योंकि प्रयागराज है ही अनोखा और बहुत सी खूबियां और विशेषता अपने अंदर समेटे हुए । एक तरफ तो यह गंगा, यमुना, अदृश्य सरस्वती जैसी तीन पवित्र नदियों का संगम होकर एक धार्मिक स्थल है वहीं दूसरी तरफ पूर्वांचल का मुख्य औद्योगिक और एजुकेशन हब भी है। प्रयागराज ने देश के कई राजनितिज्ञ और फिल्मस्टार्स भी दिए हैं जिनमें से जवाहरलाल नेहरू, चन्द्र शेखर,रीता बहुगुणा जोशी और अमिताभ बच्चन कुछ प्रमुख नाम हैं।

प्रयागराज का नाम मुग़ल शासन में बदलकर इलाहाबाद रख दिया गया था जिसको साल २०१८ में बदलकर पुनः प्रयागराज कर दिया गया। प्रयाग का अर्थ है प्रथम यज्ञ ऐसी मान्यता है कि सृष्टि का निर्माण करते समय ब्रह्मा जी ने प्रथम यज्ञ यहीं किया था। तो आइए आज प्रयागराज में ही कुछ पल गुजारते हैं मेरे नए ब्लॉग के साथ।

प्रयागराज पहुंचने के लिए सभी मार्ग खुले हुए हैं आप अपनी सुविधानुसार हवाई यात्रा, रेल यात्रा या फिर सड़क यात्रा भी कर सकते हो। दिल्ली से प्रयागराज का टोटल डिस्टेन्स लगभग 700 km है। और 10 से 14 घन्टे की यात्रा पड़ती है या रोड से या ट्रेन से । दिल्ली से प्रयागराज के लिये डायरेक्ट फ्लाइट और ट्रेन हैं साथ ही साथ सड़क कनेक्टिविटी भी बहुत बढ़िया है।

इलाहाबाद हवाई अड्डा भारतीय वायु सेना द्वारा संचालित और भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण द्वारा प्रबंधित, बमरौली हवाई अड्डा शहर से 12 किमी दूर स्थित है और प्रमुख रूप से घरेलू मार्गों पर कार्य करता है।

प्रयागराज जंक्शन उत्तर भारत के मुख्य रेलवे जंक्शनों में से एक है । प्रयागराज के चार प्रमुख रेलवे स्टेशन प्रयाग जंक्शन, सिटी स्टेशन रामबाग, दारागंज स्टेशन, चोकी रेलवे स्टेशन और प्रयागराज जंक्शन हैं।

दिल्ली से लखनऊ तक एक्सप्रेस वे से भी कनेक्ट है उसके बाद NH30 से आप आगे बढ़ सकते हैं।साथ ही प्रदेश के विभिन्न शहरों जैसे बनारस (NH19), कानपुर (AH1) के साथ सड़क कनेक्टिविटी भी बहुत बढ़िया है।

भारत का सबसे लंबा जलमार्ग राष्ट्रीय जलमार्ग 1, इलाहाबाद को हल्दिया  के साथ जोड़ता है ।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय, जिसे एयू भी कहा जाता है, देश भर में उच्च शिक्षा के सबसे सम्मानित संस्थानों में से एक है। इसे पूरब के ऑक्सफोर्ड का दर्जा भी दिया गया है। मेडिकल, इंजीनियरिंग से लेकर सिविल सर्विसेज की तैयारी के लिए लाखों छात्र अपने आंखों में भविष्य के सपने लिए हुए हर साल ही यहां पहुंचते हैं। 

प्रयागराज के कुुुछ मशहूर स्थान

वैसे तो प्रयागराज आपलोगों में से कई लोग गए होंगें और वहां के बारे में जानते भी होंगें इसलिए आज शुरु करते हैं उस पुल से जो नैनी और प्रयागराज को जोड़ता है, पहले वाला पुल तकरीबन १५५ साल पुराना और अंग्रेजों द्वारा बनवाया गया था। शुद्ध लोहे के १४ पिलर्स पर खड़ा ये पुल आर्किटेक्चर (Architechture) का अद्भुत नमूना है। बाद में बोला गया कि ये कमज़ोर हो रहा साथ ही साथ इस पर लम्बा जाम भी लगने की वज़ह से ही यमुना नदी पर ही एक नया पुल बनाया गया जो कि केबल (wires) पर लटका हुआ है मुंबई के सी लिंक के बाद शायद यह भारत का दूसरा अद्भुत पुल है । इसको पंडित दीन दयाल उपाध्याय पुल भी बोलते हैं। पुल ख़तम होते ही आप पहुंचोगे प्रयागराज में जहां एक  रोड के एक तरफ मिलेगा आपको मिंटो पार्क और रोड के दूसरी साइड इलाहाबाद डिग्री कॉलेज

ऋषि भारद्वाज का आश्रम
इसके अलावा यहां ऋषि भारद्वाज का आश्रम भी है। ऐसी मान्यता है कि प्रभु श्री राम वनवास जाते समय ऋषि भारद्वाज से शिक्षा ग्रहण करने यहां रुके थे। अभी भी ये आश्रम पर्यटन और आत्मिक चिंतन दोनों ही दृष्टि से काफी मायने रखता है।


हनुमान जी का मंदि
दारागंज में लेटे हुए हनुमान जी का मंदिर काफी मशहूर है ऐसी मान्यता है कि बरसात में जब तक गंगाजी इस मंदिर को न डूबा दें तब तक उनका उफान बढ़ता ही रहता है और एक बार हनुमानजी को छू लेने के बाद ये वापस हो जाती।

कंपनी बाग
प्रयागराज शहर में कंपनी बाग भी है जिसे चंद्रशेखर पार्क भी बोलते हैं यहां चंद्रशेखर आज़ाद ने अपनी आखिरी लड़ाई लड़ी थी अंग्रेजों से और आखिरी सांस भी यही ली थी। जगह की शांति हमारे दिलों में राष्ट्रीय भावना भर देती है और मिट्टी के महान बेटे की सर्वोच्च बलिदान और वीरता के सामने सिर झुकाती है।

खाने में यहां के अमरूद बहुत ही मशहूर हैं साथ ही कुछ लोकल चीजें जैसे नेतराम मूलचंद एंड संस में कचौरी, लोकनाथ की लस्सी, हीरा हलवाई में गुलाब जामुन, सिविल लाइन्स की चाट और मसाला चुरमुरा का वो स्वाद सिर्फ वहीं जाकर और लंबी लाइन लगाकर ही मिल पाता हैं।

इलाहाबाद हाईकोर्ट और उत्तर मध्य रेलवे क्षेत्र मुख्यालय शहर को और विशेष प्रशासनिक दर्जा दिलवाते हैं।

स्वराज भवन

प्रयागराज का नाम आया और स्वराज भवन का नाम ना आए ये नामुमकिन है ।

स्वराज भवन एक संग्राहलय है। यहाँ हमारी आज़ादी की लड़ाई से जुड़े लोगों की स्मृतियाँ संजोकर रखी हुई हैं। आज़ादी से पहले तमाम बड़े लोग जो आज़ादी की लड़ाई में शामिल हुए यहीं पर मिलते थे विचार विमर्श करते थे और अपनी रणनीतियाँ बनाते थे। यह आनन्द भवन के पास में ही है। यह प्रयागराज के कर्नलगंज थाने में पड़ता है।

आनंद भवन 

आनंद भवन भी नेहरू परिवार का निवास स्थान हुआ करता थ लेकिन अभी उनकी यादो को सँजोये हुए है और वहाँ जाने वालों को ये याद दिलाता है कि आजादी की लड़ाई में नेहरू गांधी परिवार का क्या योगदान रहा। साथ ही साथ उनका रहन सहन कैसा रहा।

स्वराज भवन को कांग्रेस के बैठक और बाकी काम के लिए देने के बाद नेहरू गांधी परिवार आनंद भवन में रहने लगा। ये हमारे  देश की एकमात्र महिला प्रधानमन्त्री श्रीमती इंदिरा गांधी की जन्मस्थली है और फिल्हाल  भारत  सरकार के  पास  सांस्कृतिक धरोहर है।

 

जवाहर लाल नेहरू नक्षत्र-भवन प्लानेटेरियम

प्लेेनेेेटेरियम भी आनंद भवन में ही है लेेेकिन उसका टिकट अलग लेेना पड़ता है। यहां 3 घन्टे के 3 शो चलते हैै उसमें हमारे  सौरमंडल के बारे में विस्तार से बताया और दिखाया जाता है।

खुसरो बाग

खुसरोबाग भी एक प्रमुख स्थल है जो है तो एक विशाल बाग़ जिसमें जहाँगीर के बेटेे खुसरो के साथ उसकी पत्नी और बेटी का भी मकबरा है।

प्रयागराज के अमरूद बहुत ही मशहूर हैं भविष्य में यहाँ अमरूद का रिसर्च सेन्टर खोलने की मंजूरी मिल चुकी है।

प्रयाग राज का नाम आए और कुंभ का नाम न हो ऐसा कैसे हो सकता है हर बारह साल में यहां पूर्ण कुंभ और हर छह साल में अर्ध कुंभ लगता है। यह चार मुख्य नगर नासिक, उज्जैन, हरिद्वार और प्रयागराज में एक है।

प्रयागराज में तीन नदियों का संगम है तो घाटों की संख्या भी भरमार में है जिनमें सरस्वती घाट, गऊघाट, बलुआघाट, दशाश्वमेध घाट, बरगद घाट, अरैल घाट कुछ प्रमुख हैं। कार्तिक महीने में बलुआघाट जो कि यमुना जी का किनारा है पर एक महीने का मेला लगता है जिसमें हस्तशिल्प और किचन सम्बन्धित वस्तुएँ बजट के अंदर मिल जाती हैं। हिन्दू धर्म में हिंदी महीने में कार्तिक महिने का बहुत ही महात्म्य है।

औद्योगिक और व्यापार की दृष्टि से, प्रयागराज शहर का महत्व कम नहीं है। नैनी और फूलपुर इसके आसपास के दो औद्योगिक शहर है।

शहर की प्रमुख कंपनियों में रिलायंस इंडस्ट्रीज, एल्सटॉम, आईटीआई लिमिटेड, अरेवा, बीपीसीएल, डेका मेडिकल, भारतीय खाद्य निगम, रेमंड सिंथेटिक्स, त्रिवेणी शीट ग्लास, श्नाइडर इलेक्ट्रिक इंडिया लिमिटेड, त्रिवेणी इलेक्ट्रोप्लास्ट, ईएमसी पावर लिमिटेड, स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया, हैं। HCL Technologies, Indian Farmers Fertilizer Cooperative (IFFCO), Vibgyor Laboratories, Geep Industries, Hindustan Cable, Indian Oil Corporation Ltd, Baidyanath Ayurved and Hindustan Laboratories। शहर में रेलवे विद्युतीकरण के लिए केंद्रीय संगठन का मुख्यालय भी है।

तो अब जब भी प्रयागराज आइये थोड़ा इत्मीनान से सभी जगहों को एक्सप्लोर करिये, यहाँ के जायके का भी लुत्फ उठाएं और हमारे ब्लॉग से सम्बंधित सुझाव भी ज़रूर दीजिये।

जिला मिर्ज़ापुर…….लिखने और देखने लायक यहाँ पर बहुत कुछ है

उत्तर प्रदेश का एक छोटा सा जिला मिर्ज़ापुर जो प्राकृतिक सौंदर्य से तो लबालब है लेकिन इसके पर्यटन पर सरकार कुछ खास ध्यान नहीं दे पाई है। यह धार्मिक रूप से भी काफी महत्वपूर्ण स्थान रखता है क्योंकि जगत जननी माँ विंध्यवासिनी का धाम भी यही है साथ ही साथ ये दोनों ओर से दो महत्वपूर्ण धार्मिक नगरों ( एक तरफ पवित्र संगम नगरी प्रयागराज तो दूसरी तरफ बाबा भोलेनाथ की नगरी काशी) से जुड़ा हुआ है।

लॉक डाउन के दौरान मिर्ज़ापुर सीरीज देखने का मौका मिला तो दिल दहल गया, सीरीज तो हमसे पूरी देखी भी नहीं गई। ये किस मिर्जापुर की बात कर रहे। जिस मिर्जापुर को मैं जानती हूँ और जहाँ अपना बचपन जिया है वो तो बिल्कुल ऐसा नहीं है।

हाँ, बेरोजगारी, अशिक्षा और गरीबी ज़रूर बहुत ज्यादा है वो भी माननीय लोगों की लापरवाही और भ्रष्टाचार की वज़ह से लेकिन उसको गुंडाराज नही बोल सकते। यहाँ कालीन और पीतल का व्यसाय मुख्य रूप से किया जाता है यह सच है। गरीबी और बेरोजगारी की वजह से नक्सलवाद को एक हद तक बढ़ावा मिला है लेकिन जिस तरह वेब सीरीज में मर्डर दिखांए गए ऐसा तो नही होता कहीं भी।

मिर्जापुर की प्राकृतिक छटा निराली है और बरसात में तो यह और भी खूबसूरत हो जाता है। कुछ प्राकृतिक सौंदर्य में सिरसी बाँध, लखनिया दरी, सिद्धनाथ दरी, कुशियरा फॉल, टाण्डा फाल, विंढम फॉल, ददरी-हलिया जंगल मुख्य हैं। अगर प्रशासन ध्यान दे तो इनको और भी खूबसूरत बनाकर पर्यटन बढ़ाया जा सकता है जिससे रोज़गार के अवसर बढेंगें।

विंध्याचल के नाम से काफी तीर्थयात्रियों का आना होता है लेकिन उनमें से कम को ही मालूम होगा कि माँ विंध्यवासिनी का दर्शन अकेले करने से पूरा पुण्य नहीं मिलता । पूरा पूण्य प्राप्त करने के लिए त्रिकोण पूरा करना होता है इस त्रिकोण में काली खोह और अष्टभुजा मंदिर शामिल हैं। काली खोह से करीब 8 km दूर ही IST सेन्टर है जहाँ से पूरे देश का समय निर्धारित होता है।

अगर आप 30 साल के आसपास उम्र समूह में हैं तो आपने देवकीनन्दन खत्री की चंद्रकांता सीरियल दूरदर्शन पर ज़रूर देखी होगी। तिलिस्म और मनोरंजन से भरपूर यह धारावाहिक चुनार के किले के बिना अधूरा है। और चुनार और चुनार का किला दोनो ही मिर्ज़ापुर जाकर देखा जा सकता है।

मिर्जापुर का नाम लो और गंगा घाट का नाम न आए ये तो जल बिन मछली वाली बात हो जाएगी। यहाँ तमाम गंगा घाट अपनी नक्काशीदार बनावट और खूबसूरती के लिए मशहूर हैं ये अलग बात है कि उचित रख रखाव न होने से फिलहाल धूल चाट रहे हैं। जिनमें कुछ प्रमुख घाट हैं पक्केघाट, बरियाघाट, नारघाटपक्केघाट का लेडीज मार्केट भी काफी फेमस हैं । सभी त्योहारों में से, कजरी महोत्सव संभवतह सबसे भव्य तरीके से मनाया जाता है।यहाँ का कालीन तो बहुत ही मशहूर है।

स्थानीय मिर्ज़ापुरी बोली ( भोजपूरी) के अलावा, ग्रामीण मिर्ज़ापुर की पोशाक भी काड़ा (ब्रेसलेट), बाजु बैंड (आर्म बैंड), हंसूली (मोटी गर्दन के छल्ले), बिछिया (पैर की अंगुली के छल्ले), करधनी (सिल्वर बेल्ट) जैसी पारंपरिक आभूषण पहनने वाली महिलाओं के साथ काफी अलग है। पुरुषों को ज्यादातर गमछा और कुर्ता में देखा जाता है।

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, साउथ कैंपस (बरकछा), 1104 हेक्टेयर क्षेत्रफल के साथ राबर्ट्सगंज उच्च मार्ग (मानचित्र) पर मिर्जापुर शहर के लगभग 8 किमी दक्षिण पश्चिम में स्थित है। वर्ष 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रोन ने उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े 101 मेगावाट के सौर ऊर्जा संयंत्र का मिर्जापुर जिले के दादर कला गांव में का उद्घाटन किया।

अन्त में यही हैं की मिर्जापुर पर लिखने और देखने लायक यहाँ पर बहुत कुछ है बशर्ते देखने वाले के पास समय और खूबसूरती देखने का नज़रिया और हुनर हो। तो अब अगली बार जब भी मौका मिले माँ विंध्यवासिनी धाम ज़रूर पधारें और खुद अपना नज़रिया बनाएँ मिर्ज़ापुर के लिए।

Traveling Blues-यात्रा से पहले की तैयारियां

बदलाव ही प्रकृति का नियम है खासकर इंसान जो कि सबसे बुद्धिमान और स्वार्थी जीव है और इन्सानों का एक जगह टिककर रहने की आदत कभी भी नहीं रही । घूम घूम के प्रकृति और व्यसाय में सामंजस्य बिठाने की जद्दोजहद आदिकाल से चली आ रही है।

काम कोई भी हो सुनियोजित और क्रमवार तरीके से किया गया काम आसानी से हो भी जाता है और अनावश्यक तनाव से भी बचाता है। जैसे कि कहा ही गया है

“Fail to Plan, Plan to Fail.”

इसलिये आप जब भी कहीं घूमने जाएं या व्यावसायिक यात्रा पर पूरी तैयारी के साथ घर से निकले ताकि आपको यहाँ वहाँ न भटकना पड़े और मानसिक और शारीरिक समस्याओं का सामना न करना पड़े।

सबसे पहले शुरुआत करते हैं सुबह की ज़रूरत से तो उसके लिए एक जरूरी सामानो (Essential items) की किट बना लें जिसमें ब्रश, पेस्ट, फेसवाश, साबुन, सैनिटाइजर जैसी चीजें एक साथ रखें ताकि सब एक जगह मिल जाए और छोटी सी ज़रूरत पर बैग को पूरा खंगालने की ज़रूरत न पड़े।

इसके साथ ही दवाई (Medicines) की एक अलग किट बनाएँ जिसमें नार्मल बुखार, खांसी, पेटदर्द, यदि कोई अन्य दवाई लेते हो तो वह भी और बैंडेड, डेटोल और थोड़ा कॉटन ज़रूर रखें।

जहाँ जा रहे वहाँ का मौसम और तापमान नेट पर सर्च ज़रूर करें खासकर अपने स्टे के दौरान का वेदर अपडेट ज़रूर लें और उस हिसाब से कपड़े और जूते-मोजे भी रखें।

हर दिन की ज़रूरत के हिसाब से कपड़े जोड़ी में रखे तो आपको लास्ट मिनट की भागदौड़ नही होगी।

जैसे छोटे कपड़ों को या तो अलग एक पाउच में रखे या एक पेअर ड्रेस के साथ एक इनरवेयर अलग रखे ताकि तुरन्त लेकर रेडी हो जाएं।

आजकल बिना मोबाइल और चार्जर क़े तो जीवन ही नहीं हैं तो उसे रखना न भूले I यदि पॉवर बैंक भी रख ले तो लंबी Journey में मदद मिलेगी और अगर आप photography के शौकिन हैं तो Camera रखना मत भूलिएगा । अच्छा होगा की सभी Gadgets का अलग एक handy बैग बना ले पर इसकी सुरशा का विशेष ध्यान दिज़िएगा।

वैसे तो आजकल हर जगह ATM/ Debit/Credit/ mobile Banking मिल जाती हैं पर थोड़ा journey क़े हिसाब सें cash रखने से पैसे के लिये जरूरत पड़ने पर यहाँ वहां भटकने से बच सकते हैं।

अब बारी घऱ से निकलने की हैं, पहले घऱ के सभी Utility Points ( Electricity, Gas, Water etc) चेक करके बंद कर दे और अच्छे सें Door Lock चेक कर ले । बेहतर होगा की किन्हीं आस पास जान पहचान मॆं paper, letters आदि उठा लेने को बोल दे।

यदि ट्रेन से सफर् हैं तो ट्रेन टिकट अवशय चेक कर ले और रोड़ journey की तैयारी हैं तो vehicle में air pressure, fuel level और stapiny tyre भी चैक कर ले । अच्छा होगा की group में रोड़ journey प्लान करे ।

जहां जां रहे हो वहां क़े famous spots क़े जानकारी भी इकटठा कर ले इसमें internet काफी सहायक हो सकता हैं। सभी spots की लिस्ट बना ले और Journey Days के हिसाब से प्लान करे और कोशिश करे कि किसी spot पर जांकर उसे पूरा explore करे और सभी spots को भाग दौड़ से पहुँच कर cover करने से बचें क्योंकि कुछ next time के लिये भी छोड़ देना भी अच्छा विकल्प हो सकता हैं ।

Journey के timing के हिसाब से रुकने की व्यवस्था का प्लान करें जैसे कि यदि Peak season जैसे गर्मी की छुट्टीयाँ, Winter/ New year Holidays के समय hotels में advance booking करा लेना अच्छा विकल्प होगा ताकि आपको लास्ट समय में भीड़भाड होने पर रुकने की जगह में compromise न करना पड़े । इसमें भी internet काफी सहायक होता हैं अलग अलग hotels की जानकारी और बूकिंग के लिये । Normal season में सीधे hotel पहुँच कर भी रुकने क़े लिये अच्छ। package भी मिल सकता हैं ।

आज कि busy life में Traveling क़े कुछ समय सभी को निकाल लेना चहिये क्योंकि यही शन्ति और सुकुन क़े पल हो जाते हैं जो routine life की बोरिय्त को दूर करते हैं और आप को फिर से rejuvenate करने में मदद करते हैं। साथ ही में economy के लिये भी Traveling बहुत अच्छा हैं क्योंकि हमारे देश क़े कई प्रदेशों मैं Tourism उनकी आय का मुख्य source होते हैं और कई लोगो की जीविका का माध्यम होती हैं ।

इसलिअए अगली बार कही घूमने जाएँ तो ऊपर कही बातों का ध्यान रखें और अपने अनुभव जरूर साझा करें ।

मथुरा.. नगरी कंस की लेकिन जयकार कन्हैया की

अगर आप दिल्ली में रहते हैं और वीकेंड में कहीं घूमने की सोच रहे हैं एवं बजट भी ज्यादा नहीं है।साथ ही साथ घर में माता-पिता भी हैं तो पावन नगरी मथुरा ज़रूर होकर आइए l मथुरा दिल्ली से लगभग 300 km है वाया रोड एक्सप्रेस-वे से 3-4 घण्टे में अपनी गाड़ी से आराम से पहुँच सकते हैं।वाया ट्रेन भी मथुरा जंक्शन आराम से पहुंचा जा सकता है।

वहाँ पहुँच कर कोशिश करिए की 12 बजे से पहले गर्भगृह और द्वारिकाधीश दर्शन कर लीजिए क्योंकि 12 बजे से 4 बजे तक सभी मंदिर बन्द हो जाते हैं तब आपके पास मार्केट घूमने, जलपान वगैरह करने के अलावा वहाँ कोई अन्य विकल्प नहीं रहेंगे।

इस दौरान आप गोकुल या वृंदावन जा सकते हैं l इसमें आपको खाली बैठना नहीं पड़ेगा और जब तक मंदिर खुलने का समय होगा आप दूसरे गंतव्य तक पहुँच जाएँगे l

श्रीकृष्ण भगवान मथुरा के कारागार में पैदा हुए थे जिसको गर्भगृह कहा जाता है l जैसा कि ज्यादातर लोग जानते हैं कृष्ण जी,देवकी जी और वासुदेव जी की आठवीं संतान थे l कंस जो देवकी का भाई था उसको आकाशवाणी हुई कि जिस बहन को तुम इतने प्यार से शादी करके विदा कर रहे उसी का आठवां पुत्र तुम्हारी मृत्यु का कारण होगा l इस जानकारी का सचित्र विवरण गर्भगृह की दीवारों पर उकेरा हुआ है।

कंस इसी डर से दोनों लोगों को जेल में बंद कर देता है और एक-एक करके सब संतानों को खत्म करवा देता है।

जब कृष्ण जी पैदा हुए तो कारागार के सभी प्रहरियों को नींद आ गई और कारागार के सभी ताले स्वयं खुल गए।उसी समय वासुदेव कृष्ण को लेकर गोकुल के लिए निकल गए l गोकुल में उनके दोस्त नन्द और यशोदा जी के यहाँ एक कन्या हुई थी उसको ले आए और कृष्ण जी को छोड़ आए।

गोकुल की रज़ में खेलकर कान्हा बड़े हुए।वहाँ की रेत में लोटकर और खेलकर आज भी बड़ा सुकून मिलता है l आज भी वहाँ सब कुछ वैसा ही है शांत और प्राकृतिक l कहते हैं गोकुल में कलयुग का प्रवेश नहीं हो पाया l

वहाँ से निकलकर वृन्दावन जा सकते हैं l वृन्दावन राधा जी का निवास है।राधा-कृष्ण का प्यार आज भी बेमिसाल और अद्भुत है l इसमें न किसी को पाने की लालसा थी न किसी को खोने का डर।निःस्वार्थ प्यार क्या होता है ये सीखने को मिलता है l

मंदिर तो वहाँ बहुत हैं लेकिन बाँके बिहारी, प्रेम मंदिर आदि मुख्य हैं बाकी आपके पास जैसा समय हो उस हिसाब से प्लान कर सकते हैं।

निधिवन भी ज़रूर घूमें वहाँ जाकर आपको बड़ा सुकून मिलता है l लोगों का मानना है कि आज भी वहाँ राधा रानी का श्रृंगार होता है और रात में उस वन में कोई नहीं जा सकता l