Web Series Review

पंचायत सीजन 4 देखे या नहीं

अमेज़न प्राइम की पंचायत वेब सीरीज अब किसी परिचय की मोहताज़ नहीं है। २०२० में इसका पहला सीजन आया था तब कोरोना काल में अपने गांव घर को बहुत मिस भी कर रहे थे साथ ही सब घर में कैद थे ऐसे में साफ सुथरी पारिवारिक ठेठ गांव को दर्शाती यह सीरीज अपने आप में एक अलग ही मिसाल है।

जून 2025 में इसका चौथा सीजन रिलीज़ हो गया है और चुनावी संघर्ष के साथ ही साथ काफी उठापटक देखने को मिलता है। हालाँकि इस सीरीज में दर्शकों को बांधकर रखने की उतनी क्षमता नहीं दिखी कही कही यह काफी कमज़ोर पड़ गई।

सीजन 3 के अंत में प्रधान जी पर गोली चली थी और विधायक , भूषण सचिव जी और विकास प्रह्लादजी के आपसी गुथम्गुत्था के बाद सभी लोग थाने में हाज़िर हुए थे और यहीं पर यह सीजन अंत हुआ था। और यह सस्पेंस दर्शक वर्ग को परेशान कर रहा था की आखिर प्रधान जी पर गोली चलवाई किसने और कई बार दर्शक कंफ्यूज भी हो रहे थे की कही वनराकस की बात सही तो नहीं। चुनावी रणनीति के तहत प्रधानजी ने खुद के ऊपर ही तो गोली नहीं चलवा दी। क्यूंकि इतने नज़दीक से गोली लगने के बाद भी प्रधानजी को ज्यादा नुकसान नहीं हुआ ये बात हजम करने लायक नहीं है।

ट्रांसफार्मर फूंकना गांव में एक विकट समस्या होती है और यह समस्या लगभग एक हफ्ते के लिए तो लाइट गई ही समझिये और इस मुद्दे को चुनावी मुद्दा कैसे बनाया जा सकता है ये आप इसके सीजन 4 के एपिसोड ७ में देख सकते हैं।

प्रहलाद जी एक बार फिर दर्शकों को रुलाने में कामयाब रहे कैसे इसके लिए सीरीज को देखना ही पड़ेगा। एक इंटरेस्टिंग करैक्टर रिंकी के नानाजी भी इस सीरीज में आए वो भी थोड़े सस्पीशियस करैक्टर समझ में आए।

बिनोद का डायलाग ‘ गरीब हु गद्दार नहीं,’ सुपर हिट रहा और दिल को छू गया और साथ ही उसकी अपने समूह से निष्ठां आज के ज़माने के लिए अनुकरणीय ही है।

ये बात जब खुलती है तो यकीन करना संभव नहीं होता साथ ही एक दुविधा और की ऐसे इंसान से विधायकी का टिकट लेना कितना न्याय सांगत है जो बिना किसी दुश्मनी के ही अवसर का लाभ उठाते हुए प्रधान जी पर गोली चलवा देता है।
ये सीजन अपने आखिरी एपिसोड में ख़ुशी और गम दोनों देकर विदा होता है। ख़ुशी इस बात की कि सचिव जी फाइनली करने वाले हैं कैट एग्जाम में ठीक ठाक परसेंटाइल मिल गए साथ ही साथ रिंकी से प्रपोजल भी एक्सेप्ट हो गय। कुल मिलाकर सचिवजी की लाइफ सेट।
लेकिन सीजन का आखिरी एपिसोड प्रधानजी के खेमे के लिए दुखद रहा। और ये दुःख जानने के लिए ये सीजन जरूर देखे साथ ही नेक्स्ट सीजन का प्लाट भी आपको पता चल जाएगा

 

Romantic comedy movie jisne cinema ke bad ott pr bhi dhoom machai hai रोमांटिक कॉमेडी फिल्म जिसने सिनेमा के बाद ओटीटी पर भी धूम मचाई है

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अमेज़न प्राइम पर हाल ही में एक मूवी रिलीज़ हुई जो सिनेमा में तो मई से ही चल रही थी लेकिन ओ टी टी पर अब आई लेकिन कहते हैं न इंतज़ार का फल मीठा होता है वैसे ही छुट्टियों के सीजन में यह मूवी भी मिठास लेकर आई है जो बेरोजगार युवा का दुःख दिखाने के साथ ही साथ हमारे समाज में सरकारी नौकरी के लिए कितनी मारा मारी है है ये भी दर्शाती है। एक सरकारी नौकरी किसी की शादी का सवाल हो सकती है तो किसी की जान की कीमत भी।
ज्यादा सस्पेंस न बनाते हुए हम मूवी का नाम बता ही देते हैं ये मूवी है भूल चूक माफ । राजकुमार राओ,वामिका गब्बी, रघुबीर यादव ,संजय मिश्रा ,सीमा पाहवा और ज़ाकिर हुसैन जैसे कलाकारों से सजी ये मूवी आपको आखिरी तक बांधे रखेगी।
कहानी है बाबा विश्वनाथ की नगरी बनारस से जहा २ प्रेमी युगल रंजन और तितली शादी करने के लिए इतने बेकरार हैं की घर से भागने के इरादे से निकलते तो हैं लेकिन घर वालो का ध्यान आते ही लौट भी आते हैं। लेकिन तब तक मामला पुलिस थाने में जा चूका होता हैं और वहां पर सेटलमेंट होता है की अगर २ महीने में रंजन की सरकारी नौकरी लग जाती है तो ये शादी होगी अन्यथा तितली को घर वालो की मर्ज़ी से अपना फूल चुनना होगा। यहां फूल का मतलब जीवन साथी से है। अब भारत में सरकारी नौकरी और बेरोजगार का साथ तो टॉम एंड ज़ेर्री के रिश्ते जैसा है दौड़ता तो बहुत है लेकिन हाथ कुछ नहीं आता और उसमे भी २ महीने की समय बाध्यता ये तो वैसे ही हुआ जैसे एक तो करेला दूजे नीम चढ़ा।रंजन बाबू पहले भोलेनाथ के पास पहुँचते हैं उनको किसी ने बताया की मन्नत मांगने से काम पूरा होता है लेकिन उन्हें समझ ही नहीं आया की मन्नत में क्या माँगा जाय तो एक पंडित जी से मिलते हैं और उनके परामर्श अनुसार कुछ भलाई का काम करने की मन्नत मांगकर चले आते हैं। ऐसे में सब कुछ कर चुकने के बाद रंजन बाबू को घोड़ी चढ़ने का एक ही रास्ता नज़र आता है वो है जुगाड़।
कुछ ले दे कर मामला सेटल किया जाय लेकिन उसके लिए भी कोई ईमानदार इंसान चाहिए जो बेईमानी का काम ईमानदारी से करवा सके ।

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हां पर एंट्री होती है भगवान दास की,नाम से कंफ्यूज मत होइएगा, ये भगवान वास्तव में एक इंसान हैं जो बेरोजगारों के लिए भगवान का काम कर रहे सरकारी नौकरी लगवाने का वो भी पैसे का चढ़ावा लेकर । तो बात सेट होती है 2 लाख एडवांस और बाकि नौकरी लगने के बाद। लेकिन बेरोजगार युवा 2 लाख भी कहाँ से लाये। ऐसे में फिर तितली जी प्रेम में अंधी होकर माँ का हर गिरवि रखती हैं और अपनी शादी का रास्ता खोलती हैं।नौकरी फिक्स होते ही शादी की तारिख ३० निकाल दी जाती है

लेकिन यहां आता है कॉमेडी का तड़का जिसमे रंजन 29 में ही अटका। कहानी का ट्विस्ट और सामाजिक सन्देश लिए हुए भाग अब शुरू होता है जहाँ रंजन एक युवा को डूबने से बचाकर किनारे लाता है और उस से बात करके उसको समझ आता है की जो नौकरी उसके लिए सिर्फ छोकरी तक पहुँचने का जरिया थी वो किसी की ज़िंदगी और मौत का सवाल है और इससे भी बड़ा झटका तब लगता है जब भगवान दास ये बताते हैं की ये वही कैंडिडेट हैं जिसका नाम हटाकर रंजन की नौकरी फिक्स हुई है।

अब सब कुछ जानते हुए भी रंजन चुपचाप घोड़ी चढ़कर अपनी सरकारी नौकरी के साथ छोकरी वाला रास्ता चुनेगा या किसी बेकसूर की जान बचाकर उसका हक़ वापस देकर एक सभ्य संस्कारी और ज़िम्मेदार नागरिक होने का कर्तव्य निभाएगा जिसमे वो खाली हाथ रह जाए इसके चांस बहुत ज्यादा हैं। ये आपको मूवी देखकर ही पता चलेगा।

ग्राम चिकित्सालय रिव्यु

अगर आप इस वीकेंड में साफ़ सुथरी और पारिवारिक वेब सीरीज देखना चाहते हैं तो ग्राम चिकित्सालय जरूर देखे। गांव की साफ़ सुथरी और भोली जनता को कैसे बेवकूफ बनाया जा रहा है और सरकार की लाख कोशिशों के बाद भी विकास पूरी तरह गांव में फलीभूत क्यों नहीं हो रहा है ये सीरीज देखकर काफी कुछ समझ में आ जाता है। कहानी है एक सरकारी डॉक्टर की जिसने स्वेच्छा से गांव में पोस्टिंग ली है ताकि वो भी गांव में क्रांति लाने में योगदान दे सके । दिल्ली में पिताजी का अच्छा हॉस्पिटल छोड़कर देश बदलने की ख्वाहिश लेकर ये टॉप कॉलेज के पढ़े हुए ये डा जब गांव पहुंचे तो इन्हे क्या क्या संघर्ष करना पड़ा। ये देखना वाकई आपको अपनी सीट से बांधकर रखे रहने का काम करेगी। अगर आपने अपनी जिंदगी में लम्बा संघर्ष किया है और आप अभी भी किसी सपने में जी रहे हैं तो आप अपने आप को इन डाक्टर साहब में जरूर देखेंगे। गांव में फैला भ्रष्टाचार और यहां की लोकल राजनीती में फसने के बाद डॉक्टर साहब को बुद्धि आती है और वो अपने अटल इच्छाशक्ति और दृढ निश्चय के साथ इस गांव में टिकने में सफल हो जाते हैं जबकि इस से पहले वाले सारे मेडिकल ऑफिसर्स गांव तक नहीं गए तो चिकित्सालय देखना तो दूर की बात है। पेपर्स पर अपनी अटेंडेंस लगवाकर और गांव में भेजी गई दवाइयों को कम्पाउंडर द्वारा बेचवाकर अपना कमीशन लेकर मस्त रहे।

अगर आपने पंचायत देखी है और उस से प्रभावित होकर ये सीरीज देखने आए हैं तो ये सीरीज आपको निराश कर सकती है क्यूंकि ग्रामीण पृष्ठभूमि और साफ़ सुथरी सीरीज होकर भी यह पंचायत का टक्कर नहीं ले पाई है। हालाँकि सभी कलाकारों ने अपने रोले के साथ न्याय किया है। खासकर मुख्य किरदार अमोल पराशर ने तो इतना संजीदा अभिनय करके मुझे अचम्भित ही किया है क्यूंकि इससे पहले की इनकी सीरीज में मैंने इनको मस्तमौला और बेपरवाह किरदार करते ही देखा है।
विनय पाठक झोलाछाप डॉक्टर के किरदार में पूरी तरह फिट हैं उन्हें ये मालूम है की उनके पास डिग्री नहीं है लेकिन गांव वालों के भरोसे के साथ ही साथ उनके सुख दुःख में साथ खड़े हैं।

सीरीज की नायिका के लिए ज्यादा काम नहीं हैं। हो सकता है पंचायत सीरीज की नायिका की तरह इसके अगले भाग में उनके लिए खुलकर निखरने का मौका मिले। आनंदेश्वर द्विवेदी जी कम्पाउण्डर के रोल के साथ पूरी तरह न्याय किये हैं साथ ही साथ वार्ड बॉय के रोल में आकाश मखीजा बहुत ही सप्पोर्टिव रोल में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हुए हैं।

नर्स इन्दु के रूप में गरिमा विक्रांत सिंह ने अपने सशक्त किरदार को जीवंत किया है आखिरी के २ एपिसोड में तो मुख्य नायिका वही लगी और अपने अभिनय से दर्शकों को रुला पाने में सक्षम रही। और उनके बेटे के किरदार को सन्तु कुमार ने काफी अच्छा किया है। कहानी थोड़ी भटकती हुई लगी इसलिए सबको आपस में बांधे रखने में सफल होती नहीं दिखी।
कुल मिलाकर सीरीज परिवार के साथ बैठकर एन्जॉय की जा सकती है वैसे भी आजकल पारिवारिक सीरीज और मूवीज बनना बंद हो गई है। अमेज़न प्राइम पर 9
मई को यह रिलीज़ हो चुकी है और इस बार बुद्ध पूर्णिमा की छुट्टी के साथ 3 दिन के वीकेंड को आप इस हल्की फुलकी कॉमेडी सीरीज के साथ एन्जॉय क्र सकते हैं। आपके सुझाव और सराहना की उम्मीद के साथ अपनी लेखनी को यहीं विराम देती हूँ।

“शेरनी ” एक जंग इंसान और जानवरों के बीच

शेरनी मूवी बैनर

कोरोना काल में जब सारे सिनेमाघरों पर ताले लगे हुए हैं और सब लोग घरों में बंद हैं ऐसे में ओटीटी प्लेटफार्म फ़िल्म इंडस्ट्री और दर्शक वर्ग दोनों के लिए ही उम्मीद की किरण है। इसी ओटीटी प्लेटफार्म पर 18 जून को मूवी रिलीज़ हुई है” शेरनी” जो जंगल की शेरनी के साथ ही साथ नायिका के संघर्ष को भी बयां करती है।

विद्या बालन स्टारर शेरनी मूवी एक जबरदस्त प्रहार है मनुष्य के प्रकृति से खिलवाड़ के नतीजों को दिखाती हुई। यह बताती है कि जानवर हमारे पास नहीं आ रहे बल्कि हम प्रकृति का दोहन करके उनके प्राकृतिक आवास से छेड़छाड़ करके उनको बाहर निकलने पर मज़बूर कर रहे हैं। इस मूवी में एक डायलाग है कि अगर आप जंगल मे 100 बार जाते हो बाघ देखने तो हो सकता है एकाक बार हमें बाघ दिख जाये लेकिन बाघ ने आपको 99 बार देखा होगा।

फ़िल्म में एक डॉयलोग है “अगर विकास के साथ जीना है तो पर्यावरण को बचा नहीं सकते और अगर पर्यावरण को बचाने जाओ तो विकास बेचारा उदास हो जाता है”।

कुल मिलाकर फ़िल्म निर्माता अमित मसूरकर ने अच्छी कोशिश की है लेकिन कहानी का लय अंत तक ठीक नहीं बैठ पाया है।

क्या है कहानी

फ़िल्म की कहानी विद्या बालन जो इस मूवी में विद्या विंसेट के किरदार को जी रही हैं एक वन विभाग अधिकारी बनी हैं जो 6 साल के डेस्क जॉब के बाद फील्ड में काम करने आई है। उनका प्रोमोशन भी काफी समय से अटका हुआ है। ऊपर से उनके फ़ैमिली में उनके पति की जॉब रेसेशन की वजह से पहले से खतरे में थी तो विद्या अपनी सरकारी नौकरी को छोड़ना अफ़्फोर्ड नहीं कर सकती थी।

लेकिन यहाँ आते ही उनका सामना एक नरभक्षी बाघिन के आतंक से होता है। जिसमे वहाँ के लोकल पॉलिटिकल लोग अपनी पॉलिटिक्स की रोटियाँ भी सेंकने में लगे हैं। विद्या फारेस्ट ऑफिसर के रूप में बाघिन को मारने के पक्ष में बिल्कुल नहीं हैं बल्कि कहीं दूर जंगल में छोड़कर आना चाहती हैं। वहीं उनके सीनियर बंसल ( बृजेन्द्र कला) समस्या से भागते हुए वहां से ट्रांसफर चाहते हैं। पॉलिटिकल लोग मशहूर शूटर पिंटो (शरत सक्सेना) को बुलाकर बाघिन से छुटकारा चाहते हैं।

बाद में पता चलता है कि बाघिन के दो बच्चे भी हैं। विद्या को किसी का भी सपोर्ट नहीं है केवल कॉलेज के प्रोफेसर हसन नूरानी (विजय राज) को छोड़कर।

इसमें ये देखना दिलचस्प होगा कि विद्या बाघिन और उसके बच्चों को बचाते हुए अपनी नौकरी को भी एक ऊंचाई दे पाती हैं या बाघिन भी मरेगी और विद्या भी कहीं नकली जानवरों के साथ काम करती दिखेंगी इसके लिये आपको अमेज़न प्राइम पर यह मूवी देखनी पड़ेगी।

कुल मिलाकर अगर आप विद्या बालन के जबरदस्त फैन हैं और पर्यावरण और पशु सरंक्षण जैसे गंभीर मुद्दे को नजदीक से समझना चाहते हैं तो ये मूवी आपके लिये ही है और अगर केवल मनोरंजन  चाहते हैं तो फिर ये मूवी आपके लिए नहीं है।

गुल्लक -2nd Season

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किसी वेब सीरिज का फस्ट पार्ट हिट होने के बाद उसके अगले ऐदिशन का इंतेजार दर्शको मे होने लगता हैं और काफी इंतज़ार के बाद आखिर गुल्लक 2 रिलीज़ हो गई और फिर से कुछ किस्से  हमारी यादों से खुद को जोड़ने के लिए और हमें खुद को अपने भूले बिसरे पन्ने झटकने को तैयार करने के लिए। यह सीरीज हमारे समाज की एक गंभीर समस्या बेरोजगारी को बहुत ही सशक्त रूप से पर्दे पर दिखाता नज़र आता है और लाइलाज बीमारी की तरह अंत तक किसी निष्कर्ष पर नही पहुँच पाता। मिश्रा परिवार का बड़ा बेटा अन्नू मिश्रा अपनी एसएससी की तैयारी से निराश होकर गैस की ऐजेंसी के लिए हर सम्भव कोशिश करता है लेकिन अंत में कोई और ही एजेंसी झटक ले जाता है।

इस सीजन में हमारे भारतीय संस्कृति से जुड़ी एक और परम्परा कि किचेन सिर्फ गृहिणी का अधिकार क्षेत्र है इस पर भी प्रकाश डाला गया है भले ही घर के पुरूष वर्ग कितना भी हाथ आजमा लें नतीज़ा कुछ नहीं निकलने वाला। दहीबड़े के साथ चाय और कोल्डड्रिंक के साथ आइस क्रीम का कॉम्बिनेशन ऐसे ही इंवेंट हुआ।

इन सबमें दोनों भाइयों की तनातनी के बावजूद एक दूसरे के भविष्य की चिंता और एक दूसरे के लिए छिपा स्नेह वाकई दिल को छू लेता है।

500 रुपये में एक रस्सी लगाके बड़ों को उसके पीछे दौड़ाने वाला गेम देखके बचपन याद आ गया लेकिन पड़ोसन का रस्सी पर चढ़के रुपये निकाल लेना बच्चों को निराश करता है।

सारी उठापटक के बाद मिश्रा परिवार के दूसरे चिराग अमन मिश्रा का हाइस्कूल का रिजल्ट मिश्रा परिवार के साथ दर्शकों को हैरान करने के साथ ही एक उम्मीद देती है कि भविष्य सुधरने वाला है साथ ही गुल्लक 3 भी बनेगी। वहीं लास्ट सीन में 2 बच्चों का पोस्टर देखकर ये बोलना की शक्ल से ही नकलची लगता है बहुत से सवाल अनसुलझे छोड़ देता है।

सभी कलाकारो का अभिनय पह्ले पार्ट की तरह ही लाजवाब है। ऐसे ही तमाम किस्सों से रूबरू होने के लिए आपको गुल्लक 2 देखना चाहिए 5 एपिसोड्स के साथ ये छोटा, मनोरंजक और बांधकर रखने वाला है।

ज़िन्दगी यादों की गुल्लक है

गुल्लक यानि पिगी बैंक जिसमें हम अपनी बचत को जोड़ते हैं ठीक उसी तरह हमारी ज़िंदगी के भी बीते लम्हे हम जमा करते हैं अपनी यादों में।

कुछ ऐसा ही कॉन्सेप्ट है सोनी लिव पे प्रसारित हुए वेबसेरीज़ गुल्लक का। काफी समय के बाद एक ऐसी मनोरंजक वेबसेरीज़ देखने को मिली जो हिंसा और अश्लीलता से अलग हमारे जीवन में घटने वाले छोटे छोटे किस्सों को जोड़कर बनी हुई हो। इसे एक नॉर्मल मिडिल क्लास फैमिली की रोज़मर्रा ज़िन्दगी में घटने वाली घटनाओं को बड़ी ही खूबसूरती से फिल्माया गया है। और कोई भी मिडिल क्लास फैमिली इस पुरे पिक्चर में अपने आपको सेट कर सकता है कई बार तो कुछ घटनाएं खुद पे ही बीती हुई सी लगती है।

कहानी

कहानी तो यह है ही नहीं इसमें हैं छोटे छोटे किस्से क्योंकि कहानी का तो एन्ड होता है जबकि किस्से यादें बनकर गुल्लक में इक्कट्ठे हो जाते हैं। और इस वेबसेरीज़ को बताने वाला भी गुल्लक ही है।

किस्से की शुरुआत होती है एक मिडिल क्लास फैमिली जिसमें एक गृहिणी है जिसके घर को रेनोवेट कराने से लेकर बेटे की नौकरी लगने और घर में इनवर्टर लगवाने जैसे छोटे छोटे सपने हैं। एक नार्मल नौकरीपेशा आदमी जो अपनी एक फिक्स सैलरी में अपनी बीवी और दो बच्चों के सपने पूरे करने की भरपूर कोशिश कर रहा है। दो भाई हैं जिनकी नोक झोक और झगड़े के बीच एक दूसरे के लिए प्यार और अपनापन आपको अपने बचपन की याद दिला सकता है।

इस कहानी में पड़ोसियों के बीच अपना वर्चस्व दिखाने की होड़ के साथ साथ दूसरे पड़ोसी की चुगली के अलावा बेरोजगारी का गम्भीर मुद्दा भी है। साथ ही साथ ये भी देखने को मिलता है कि मां बाप बच्चों को कितना भी डाँट लें लेकिन जब बात उनके खैरियत की होती है तो वो किसी भी चीज़ से समझौता कर सकते हैं।

पूरा किस्सा समझने के लिए तो आपको परिवार के साथ मिलके इसे देखना पड़ेगा और यकीन मानिए आप इसको देखके निराश तो बिल्कुल नहीं होंगे और हँसी के कुछ लम्हे आपकी गुल्लक में जुड़ जायेगे।

पंचायत : सही मायने में एक गाँव की झलक

अगर आपने उत्तर प्रदेश के किसी गांव में अपना बचपन बिताया हैं और आज किसी महानगर की चकाचौंध में गुम से हो गये हैं या उस बचपन उस गांव को दुबारा देखना या जीना चाहते हैं तो ये पंचायत वेबसीरीज़ आपके लिये एकदम सही चुनाव हो सकती है। बिना किसी खास मसाले और ड्रामेबाज़ी के ये वास्तविक रूप में उत्तर प्रदेश के किसी भी गाँव का एक सचित्र चित्रण करती है। मेरा बचपन भी उत्तर प्रदेश के एक गाँव मे बीता तो इस वेबसेरीज़ को देखकर ऐसा लगा की हम वास्तव में ये कहानी दोहरा रहे हैं।

कहानी क़े कुछ अंश

यह कहानी है अभिषेक त्रिपाठी (जितेंद्र कुमार) नाम के एक युवा की जो बी.टेक तो कर लेता है लेकिन उसको इंजीनियरिंग विभाग में कोई नौकरी नहीं मिलती और एक नौकरी मिलती भी है तो एक गांव में सरकारी पंचायत सचिव की। जिसको लेकर उसके मन में काफ़ी उठापटक चलती है एक तरफ घरवालों का बेरोजगारी को लेकर तानों से बचना भी है और दूसरी तरफ लाखों की प्राइवेट नौकरी का ख्वाब भी । ऐसे में उसका एक दोस्त जो लाखों का कार्पोरेट पैकेज पा चुका है उसको सलाह देता है कि नौकरी के साथ साथ MBA की तैयारी करते रहो और जैसे ही MBA एंट्रेंस क्लियर हो गांव से वापस आ जाओ, उससे पहले बेरोजगार बैठे रहने से तो 20हज़ार मंथली वेतन की नौकरी ठीक है साथ मे रूरल एक्सपेरिएंस भी MBA Interview में काम आता है। ये सब सोचकर अभिषेक निकल पड़ते हैं फुलेरा गांव जहाँ उनकी पोस्टिंग हुई है।

बाकी फिल्मों और सीरियल से हटकर इस वेबसेरीज़ में एक वास्तविक गांव दिखा है जिसमें गाँव में होने वाली छोटी छोटी दिक्कतों को हस्यप्रद तरीके से दिखया गया है। सरकारी विभागीय समस्याओं का भी जीवंत उदाहरण दिखाया गया हैं जैसे बिजली कटौती से परेशान गाँव वालों को जब सोलर लाइट दी जाती है तो आम जनता तक पहुंचने की बजाय पंचायत सदस्य आपस में ही उसका बंटवारा कर लेते हैं, इस मुद्दे से लेकर गांव के सचिव के पास गांव प्रधान से बढ़िया और आरामदायक कुर्सी कैसे हो सकती है जैसे मुद्दों को भी बड़ी बारीकी से दिखाया गया है।

खासकर सीरीज़ के चौथे भाग में शादी वाली घटना जिसमें बारात को पंचायत घर में ठहराया जाता है और दूल्हा एक दिन के लिए अपने आपको राजा ही समझता है कि जो वो बोलेगा वही होगा और सब उसकी इज़्ज़त करेंगें और ऐसा न होने पर वो तिलमिला कर शादी न करने को बोलने लगता है ये घटना एकदम दिल तक पहुंचती है और आज भी कहीं न कही ऐसी घटनाएं सुनने मिलती ही रहती हैं।

परिवार नियोजन की समस्या पर विपरीत ग्रामीण दृष्टि कोण की वास्तविक समस्या को भी दिखाने की कोशिश कि गयी हैं कैसे एक स्लोगन दो बच्चे हैं मीठी खीर उससे आगे बवासीर से पूरे गाँव में बवाल हो जाता हैं।

नीना गुप्ता ने उस महिला गांव प्रधान का किरदार बखूबी निभाया है जो सिर्फ नाम की प्रधान है सारा काम उसके पति द्वारा किया जाता है।यह समाज़ का एक कड़वा सच है आज भी भारत में बहुत से ग्राम पंचायत में महिला प्रधान की जगह उनके पतियों को काम करते देखा जा सकता है।

एक परुष प्रधान के रोल में रघुवीर यादव की भुमिका बहुत ही सरल और मेमोरबल हैं बाकी सहायक कलाकारों Chandan Roy as Vikas, Faisal Malik as Prahlad Pandey आदि नें भी अच्छा अभिनय किया हैं, इस तरह ये पूरी पारिवारिक और मनोरंजक वेब सीरीज हैं । हाँ सिरीज़ के आखिरी भाग में सचिव अभिषेक त्रिपाठी की मेहनत से एक अंगूठाछाप प्रधान को देश का राष्ट्रगान गाते और 15 अगस्त पर झंडा फहराते हुए दिखाकर देश भक्ति और विकाश को भी अच्छा अंत दिया हैं जों सचिव अभिषेक त्रिपाठी को फिर से एमबीए की तैयारी की हिम्मत देता हैं और यही शायद सीरीज की दूसरे पार्ट की कहानी को स्टार्ट भी देगा I साथ में प्रधान जी की बेटी रिंकी कि शादी सरप्राइज element हो सकती हैं, इसकी दूसरी सिरीज़ में नीना गुप्ता की सशक्त भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता। इसलिये मुझे भी इसकी सेकंड सीरीज का बेसब्री से इंतेज़ार हैं ।

JL50

JL 50

जब बॉक्स ऑफिस पर नई फिल्मों को कोरोना के कारण बंद कर दिया गया है, तो वेबसीरीज मनोरंजन और कोरोना  आतंक से त्रस्त जीवन की बोरियत से बचाव का एक बड़ा स्रोत बन गई है।

ऐसे में मैंने अभी कुछ दिन पहले ही सोनी लिव पर में आई JL50 वेबसीरीज देखी । ये सीरीज बाकी वेब सीरीज से कुछ हटकर है, कुछ सुकून और रोमांच कुछ पल तो अवश्य दिए,  तो सोचा आपसे शेयर करू।

अभय देओल, पंकज कपूर, पीयूष मिश्रा, राजेश शर्मा, और रितिका आनंद जैसे दिग्गज कलाकारों से सजी ये वेब सीरीज समय यात्रा (Time travel) पर आधारित है जो कम से कम भारतीय सिनेमा के लिए नया कांसेप्ट है।

क्या है कहानी…

इस सीरीज की शुरुआत होती है एक फ्लाइट की हाईजैक की खबर से जिसमें हमारे देश के काफी दिग्गज शख्स सफर कर रहे थे। इस हाईजैक की ज़िम्मेदारी लेता है ABA नाम का संगठन जो इस फ्लाइट के बदले अपने सरगना की रिहाई की मांग करता है जो यहाँ कैद में है और उसको सज़ा ए मौत निर्धारित हो चुकी है। ऐसे में हमारे CBI वालों को एक फ्लाइट क्रैश की खबर मिलती है जो हाइजैक प्लेन के रूट के अपोजिट डायरेक्शन में कोलकाता के किसी जंगल में मिलता है।

बारिश वेब सीरीज़ सीजन-2 क्यों देखें