जैसाकि आपको नाम से ही अंदाज़ा लग गया होगा देवघर यानि सभी देवी देवताओं का निवास स्थान।
देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ धाम भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से 9वें ज्योतिर्लिंग के रूप में जाना जाता है। ये एकमात्र मंदिर है जहां शिव और शक्ति दोनों एक साथ विराजमान हैं इसलिए इसे शक्तिपीठ के नाम से भी जाना जाता है। मान्यताओं के मुताबिक बाबा बैद्यनाथ धाम में ही माता सती का हृदय कटकर गिरा था इसलिए इसे ही हृदयपीठ के रूप में भी जाना जाता है।
जी हां, हम एक नए ब्लॉग के साथ, आपसे जुड़ रहे हैं, जो हमारा अभी की यात्रा का वृत्तांत है ।
अपनी यात्रा की शुरुआत हमने दिल्ली से की और रातभर की ट्रैन यात्रा करके हम पहुँचते हैं जसीडीह जंक्शन और वहां से टैक्सी से 10 km और रोड यात्रा करने के बाद हम पहुँचते हैं देवघर के एक होटल में जहा से बाबा का मंदिर मुश्किल से आधा किलोमीटर ही रह जाता है।
यहाँ पहुंचकर असीम शांति के साथ मन को सुकून देनी वाली बात थी, जसडीह प्लेटफॉर्म की सरंचना जिसकी छवि मैं नीचे संलग्न कर रही हुं जिसको देखने मात्र से ही यह अहसास हो जाता है की हम देव नगरी जहाँ भगवान् भोलेनाथ विराजमान हैं पहुंच गए हैं ।
पौराणिक महत्व
संस्कृत में वैद्य का मतलब चिकित्सक होता है और हमारे कैलाशपति इस उपलब्धि पर भी कब्जा जमाये हुए हैं इसलिए झारखंड में स्थित देवघर को बाबा वैद्यनाथ के नाम से भी जाना जाता है। प्राचीन किवंदती के अनुसार राक्षसराज लंकापति रावण ने एक बार महादेव को खुश करने के लिए घनघोर तपस्या की और अपना सर ९ बार काट कर उनके चरणों में अर्पित किया जब वह दसवीं बार अपना सर काटने चला तो महादेव प्रकट हो गए और वरदान मांगने को कहा साथ ही सभी ९ सर वापस रावण के मस्तक पर विराजमान कर दिया वही से महादेव का नाम वैद्यनाथ पड़ा।
रावण ने वरदान स्वरुप महादेव की प्रतिमा अपने लंका ले जाने की इच्छा व्यक्त की और भोलेनाथ ने इस शर्त पर अनुमति दी की लंका तक जाने के रास्ते में शिवलिंग को कही भी धरती पर स्पर्श न कराया जाये और गलती से भी अगर शिवलिंग धरा पर आए तो वो वहीं विराजमान हो जाएंगें।
ऐसा वरदान पाकर जब लंकापति वहा से प्रस्थान किये तो उन्हें भी ये अंदेशा नहीं था की भोले भंडारी को अपनी इच्छा से कहाँकोई ले जा पाया है।
रास्ते में लघुशंका निवारण के लिए रावण ने शिवलिंग को किसी और को थमाया और भोलेनाथ वही धारा पर विराजमान हो गए और फिर तो राक्षसराज के तमाम प्रयासों के बाद भी वो तस से मस न हुए अंत में रावण ने उनको अपने अंगूठे से दबाकर वहां से प्रस्थान किया। इसलिए देवघर के शिवलिंग जमीन से बहुत कम ही ऊपर हैं उनका ज्यादातर भाग जमीन के अंदर है।
यह धार्मिक स्थल १२ ज्योतिर्लिंग में आता है या नहीं यह विवादित विषय है और कही से भी इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं मिलती लेकिन भक्तो की आस्था का केंद्र यह देवस्थान सावन के महीने में बहुत ही भीड़भाड़ वाला स्थान होता है जुलाई और अगस्त के महीने में यहाँ भक्तों का ताँता लगा रहता है। भक्त जन यहां कावरयात्रा लेकर काफी दूर दूर से गंगाजल अर्पित करने आते हैं। देवघर से १०० km दूर सुल्तानगंज में गंगाजी में डुबकी लगाने के पश्चात कांवरियों और भक्तजनों की यात्रा नंगे पाव ही देवघर तक पहुँचते हैं। वैसे देवाघर परिसर में ही एक तालाब है वहां भी भक्तजन नहाकर दर्शन पूजन करते हैं। यहां की शाम की आरती बड़ी मंत्रमुग्धकारी होती है इसमें अवश्य शामिल हों।
- बाबा बैद्यनाथ मंदिर में ज्योतिर्लिंगम की पूजा सुबह 4:00 बजे शुरू होती है।
- सुबह 4:00 बजे से 5:30 बजे तक सरकार पूजा होती है।
- पूजा अनुष्ठान दोपहर 3:30 बजे तक जारी रहता है, इसके बाद मंदिर बंद हो जाता है।
- बता दें कि यहां आने वाले लोगों के लिए मंदिर शाम 6:00 बजे तक खुला रहता है और इसके बाद पूजा फिर से शुरू होती है। इस समय मंदिर में श्रृंगार पूजा होती है।
- इसके बाद मंदिर रात 9 बजे फिर से बंद कर दिया जाता है।
पंचशूल
इस मंदिर की एक बड़ी विशेषता है की मंदिर के शीर्ष पर त्रिशूल की जगह पंचशूल स्थित है जिसे सुरक्षाकवच माना गया है यहां के पुरोहित के अनुसार रावण को पंचशूल भेदना आता था जबकि प्रभु राम ने विभीषण की मदद से पंचशूल भेदा था तभी श्री राम और उनकी सेना लंका में प्रवेश पा सकी थी क्यूंकि रावण की लंकापुरी के द्वार पर ही सुरक्षा कवच के रूप में पंचशूल स्थापित था।
इसी सुरक्षा कवच के कारण ही इस मंदिर पर आज तक किसी भी प्राकृतिक विपदा का असर नहीं हुआ।
पंडितों के अनुसार पंचशूल का अर्थ मानव शरीर में मौजूद पांच तत्व क्षिति, जल, पावक, गगन, समीर, है।
बासुकीनाथ
भगवान भोलेनाथ के दर्शन पूजन के बाद बासुकीनाथ के दर्शन अनिवार्य देवघर में दर्शन पूजन करने के बाद हमने रुख किया बासुकीनाथ का। ऐसी मान्यता है की समुंद्रमंथन के समय बासुकीनाथ को रस्सी की तरह उपयोग में लाया गया था इसलिए है।
ऐसी मान्यता है की बाबा वैद्यनाथ धाम के दर्शन के बाद वासुकीनाथ के दर्शन जरूर करना चाहिए तभी आपके देवदर्शन पूरा होगा।
बाकि आपको मेरा ये ब्लॉग कैसा लगा बताइयेगा जरूर।