डायरी के पन्नों से

 

है बारिश का मौसम और वीरानी सी डगर

डरता है दिल कैसे पूरा होगा सफ़ऱ

है मज़बूत इच्छाशक्ति और पैनी नज़र

पर फिर भी न जाने कैसा है ये डर

झूठा ही सही कोई साथ तो दे इस कदर

तुम चलो  हर कदम पर साथ है तुम्हारा हमसफर

ममता की मूरत और प्यार का समंदर

फिर भी प्यासा है मेरा मन अति भयंकर

कुछ लोगों का न होना भी अहसास कराता है उनकी फ़िकर

और कुछ लोग साथ होकर भी कितने  होते हैं बेफिकर

आज तक खुद को खुद से जगाते आए हैं

बड़ी मुद्दतों के बाद वो मेरे दर पर जगाने आए हैं

कहते हैं खुश हैं वो अपनी ज़िंदगी में

हम तो खुश हैं केवल उनकी बंदगी में।

कैसे मानूँ मैं की प्यार एक बार होता है ज़िंदगी में

मैंने तो जब जब देखा उन्हें हर बार पिछली बार से ज्यादा चाहा।

कुछ चाहतों के मुकद्दर में बस डायरी के पन्ने होते हैं

जख्म भी खुद के होते हैं और इलाज़ भी खुद से होते हैं।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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