दशहरा पर दसमुख रावण को हर बार हम जलाते हैं ।
बुराई पर अच्छाई की जीत हमेशा दिखाते हैं ।
समय आ गया सोचो और विचार करो
क्या क्या बदला अब तक तब में और अब में
तब रावण के दस सर थे जो उसकी पहचान थे
अब सबके अंदर कितने रावण सब खुद उनसे अनजान हैं ।
क्या मन में बसे क्रोध मोह माया का त्याग हम कर पाए
या प्रतीक रूप में हर बार पुतला जलाकर सारी कमियां घर लाए ।
कभी पुत्र मोह कभी सत्ता लोभ
कभी काम वासना जैसे अगणित रावण हैं ।
क्रोध, अहंकार जैसे इनके अनेकों गण हैं ।
घमंड, स्वार्थ, ईर्ष्या द्वेष को मार पाएंगे
मानवता कब की जर्जर हो गई कब ये जानेंगें ।
कब तक राम हमें जगाएँगें
इन तमाम बुराई को मिलकर हम कब भगा पाएंगे ।
दस पर वश करने का अब भरपूर प्रयत्न करो
अपनी अगली पीढ़ी को हम पुनः रामराज्य दें पाएं ऐसा समुचित यत्न करो
वास्तव में तभी
हम दशहरा की शुभकामनाएँ सबको दे पायेंगें ।