गुरू पुर्णिमा: नमन गुरुजन को

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हमलोग बचपन से ही सुनते आ रहे हैं :

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेेेश्वरः ।

गुरुः साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः ।।

मतलब ब्रम्हा विष्णु महेश सब एक गुरु में ही शामिल हैं गुरू की पदवी सबसे बड़ी है। वैसे तो साल के 365 दिन भी गुरु की महिमा और पूजा के लिए कम हैं लेकिन आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। इस दिन हमारे वेदों के जनक ऋषि वेदव्यास का जन्म हुआ था ।  उनका बचपन का नाम कृष्ण द्वैपायन व्यास था और वह ऋषि पराशर के पुत्र थे । उन्होंने महाभारत के साथ ही साथ चारों वेदों ऋग्वेद, सामवेद ,अथर्ववेद और यजुर्वेद को लिखा। उन्हें  आदिगुरु का दर्जा प्राप्त है और उन्हीं के सम्मान में तब से यह दिन गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है ।

2021 में यह 24 जुलाई को है।

गुरु पूर्णिमा, जिसमें सभी लोग अपने गुरुओं खासकर अध्यात्म  और अकादमी गुरु से मिलकर उनकी पूजा अर्चना करते हैं। मिर्ज़ापुर में कुछ गुरु जैसे स्वामी अड़गड़ानंद, देवरहा बाबा, जैसे गुरुओं का आश्रम भक्तों से भरा होता है। और भी अध्यात्म गुरु जैसे स्वामी परमहंस, सत्य साईं बाबा, सुदर्शनाचार्य, स्वरूपानंद सरस्वती, स्वामी ज्ञानानंद, ओशो जैसे अनेकों नाम शामिल हैं जिनके भक्तों की संख्या करोड़ों में हैं । इन गुरुओं की भी गद्दी परम्परा होती है उनके बाद उनके वारिस उनकी गद्दी सम्हालते हैं और पीढ़ी दर पीढ़ी गुरु और शिष्य परम्परा चलती रहती है।

गुरु में ‘गु’ का मतलब अंधकार या अज्ञान और ‘रु’ का मतलब दूर करने वाला अर्थात गुरु का शाब्दिक अर्थ ही है अंधकार या अज्ञान दूर करने वाला। इस पर्व की ख़ास बात यह है कि यह हिन्दू, बौद्ध, जैन, सिख सभी धर्मों में मनाया जाता है।

इस दिन खीर दान में देने की भी परम्परा है। यह पर्व आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है आषाढ़ मास चतुर्मास (आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद और अश्विन) में पड़ता है जिसमें सभी गुरु, सन्त महात्मा नगर, कोलाहल से दूर अध्यात्म और ज्ञान की तलाश में वन में प्रस्थान कर जाते हैं और इस समय प्रकृति भी हरियाली और ख़ुशनुमा माहौल लेकर ज्ञान बढ़ाने के लिए अनुकूल वातावरण देती है।

जीवन सतत बढ़ते रहने का ही नाम है और आगे बढ़ने के लिए कुछ न कुछ सीखते रहना चाहिए इस संसार में कुछ भी परफेक्ट नहीं हैं ज्ञान अगर अपने से छोटे से भी मिले तो ले लेना चाहिए । कई बार समस्या इतनी गम्भीर नहीं होती जितनी हम समझते हैं फर्क सिर्फ नज़रिए का होता है कबीर दास का एक दोहा है:

गुरु कुम्हार शिष्य कुम्भ है गढ़ी गढ़ी काढ़े खोट ।

अंदर हाथ सहार दे बाहर बाहै चोट ।।

जिस तरह आप किसी कुम्हार को बर्तन बनाते हुए देखेंगे तो ऐसा लगेगा कि वह बरतनों पर बहुत तेज़ी से मारकर उन्हें तोड़ न दे लेकिन उसका एक हाथ बर्तन के अंदर भी होता है जो बर्तन को सहारा देता है ठीक उसी तरह का गुरु शिष्य का रिश्ता भी होता है हमारे अंदर की कमियों और बुराइयों को दूर करने के लिये कई बार गुरु कई कठोर निर्णय लेते हैं जो तुरंत तो दुखदाई होते हैं लेकिन दूरगामी सुखद परिणाम देते हैं।

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में वैसे तो हम सभी के लिये मॉडर्न गुरु गूगल ही हो गया हैं, फिर भी अपनी ज़िंदगी को एक दिशा देने वाले अपने गुरुजन को कम से कम इस दिन जरूर याद करें और दिल से उनका धन्यवाद करें क्यूंकि जब हम जिंदगी का पहला कदम उठाने में हिचकिचा रहे थे या डर रहे थे तब हमारा हाथ मज़बूती से थामे ये गुरुजन ही थे वो मां के रूप में हों या स्कूल की पहली टीचर के रूप में, हमें हर मुश्किल से लड़ना सिखाया और हर हालात में साथ खड़े रहे।

गुरु पूर्णिमा के दिन ऐसे सभी गुरुओं को शत शत नमन।

 

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