जगन्नाथ पुरी ; धरती का वैकुण्ठ

जगन्नाथ का शाब्दिक अर्थ जगत यानि दुनिया के नाथ यानि मालिक। उड़ीसा का यह शहर हिन्दू धर्म के देवता भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है। यहां पर भगवान के दर्शन भी हिन्दुओं को ही मिलता है। इस मंदिर को हिन्दुओं के चार धाम में शामिल किया गया है। भारत के चार दिशाओं में चार धाम हैं उत्तर में बद्रीनाथ,पश्चिम में द्वारका, पूर्व में जगन्नाथ और दक्षिण में रामेश्वरम ये चारधाम हैं

इस वर्ष हमे यहां दर्शन करने का अवसर मिला तो मै आपसे यहां का अनुभव साझा करने आ गई। पुरी जाने के लिए अच्छी अच्छी ट्रैन हैं जो भारत के हर शहर से सीधे आपको पुरी पहुंचाएंगे मैं भी दिल्ली से ट्रैन द्वारा जगन्नाथ धाम पहुंची। रास्ते में बहुत ही बढ़िया प्राकृतिक दृश्य हमे अभिभूत कर रहे थे। जब हम दिल्ली से निकले थे तो दिल्ली में हद कंपाने वाली जनवरी की ठंडी अपने प्रचंड रूप में डरा रही थी लेकिन ओडिसा में मौसम बहुत सुहाना था।

पुराणों में इसे धरती का वैकुंठ कहा गया है। इस मंदिर का वार्षिक रथ यात्रा उत्सव प्रसिद्ध है। इसमें मंदिर के तीनों मुख्य देवता, भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भ्राता बलभद्र और भगिनी सुभद्रा तीनों, तीन अलग-अलग भव्य और सुसज्जित रथों में विराजमान होकर नगर की यात्रा को निकलते हैं।

जगन्नाथ धाम के रोचक तथ्य

1). पुरी में किसी भी स्थान से आप मंदिर के शीर्ष पर लगे सुदर्शन चक्र को देखेंगे तो वह आपको सदैव अपने सामने ही लगा दिखेगा।

2). सामान्य दिनों के समय हवा समुद्र से जमीन की तरफ आती है और शाम के दौरान इसके विपरीत, लेकिन पुरी में इसका उल्टा होता है।

3). मंदिर के ऊपर स्थापित ध्वज सदैव हवा के विपरीत दिशा में लहराता है।

4). पक्षी या विमानों को मंदिर के ऊपर उड़ते हुए नहीं पाएंगे।

5). मुख्य गुंबद की छाया दिन के किसी भी समय अदृश्य ही रहती है।

6). मंदिर के अंदर पकाने के लिए भोजन की मात्रा पूरे वर्ष के लिए रहती है। प्रसाद की एक भी मात्रा कभी भी व्यर्थ नहीं जाती, लाखों लोगों तक को खिला सकते हैं।

7). मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए 7 बर्तन एक-दूसरे पर रखे जाते हैं और सब कुछ लकड़ी पर ही पकाया जाता है। इस प्रक्रिया में शीर्ष बर्तन में सामग्री पहले पकती है फिर क्रमश: नीचे की तरफ एक के बाद एक पकती जाती है।

8). मंदिर के सिंहद्वार में पहला कदम प्रवेश करने पर ही (मंदिर के अंदर से) आप सागर द्वारा निर्मित किसी भी ध्वनि को नहीं सुन सकते। आप (मंदिर के बाहर से) एक ही कदम को पार करें, तब आप इसे सुन सकते हैं। इसे शाम को स्पष्ट रूप से अनुभव किया जा सकता है।

9). एक पुजारी मंदिर के 45 मंजिला शिखर पर स्थित झंडे को रोज बदलता है। ऐसी मान्यता है कि अगर एक दिन भी झंडा नहीं बदला गया तो मंदिर 18 वर्षों के लिए बंद हो जाएगा।

 

भगवान से भक्त का मिलन हमेशा से अद्भुत रहता है अच्छी खासी भीड़ के बावजूद हमे ज्यादा इंतज़ार नहीं करना पड़ा भक्तजनों को रेलिंग में लाइन लगाकर खड़े रहने के साथ बैठने की भी व्यवस्था थी। आजकल सबकी दुनिया मोबाइल और गैजेट में सिमट गई है इसलिए यहां मंदिर में घुसने से पहले ही मोबाइल इत्यादि रखवा लेते हैं ताकि आप इत्मीनान से दर्शन करिये और कोई विकर्षण न हो । मंदिर प्रांगण में बहुत ही सुकून और भक्तिमय माहौल था। दिल्ली से ओडिशा तक के सफर की सारी थकान मात्र दर्शन से खत्म हो गई।

जगन्नाथ मंदिर से जुड़ी एक बेहद रहस्यमय कहानी प्रचलित है, जिसके अनुसार मंदिर में मौजूद भगवान जगन्नाथ की मूर्ति के भीतर स्वयं ब्रह्मा विराजमान हैं। ब्रह्मा कृष्ण के नश्वर शरीर में विराजमान थे और जब कृष्ण की मृत्यु हुई तब पांडवों ने उनके शरीर का दाह-संस्कार कर दिया लेकिन कृष्ण का दिल (पिंड) जलता ही रहा। ईश्वर के आदेशानुसार पिंड को पांडवों ने जल में प्रवाहित कर दिया। उस पिंड ने लट्ठे का रूप ले लिया। राजा इन्द्रद्युम्न, जो कि भगवान जगन्नाथ के भक्त थे, को यह लट्ठा मिला और उन्होंने इसे जगन्नाथ की मूर्ति के भीतर स्थापित कर दिया। उस दिन से लेकर आज तक वह लट्ठा भगवान जगन्नाथ की मूर्ति के भीतर है। हर 12 वर्ष के अंतराल के बाद जगन्नाथ की मूर्ति बदलती है लेकिन यह लट्ठा उसी में रहता है।

इस लकड़ी के लट्ठे से एक हैरान करने वाली बात यह भी है कि यह मूर्ति हर 12 साल में एक बार बदलती तो है लेकिन लट्ठे को आज तक किसी ने नहीं देखा। मंदिर के पुजारी जो इस मूर्ति को बदलते हैं, उनका कहना है कि उनकी आंखों पर पट्टी बांध दी जाती है और हाथ पर कपड़ा ढक दिया जाता है। इसलिए वे ना तो उस लट्ठे को देख पाए हैं और ही छूकर महसूस कर पाए हैं। पुजारियों के अनुसार वह लट्ठा इतना सॉफ्ट होता है मानो कोई खरगोश उनके हाथ में फुदक रहा है।

पुजारियों का ऐसा मानना है कि अगर कोई व्यक्ति इस मूर्ति के भीतर छिपे ब्रह्मा को देख लेगा तो उसकी मृत्यु हो जाएगी। इसी वजह से जिस दिन जगन्नाथ की मूर्ति बदली जानी होती है, उड़ीसा सरकार द्वारा पूरे शहर की बिजली बाधित कर दी जाती है। यह बात आज तक एक रहस्य ही है कि क्या वाकई भगवान जगन्नाथ की मूर्ति में ब्रह्मा का वास है।

रथयात्रा का इतिहास – History of Rath Yatra in Hindi

पौराणिक मान्यता है कि द्वारका में एक बार श्री सुभद्रा जी ने नगर देखना चाहा, तब भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें रथ पर बैठाकर नगर का भ्रमण कराया। इसी घटना की याद में हर साल तीनों देवों को रथ पर बैठाकर नगर के दर्शन कराए जाते हैं। रथयात्रा से जुड़ी कई अन्य रोचक कथाएं भी हैं जिनमें से एक जगन्नाथ जी, बलराम जी और सुभद्रा जी की अपूर्ण मूर्तियों से भी संबंधित हैं।

रथ यात्रा यहां का विशेष पर्व है और यह प्रतिवर्ष जून या जुलाई के महीने में जो की हिंदी केलिन्डर के हिसाब से आषाढ़ का महीना होता है शुक्ल पक्ष में यह मनाया जाता है। वापस आकर स्नान करने के बाद प्रभु को जुकाम हो जाता है तो १४ दिन का कोरेन्टीन रखने का रिवाज़ सदियों से चला आ रहा जो हमने कोरोना काल में जाना। कोरोना के बचाव के लिए काढ़ा पीने की सलाह दी जाती थी वो भी प्रभु के लिए पहले से ही किया जाता रहा है। कुल मिलाकर प्रभु जगन्नाथ को जीवित मानकर उनकी खाने पीने की व्यवस्था से लेकर अस्वस्थ होने पर भी वैसे ही देखभाल की जाती है और प्रत्येक कार्य के लिए अलग अलग पुजारी नियुक्त हैं।

भगवन जगन्नाथ के दर्शन के उपरान्त हम समुद्र तट पर पहुंचे। पूरी समुद्र के किनारे ही बसा हुआ है यहां सड़क से लगा हुआ समुद्र तट है अगर आप सड़क मार्ग से यात्रा कर रहे हैं तो ओडिशा की पारम्परिक शैली और रहन सहन आपको मंत्रमुग्ध कर देगा।

शाम को हम यहां के लोकल मार्किट में भी निकले शीप और शंख से बनी हुई बहुत सी चीजें आपको आकर्षित करेंगी हमने भी कुछ खरीददारी की और फिर होटल में वापस आ गए।

पुरी आएं तो कम से कम 4, 5 दिन लेकर आएं क्यूंकि यहां से लगभग 40 km की दुरी पर चिलिका झील है जो भारत की सबसे बड़ी खारे पानी की झील है और यहां भी काफी आकर्षण है साथ ही साथ लगभग 60 km की दूरी पर भुबनेश्वर है जो यहां की राजधानी होने के साथ ही साथ काफी ऐतिहासिक और पौराणिक जगहें भी हैं जैसे लिंगराज मंदिर,कोणार्क मंदिर , खंडगिरि और उदयगिरि की गुफाएं। इन सबको हम अपने अगले ब्लॉग में लेकर आएँगे। आप इस ब्लॉग को भी पहले वाले ब्लोग्स की तरह ही प्यार और अपनी राय जरूर रखियेगा तब तक के लिए जय जगन्नाथ।

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