कुछ अधूरे से ख्वाब

कुछ अनकहे अनसुने से फ़क़त बन्द आँखों में

उभरी कुछ लकीरों तक ही रह गए

कुछ अनबुने अधूरे से वो ख्वाब

कई कई बार अधूरी नींद में मांगते वो मुझसे जवाब

जो जुनून में थे शामिल जिनके लिए

हद से गुज़र जाने की थी तमन्ना

आज भागते फिरते हैं उनकी एक परछाई से

न जाने कौन से मोड़ पर सामने हो कोई

दूर मंजिल लम्बा सफर है

साथ केवल मैं और मेरी ही परछाई

नसीब में मेरे अपनों की है रुसवाई

शिकायत और किससे ही करू मैं

नहीं कोई कहीं भी है मेरी सुनवाई

दोष किसका भी नहीं और न ही कोई है पुछवाई

अब है केवल बढ़ते रहना

एक मंजिल ना सही रास्ते और भी हैं

खुद से सोचो खुद को समझो

है बहुत से और भी तरीके

खुद को जिस दिन जान लोगे

अपनी कुछ ठान लोगे

होगी पूरी कायनात संग

जीत जाओगे तुम फिर हर जंग

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