नागपंचमी
हमारा भारत देश हर जीव को सम्मान देने में विश्वास रखता है और ऐसे ही सम्मान देने में हमारे कई त्यौहार बन जाते हैं। ऐसा ही एक त्यौहार है नागपंचमी जो श्रावण मास की शुक्लपक्ष की पंचमी को मनाया जाता है चूंकि तब तक मानसून अपने शीर्ष पर होता है ऐसे में बिल और कंदराओं में रहने वाले पशु पक्षी बेघर होकर इधर उधर घूमते रहते हैं और जाने अनजाने में उनको चोट पहुंचाने वालों को वो हरगिज़ नहीं छोड़ते ऐसे में सांप को प्रसन्न करने के लिए नागपंचमी पर्व मनाया जाता है । इस दिन विवाहिता स्त्रियां नागों की पूजा अर्चना करने के बाद दूध और लावा (धान को बालू में तेज आंच पर गर्म करने पर बना ) चढ़ाती हैं। और अपने परिवार की सुख समृद्धि की प्रार्थना करती हैं।
ऐसा माना जाता है कि जब नागों का राजा तक्षक राजा जन्मजेय की पिता राजा परीक्षित को डस लिया इससे नाराज़ होकर राजा जन्मजेय ने पृथ्वी को सर्पविहीन बनाने के लिये एक यज्ञ शुरू किया। इससे डरकर मुनि अस्तिका ऋषि ने राजा जन्मजेय को समझाया और ये यज्ञ बंद करवाया। जिस दिन यह यज्ञ बंद हुआ वह श्रावण मास की पंचमी थी तब से यह दिन नागपंचमी के रूप में मनाया जाने लगा।
ऐसी ही एक कथा के अनुसार जिस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने कालिया नाग का वध करके यमुना और गोकुल वासियों को नाग से मुक्ति दिलाई थी, वह भी श्रावण मास के शुक्लपक्ष की पंचमी थी। तब से इस दिन सर्प की पूजा होने लगी।
2022 में यह 2 अगस्त को है।
बरसात के मौसम में जब किसान अपने खेतों में काम करते हैं तो और भी जीव जंतु जैसे चूहा, गिरगिट आदि फसलों को नष्ट करते जिसे साँप इनकी संख्या कम कर फसलो को बचाते हैं इसलिए भी उनकी पूजा होती।
अगर आपने 90’s की नाग नागिन मूवी देखी हो तो उसमें नाग को मारने वाले कि इमेज उसकी आँखों में छप जाती और उसीको देखकर नागिन सबसे बदला लेती है। पहले के लोगों में यह भी एक अंधविश्वास था।
हमारे पुराणों में देखा जाय तो भोलेनाथ के गले में साँप का बसेरा है श्रीहरि विष्णु नाग की शैया पर विराजमान हैं और कृष्ण जी ने कालिया नाग को मुक्ति दी।और तो और ऐसी मान्यता है कि हमारी पूरी पृथ्वी ही शेष नाग के फन पर विराजमान है।ऐसे में तो साँप पूज्यनीय हो ही जाते हैं।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण में साँप को गुस्सा, क्रोध अहंकार से जोड़ा गया है क्योंकि उनके अंदर का विष किसी को भी खत्म करने के लिए काफी होता है तो उनमें अहंकार होना स्वाभाविक है लेकिन इतने शक्तिशाली होने के बाद भी अपने आपको स्थिर शांत और दयालु बनाए रखना महानता होती है नागपंचमी का पर्व अपने अंदर का क्रोध और अहंकार इसी व्रत पर्व के साथ खत्म करने की बहुत बड़ी सीख लिए होता है।