बचपन में संदेह अलंकार का एक उत्कृष्ट उदाहरण हम सभी ने अवश्य ही सुना होगा :
नारी बीच सारी है कि सारी बीच नारी है
नारी की ही सारी है या सारी की ही नारी है।।
महाभारत के द्रौपदी चीरहरण से जुड़ा यह प्रसंग अपने आप में ही एक पूरी कथा समेटे हुए है लेकिन ये भी यथार्थ है कि नारी और साड़ी दोनो ही एक दूसरे के बिना अधूरी हैं खासकर हमारे देश भारत में तो कोई भी त्यौहार बिना साड़ी के पूरा नही होता। भारत विविधताओं से भरा देश है यहाँ बोली भाषा, धर्म, त्यौहार और भोजन, रहने के तरीके सब देश क़े अलग अलग हिस्सों में एक दूसरे से भिन्न भिन्न होते हैं, वैसे ही हर प्रदेश के हिसाब से साड़ी का फैब्रिक और पहनने का तरीका दोनों ही बदल जाते है।
हम आज बात करते हैं भारत में पाई जाने वाली मुख्य साड़ियाँ और उनसे जुड़े कुछ तथ्य और रोचक जानकारियाँ, साथ ही में विभिन्न वैरायटी की साड़ी का कलेक्शन भी बनाया है । तो शुरूआत करते हैं भारत के दक्षिणी छोर से जहाँ की कांजीवरम साड़ियां काफी मशहूर हैं।
1. कांजीवरम साड़ियां-
काजीवरम साड़ियां तमिलनाडु केे कांचीपुरम में बनी शुद्ध रेशम की साड़ी है। एक वास्तविक कांचीपुरम सिल्क साड़ी में मेन पार्ट और बॉर्डर को अलग-अलग बुना जाता है और फिर एक साथ अच्छे से जोड़ लिया जाता है। यह साडियाँ अपनी wide contrast borders से पहचानी जाती हैं और ये साड़ी वजन में भी भारी होती हैं । मन्दिर की borders, धारिया और पुष्प (बटास) कांचीपुरम साड़ियों पर पाए जाने वाले पारंपरिक डिज़ाइन हैं। कांजीवरम साड़ी को पहचानने का सबसे बढ़िया तरीका है कि जब आप इसके ज़री को हल्का स्क्रैच करेंगें तो लाल रंग उभरता हुआ दिखेगा। kanziwaram Saree
. कोनराड साड़ी –
तमिलनाडु से ही टेम्पल साड़ी के रूप में लोकप्रिय, कोनराड साड़ियों को मूल रूप से मंदिर के देवताओं के लिए बुना जाता था। साड़ी कपड़े में आम तौर पर धारियाँ या चेक और एक विस्तृत बॉर्डर होता है। जानवरों और प्राकृतिक तत्वों के रूपांकनों के साथ बॉर्डर इस साड़ी को इतना खास बनाती है।
Konrad Saree
3. कसावु साड़ी –
केरला से कसावु साड़ी को मूल रूप से ‘मुंडुम नेरेयाथम’ के नाम से जाना जाता था। गोल्डन बॉर्डर वाली ऑफ-व्हाइट कलर की सिंपल कॉटन साड़ियां, केरल की कसावु साड़ियां अपने आप में आइकॉनिक हैं। कासावु साड़ी शान, सादगी और परंपरा का प्रतीक है। ये साड़ियाँ अपनी गोल्ड और ताँबे की ज़री के बॉर्डर की वजह से काफी मशहूर हैं। केरला में कुछ पारम्परिक पूजा और शादी विवाह तो इन साड़ियों के बिना हो नहीं सकते, विष्णु पूजा और ओणम ऐसे ही कुछ खास मौके हैं। सोने की ज़री प्रयोग होने से इसके दाम ज्यादा ही होते हैं। लाइट में डिफरेंट एंगल पे इनकी डिफरेंट चमक इनको अद्भुत बनाती है। इनकी विशेषता यह होती है कि इसी डिज़ाइन की जेंट्स की धोती भी तैयार की जाती है जिसको केरला की पारंपरिक भाषा में मुंडू बोलते हैं। इनका रख रखाव भी थोड़ा अलग होता है इनको किसी भी प्रकार के केमिकल से दूर रखना चाहिए। कोई लिक्विड चीज साड़ी पर न गिरने पाए इसका भी खास ख्याल रखना चाहिए। सिल्क साड़ियों को ड्राई क्लीन ही करवाना ही उचित होता है।
Kasavu Saree
4. पोचम्पली साड़ी-
पंचमपल्ली साड़ी या पोचमपल्ली इकत साड़ियों की उत्पत्ति तेलंगाना से हुई है और इसमें जटिल ज्यामितीय (Geometry) पैटर्न हैं जो रंगाई की इकत शैली के साथ बनाए गए हैं। कुशल बुनकरों द्वारा निर्मित, ये साड़ियां रंग से भरपूर होती हैं। पोचमपल्ली साड़ी रेशम और महीन कपास के मिश्रण से बनाई जाती है। इन साड़ियों को चमक देंने के लिए वैक्स का भी उपयोग किया जाता है। साड़ी वजन में हल्की होती हैं और इनमें चमक होती है, इसलिए अगर आपको नियमित रूप से साड़ी पहनने की आदत नहीं है, तो यह साड़ी आपके सभी पसंद के लिए सही विकल्प होनी चाहिए, खासकर गर्म भारतीय गर्मियों में।
अब अगर हम थोड़ा मध्य भारत की तरफ बढ़तें हैं तो साँडियों का रंग और डिजाइन बदलने लगता हैं जिसमें मुख्य रूप यह सड़ियाँ famous हैं :
5. कोसा साड़ी-
कोसा साड़ी भारत में सबसे लोकप्रिय साड़ियों में से एक है, जो विभिन्न रंगों, पैटर्नों और डिजाइनों में उपलब्ध है। छत्तीसगढ़ में रेशम के कीड़ों की कई प्रजातियों के लार्वा से उत्पादित कोसा रेशम या तुस्सर सिल्क से बनी ये साड़ियाँ किसी का भी मन मोह सकती है। रेशम के कीड़ों की तादाद कम होने और प्रोसेसिंग में काफी समय लगने की वज़ह से आजकल और दुसरे फैब्रिक मिलाकर भी साड़ी बनाई जाती है। फीके गोल्डेन ब्राऊनिश टेक्सचर इन साड़ियों की खासियत होती है हालांकि प्राकृतिक रंगों के और शेड्स में भी ये साड़ियाँ मिलती हैं। फैब्रिक को जलाने पर बाल जलने की महक आना इन साड़ियों की पहचान का मुख्य तरीका होता है। ये साड़ियाँ रोजमर्रा पहनने के काम में नहीं लाई जा सकती हैं खासकर गर्म जगहों पर।
Kosa Silk Saree
6. माहेश्वरी साड़ियां–
रेशम और कपास के महीन धागों से बनी महीन कारीगरी को दिखाती ये बेमिसाल साड़ियाँ मध्यप्रदेश के माहेश्वर जगह से संबंध खती हैं। माहेश्वरी साड़िया अत्यंत बारीक सूत में रेशमी धागे मिलाकर बुनी जाती है। इन साड़ियों की सबसे बड़ी खासियत इनकी चेकनुमा बुनावट है, जिसे यहां की बोली में चौखड़ा कहा जाता है।
7. चंदेरी साड़ियां-
यह भी मुख्य रूप से मध्यप्रदेश से संबंध रखती हैं। यह भी सिल्क और कपास के अत्यंत बारीक धागों से निर्मित होती हैं। ऐसा कहा जाता है कि यह साड़ी इतनी बारीक होती थी कि एक पूरी साड़ी एक मुट्ठी के भीतर समा जाती थी। इसलिये चंदेरी साड़ी हल्के होने के साथ-साथ सुरुचिपूर्ण और शानदार भी हैं। चन्देरी सिल्क साड़ी को आपस में ही रगड़ने से ऐसी आवाज़ आती है जिस प्रकार से कोई बर्फ पे चलने की आवाज़ आए।
8. बनारसी साड़ियाँ–
उत्तर प्रदेश के वाराणसी में निर्मित ये साड़ियाँ हर स्त्री की कमज़ोरी हो सकती हैं और ये सदाबहार होती हैं इनका फैशन कभी भी खत्म नहीं होता। शादी ब्याह में तो जोर शोर से इनका प्रचलन बढ़ जाता है। ये साड़ियाँ हाथ से बनाई जाती हैं तो इनके पीछे की तरफ भी उसका पैटर्न सफाई से दिखता है वह उतना लूज़ तो नही होता लेकिन मशीन जैसी फिनिशिंग नहीं मिलती है। बनारसी साड़ियाँ प्लेन बॉर्डर के साथ होती हैं इनमें डिज़ाइन 5, 6 इंच नीचे से छोड़कर शुरू होती है। बनारसी साड़ियों में आमतौर पर प्रचलित रोजमर्रा आसपास पाई जाने वाली चीजों की ही डिज़ाइन होती है। सिल्क धागे को पहचानने का सबसे बढ़िया तरीका कुछ धागों को जलाने पर बाल जलने की महक आती है। रिंग टेस्ट भी एक बढ़िया टेस्ट होता है सिल्क साड़ी पहचानने का । पूरी साड़ी एक रिंग से क्रॉस हो जाती है बिना किसी रुकावट के। ये हथकरघे पर बनाई जाती हैं और काफी बारीकी से इनकी बुनाई होती हैं इसलिए ये महँगी भी होती हैं।
9. चिकनकारी साड़ी –
यदि आप कभी लखनऊ गए हैं, तो आप जानते हैं कि चिकनकारी सिर्फ एक कला नहीं है, यह संस्कृति है। चिकन का मतलब वास्तव में कढ़ाई है। हालांकि पहले यह मलमल के कपड़े पर किया जाता था, अब यह लगभग सभी प्रकार के कपड़ों में उपलब्ध है। यह जटिल रूप से चिकनकारी साड़ी को भव्यता प्रदान करता है। चिकनकारी में प्रयुक्त डाइज नेचुरल रंगों में ही होता है इसलिए चिकन कढ़ाई वाले कपड़े मोस्टली हल्के रंग में पाए जाते हैं बहुत गहरे रंग के कपड़े चिकनकारी कढ़ाई के साथ अवेलेबल नहीं होते। हैंड वोवन कढ़ाई और मशीन की कढ़ाई में अंतर आसानी से देखा जा सकता है। हाथ की कढ़ाई का उल्टा तरफ भी सेम लुक देता है और धागों का जाल या टूटे धागे जैसा कुछ देखने को नहीं मिलता ये मशीन की कढ़ाई में मिल जाता है। चिकनकारी कढ़ाई की शाइन भी अपने आप मे अलग पहचान होती है। आपको इस साड़ी को पहनने के लिए किसी अवसर की आवश्यकता नहीं है, इसे शाम की पार्टियों या जब भी आप चाहें पहन सकते हैं।
Chickenkari Saree
10. ज़रदोज़ी साड़ी-
ज़रदोज़ी वास्तव में एक कढ़ाई पैटर्न होता है जो भारत में पर्शिया से आया। ज़रदोज़ी में ज़र का मतलब गोल्ड और दोज़ी मतलब एम्ब्रॉइडरी मतलब की ऐसी कढ़ाई जिसमे मेटालिक वायर्स का इस्तेमाल किया जाता हो पहले ये वायर गोल्ड या सिल्वर ही होता था लेकिन आज की ज़रूरत और महंगाई के साथ ही इन वायर्स की जगह कोपर, जिंक आदि मेटल्स के वायर्स से भी कढ़ाई होती है।
लखनऊ शहर इस इम्ब्रायडरी का सेंट्रल हब माना जाता है। पहले मुग़ल शासक अपने और अपने ख़ास लोगों के ड्रेसेज के लिए ही इस कढ़ाई का प्रयोग करते थे लेकिन समय बदलने के साथ अब कॉमन लोग भी अपने खास मौकों जैसे शादी त्यौहार में ज़रदोज़ी की हुई साड़ी, लहंगा, शेरवानी पहनते हैं।
Zardoji Saree
11. फुलकारी साड़ी –
फुलकारी का अर्थ होता है फूल का काम। यह साड़ी मूल रूप से पंजाब से उत्पन्न हुई थी। फुलकारी साड़ी बनाने के लिए खादी या सूती जैसे कपड़े पर एक रेशम के धागे के साथ कढ़ाई किए जाते हैं। इस साड़ी में आमतौर पर जस्ट लाइक पंजाब की संस्कृति से मैच करते चमकीले रंग के फूल और ज्यामितीय (Geometric) पैटर्न होते हैं। इस साड़ी का सबसे अच्छा हिस्सा यह है कि आपको इसके लिए ज्यादा खर्च नहीं करना पड़ेगा। फुलकारी एक प्रकार की कढ़ाई होती है जो पंजाब के अलग अलग हिस्सों में औरतें बहुत खूबसूरत तरीके से रंग बिरंगे कपडों पर करती है। यह कढ़ाई पंजाब की विविधता की झलक दिखाता है।
Phulkari Saree
12. लहरिया साड़ी-
लहरिया साड़ी- लहरिया साड़ी राजस्थान की पारम्परिक स्टाइल टाई एंड डाई का ही एक रूप है। लहरिया शब्द लहरों के नाम से उत्पन्न हुआ क्योंकि डाइंग के बाद जो डिज़ाइन उभरकर सामने आती है वो नदी की उठती गिरती लहरों को ही दिखाती हुई सी लगती है। लहरिया डाइंग या तो सूती या सिल्क दोनों कपड़ों पे किया जाता है। इस पैटर्न के कपड़े से बनी पगड़ी राजस्थान की शान होती है। Lahariya Saree
इनमें प्रयुक्त कपड़े को रंगने के लिए भी प्राकृतिक रंगों का ही इस्तेमाल होता है और लहरिया पैटर्न लाने के लिए डाई करने का इनका अपना अलग तरीका होता है।
13. कलमकारी साड़ी-
राजस्थान से कलमकारी साड़ी एक लोकप्रिय पारंपरिक साड़ी है। कलमकारी साड़ियों को उनकी पारंपरिक कलाकृति के लिए जाना जाता है, जो एक विशेष समुदाय को प्रदर्शित करता है। ये साड़ियाँ प्राकृतिक रेशों तथा प्राकृतिक रंगों जैसे फूल, पत्तियों, आयरन रस्ट आदि से मिलकर तैयार होते हैं। इन रंगों को फिक्स करने के लिये भी कोइ रसायन इस्तेमाल नहीं होता है। जिस फैब्रिक को कपड़े बनाने के लिए इस्तेमाल करना होता है उसको एक तय टेम्परेचर पर दूध, फिटकरी और पानी के मिक्सर में कुछ देर के लिए उबालकर सनलाइट में ही सुखाते हैं। दूध एक रंग को दूसरे रंग में मिलने से रोकता है और फिटकरी mordant का काम करता है। इसलिए इन साड़ियों को पहचान करने का भी यही तरीका होता है कि इन कपडों से दूध और फिटकरी की महक आती रहती है। कलमकारी साड़ियों को दो तरह की विधा से बनाया जाता है एक है पचिलिपत्नम क्राफ्ट जिसमे वुडेन स्टाम्प से डिज़ाइन बनाया जाता है जबकि दूसरी विधा श्रीकालष्टि में ब्रश लाइक पेन से डिज़ाइन बनाया जाता हैं। इन साड़ियों के डिजाइन हिंदू पौराणिक कथाओं से प्रेरित हैं और युवा लड़कियों के बीच काफी लोकप्रियता हासिल कर रहे हैं। इस खूबसूरत साड़ी को ज्यादा खर्च किए बिना खरीदा जा सकता है। यह साड़ी पहनने के लिए आरामदायक है और इसे कभी भी पहना जा सकता है।
Kalamkari Saree
14. कोटा साड़ी-
कोटा साड़ियाँ आमतौर पर कपास और रेशम के मिक्सर से बनी होती हैं। वे राजस्थान के कोटा शहर से हैं। ये लाइट weight होती हैं इसलिए घर पर पहने जाने के लिए पर्याप्त सरल हो सकते हैं और वे दुल्हन की साड़ियों के रूप में भी चॉइस हो सकते हैं। इसकी डिज़ाइन छोटे छोटे स्क्वायर (खाट) से मिलकर बनी होती है।
Kota Doriya Silk Saree
15. बंधेज साड़ियाँ-
बंधेज साड़ियाँ- मुख्यतः यह राजस्थान में बनाई जाती है। इनको बनाने में प्राकृतिक और कच्चे रंगों का इस्तेमाल होता है। बन्धेेेज़ साड़ियां बनातेे सेेमय गोल गोल गाँठ लगाई जाती है फिर उसको अलग अलग रंगों से रंगा जाता है । उसको सूखने के बाद गाँठ खोल दिया जाता है उससे बनी हुई डिज़ाइन ही बन्धेज़ साड़ियों की विशेषता होती है।
Bandhez Saree
16. पटोला साड़ियाँ-
यह साड़ियाँ मुख्य रूप से गुजरात के पाटला शहर से सम्बंधित हैं इसलिए इनको पटोला साड़ियाँ बोला जाता हैं। इन साड़ियों में रेशम के धागों की बुनाई हाथों से की जाती इसलिए इनको बनाने में काफी समय लगता है। पटोला साड़ी का रंग बड़ा ही पक्का होता है, ऐसा माना जाता है कि इसका रंग 500 सालों तक भी पुराना नहीं पड़ता है और इसका पैटर्न गुजराती जीवन शैली समेटे हुए होता है। Patola Saree
17. पैंठणी (मराठी: पैठानी) –
यह एक अलग तरह की साड़ी है, जिसका नाम महाराष्ट्र के औरंगाबाद राज्य में पैठण शहर के नाम पर रखा गया है, जहां साड़ी को पहली बार हाथ से बनाया गया था। एक तिरछे वर्गाकार डिज़ाइन के बॉर्डर और मयूर डिज़ाइन वाले पल्लू पैठणी साड़ी की विशेषता है। ये सादे और साथ ही कई डिजाइन में भी उपलब्ध हैं। अन्य किस्मों में एक रंग में पूरी साड़ी या फिर कई रंगों से सजी एक साड़ी भी आपको मिल जाएगी। पैठणी साड़ी के अंदर और बाहर दोनों तरफ एक तरह की डिज़ाइन मिलेगी जबकि मशीन से बुनी साड़ी में अंदर की तरफ धागों का जाल दिखेगा l
Paithani Saree
साड़ियों की किस्में देने में भारत के पूर्वी क्षेत्रों का योगदान भीं कम नहीं है और सबसे प्रसिद्ध हैं:
18. भागलपुरी साड़ी-
भागलपुर एक छोटा शहर है जो गंगा नदी के तट पर स्थित है। इस शहर की खासियत रेशम के कपड़े के रूप में जाना जाने वाला विशेष रेशमी कपड़ा है, जिसे ज्यादातर भागलपुरी रेशम के नाम से जाना जाता है। इससे बनी हुई साड़ियाँ देश विदेश सभी जगह मशहूर हैं। भागलपुरी साड़ियाँ तुस्सर सिल्क से बनी होती हैं जो मलबरी सिल्क से थोड़ा सस्ता होता है। मलबरी सिल्क मलबरी पौधों पर पाए जाने वाले सिलकवर्म से बनता है जबकि तुस्सर सिल्क जंगली पौधों पर रहने वाले silkworm से मिलता है। तुस्सर सिल्क साड़ियाँ ज्यादा डिज़ाइन दार होती हैं लेकिन इनके फाइबर्स छोटे होते हैं जो इसकी ड्यूरेबिलिटी कम करते हैं। इसकी जालीदार डिज़ाइन इसको ज्यादा आरामदायक बनाती है। तुस्सर सिल्क का नेचुरल फीका गोल्डन colour इसको शादियों में पहनने के लिए इसको उपयुक्त बनाता है। Bhagalpuri Saree
19. बोमकाई साड़ी (सोनपुरी साड़ी भी) –
बोमकाई साड़ी (सोनपुरी साड़ी भी) ओडिशा, भारत की एक हथकरघा साड़ी है। यह बोमकै की एक उत्पत्ति है और मुख्य रूप से “भुलिया” लोगों द्वारा निर्मित है । बोम्काई कॉटन साड़ी ज्यादातर डेली पहनने के लिए जानी जाती है और सिल्क की साड़ी को समारोहों और पवित्र अवसरों पर रखा जाता है। साड़ी पहनने वाली महिला को ग्रेसफुल लुक देने के लिए ज्यादातर स्टाइलिश साड़ी को मोहक रंग से सजाया जाता है। प्राचीन परम्पराओं को इसके बॉर्डर्स में दर्शाया जाता है । ज्यादातर मछली का डिज़ाइन साड़ी में देखा जाता है क्योंकि इसे सफलता और समृद्धि का संकेत माना जाता है। सबसे आकर्षक हिस्सा है बॉर्डर और पल्लू के डिजाइन में इसका थ्रेड वर्क। लाल, काले और सफेद पृष्ठभूमि के रंगों को प्राप्त करने के लिए साड़ी को आमतौर पर रंगा जाता है। हालांकि, आज आप कई साड़ियों को और कई रंगों में भी पाएंगे।
Bomkai Saree
20. समबलपूरी इकत साड़ी –
रेशम और सूती कपड़ों में ओडिशा से उपलब्ध संबलपुरी इकत साड़ी पर सुंदर पैटर्न उकेरे जाते हैं। इस पारंपरिक साड़ी को बनाने के लिए पहले, थ्रेड्स को रंगकर फिर उसी धागे से बुना जाता है इसे टाई एंड डाई टेक्निक कहते हैं। सम्बलपुरी इकट साड़ियाँ अपने सिम्पल और पारंपरिक पैटर्न से आसानी से पहचानी जा सकती हैं इसके पल्लू में पोएट्री या rhyming पैटर्न भी देखा जा सकता है।
21. मोगा सिल्क साड़ी –
आसाम से मोगा सिल्क की साड़ी उन रेशम के कीड़ों की वजह से खास है, जिनसे वे बनी हैं और साड़ी अक्सर मालिक को एक नज़र में पसंद आती। साड़ी बुनाई की आकर्षक प्रक्रिया मुगा सिल्क साड़ी की कला को विशेष बनाती है और निश्चित रूप से, यह एक जरूरी बात है । एक अच्छी मोगा रेशम साड़ी आपकी पसंद और बजट के हिसाब से बहुत ऑप्शन मिल जाएंगें। मोगा सिल्क साड़ियां अपनी सुनहरी चमक के लिए जानी जाती हैं और ऐसे बोला जाता है कि हर धुलाई में इसकी चमक और बढ़ती जाती है। वैसे तो इसको चेक करने के लिए स्पेशल माइक्रोस्कोप की ज़रूरत होती है लेकिन आजकल की स्ट्रिक्ट G I टैग और PIR की वजह से किसी और जाँच की ज़रूरत नहीं रह जाती।
Munga Silk Saree
22. जामदानी साड़ी –
बंगाल से मूल रूप से ढाका से, ढाकई जमदानी साड़ी को बंगाली दुल्हन की शादी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। जामदानी मुख्य रूप से पर्शियन शब्द है जिसमें जाम का मतलब फ्लावर और दानी का मतलब vase होता है इसलिए पारंपरिक जामदानी साड़ियों में फूलों की छपाई होती हैं और ये हल्के कपास से बने होते हैं। असली जामदानी साड़ी के काम की पहचान करने के लिए, आप साड़ी के पीछे की ओर देख सकते हैं कि साड़ी के पूरे डिजाइन में कपास का एक धागा ज़िगज़ैग पैटर्न में चलता है, जो खींचने पर भी नहीं निकलता है। ऐसा कहा जाता है कि इस तरह की साड़ियों को पीढ़ी से पीढ़ी तक चलाया जा सकता है अगर कुछ देखभाल के साथ रखा जाए।
Zamdani Saree
23. तांत साड़ी –
पश्चिम बंगाल से तांत साड़ी एक पारंपरिक बंगाली साड़ी है जो लगभग सभी भारतीय महिलाओं द्वारा पसंद की जाती है। ये कुरकुरी सूती साड़ी होती है और गर्मियों के दौरान बहुत पसंद की जाती हैं। तांत शब्द मुख्य रूप से साड़ी की बुनाई के लिए प्रयोग किया जाता है । अगर हाथ से बनी हैंडलूम साड़ी है तो हस्तोतान्त और अगर मशीन से बुनी साड़ी है तो यंत्रोतान्त साड़ी बोला जाता है। कब पहनें: त्योहारों के दौरान इस साड़ी को पहनें, जैसे दुर्गा पूजा, दिवाली, या काली पूजा। इसे बोल्ड और ब्राइट ज्वैलरी के साथ पहनें।
Taant Saree
24. बालूचरी रेशम साड़ी –
पश्चिम बंगाल की बालूचरी सिल्क साड़ी अपने आप में साड़ियों का पूरा वर्ग है। पारंपरिक रूप से अभी तक डिजाइनर, बालूचरी साड़ियों की खासियत ये है कि इनके बॉर्डर्स में प्राचीन महाकाव्य से रामायण और महाभारत जैसे दृश्य प्रदर्शित होते हैं। इस साड़ी के साथ आप पोल्का ज्वैलरी पहन सकती हैं। बालूचरी साड़ियाँ अपने लम्बे पल्लो और उसमें बने कंटीन्यूअस आयताकार मोटिफ्स के कारण जानी जाती हैं। और सिल्क साड़ियों की तरह इसमें ज़री का इस्तेमाल नहीं होता।
Baluchari Saree
यदि आप सोच रहे हैं कि हम सभीं साड़ी किस्मों के बारे में बात कर चुके हैं और सभी बात की गई साड़ियाँ केवल विशेष अवसरों के लिए हैं और सामान्य अवसर पर पहनने के लिए कोई साड़ी नहीं है, तो कृपया अभी पढ़ना जारी रखें
25. शिफॉन और जॉर्जट साड़ियां-
साड़ी का नाम सुनते ही हमारे दिमाग़ में कॉटन या सिल्क ही आता है इसके अलावा और कोई फैब्रिक हम सोच नहीं पाते लेकिन कॉटन और सिल्क दोनों ही काफी रखरखाव और समय मांगते हैं जो आजकल की भागदौड़ वाली ज़िन्दगी में काफी चुनौतीपूर्ण है। विदेशों में शिफ्फोन और जॉर्जट की धूम है इसकी कुर्ती टॉप फ्रॉक,गाउन सभी तरह के ड्रेस बनते हैं लेकिन साड़ी का कॉन्सेप्ट थोड़ा नया है। एक तरह भी रेेेेशम होता थोड़ी प्रोसेसिंग से इसकी durabality और मजबूती बढ़ा देते लेकिन ये वज़न और देखने मे हल्का होता है। जॉर्जट भी शिफॉन का रूप है बस इसकी पारदर्शिता खत्म हो जाती। इसलिए अब डिज़ाइनर ने शिफ्फोन, जॉर्जट, और पॉलिएस्टर की तरफ रुख किया इनसे बनी साड़ियां न केवल कम रखरखाव मांगती हैं बल्कि बजट फ्रेंडली होने के साथ ही साथ हैंडलिंग में भी कम्फ़र्टेबल होती हैं।
26. सूती साड़ियाँ–
सूती फैब्रिक तो वैसे ही सदाबहार होता है फिर चाहे वो साड़ी हो, सूट हो या शर्ट पैंट। मुख्य रूप से कपास के रेशों से बनाए गए धागों से बनाया गया कपड़ा वैसे तो आरामदायक होता है लेकिन इसकी ड्यूरेबिलिटी कम होती है और हाथ से बुनाई के कारण ये महंगा भी होता है। सूती धागे को जब जलाया जाता है तो वो तुरंत बुझता नही है। जलने के बाद राख बची रहती है। जबकि ज़रा भी मिलावट होंंने पर जलने केे पैटर्न अलग हो जाते हैं जैसे टेरीलीन और नायलॉन जलने पर प्लास्टिक की स्मेल आती है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि साड़ी आम तौर पर उनके आसपास के क्षेत्रों के रिवाज और अनुष्ठानों का पालन करती है और हमारे देश की लंबाई और चौड़ाई में उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक उनकी रुचि में भिन्न होती है। इसलिए आने वाले त्योहारों के मौसम में साड़ियों की व्यापक और सुरुचिपूर्ण विविधता के साथ अपनी वार्डरोब को समृद्ध करने और देश की समृद्ध और समृद्ध विरासत का जश्न मनाने का अच्छा मौका हो सकता है। खरीद से पहले साड़ी की सही पहचान सुनिश्चित करना बहुत महत्वपूर्ण है, इसलिए आप सें विभिन्न साड़ियों के लिए साझा किए गए जानकारियों को इस्तेमाल करने की कोशिश कर सकते हैं। अब, सरकार जीआई (भौगोलिक संकेत संरक्षण) पीआईआर (बौद्धिक संपदा अधिकार) के साथ साड़ियों के वास्तविक कार्यों को मान्यता देने और डुप्लिकेट कार्यों से पीढ़ियों से बुनाई के काम में शामिल श्रमिकों के हितों को बचाने के लिए सामने आई है। इसलिए अभी साड़ी खरीदने से पहले GI (Geographical Indication Protection) PIR (Intellectual property right) जरूर चेक कर लें। सिल्क साड़ियों में Silk Mark Logo भी चेक करना चाहिए। खरीदने के बाद साड़ियों को बनाए रखने के लिए रख रखाव में सावधनिया बरतने की आवश्यकता होती है ताकि इसे एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक रखा जा सके, इसलिए कुछ घरेलू और सरल तरीके भी साझा किए गए हैं।
- सिल्क साड़ियों को हैंडवाश या मशीन वाश से बचाना चाहिए। ड्राई वाश प्रीफेरेंस में होना चाहिए।
- इन साड़ियों की देखभाल काफी ध्यान से करनी चाहिए जैसे कि इनको धुलने में माइल्ड वाश पाउडर या वुलेन कपड़े को धुलने के लिए इस्तेमाल होने वाले लिक्विड का इस्तेमाल करना चाहिए।
- बहुत ठंडे या गर्म पानी में नहीं धुलना चाहिए।
- साड़ियों को रब करने से बचना चाहिए।
- साड़ियों को लम्बे समय के लिए रखना है तो उसके अंदर पेपर रखके हैंगर पे रखना चाहिए।
- साड़ियों के फोल्ड को समय समय पर बदलते रहें। इनको सूखने के लिए डायरेक्ट धूप में नहीं डालना चाहिए।
- साड़ियों को प्लास्टिक कवर में नहीं रखना चाहिये गोल्ड एम्ब्रॉइडरी को एयर नहीं मिलने पे ये काले रंग में चेंज हो सकता है।
- सूती साड़ियों को थोड़ा रखरखाव की खास ज़रूरत होती है।
- पहली बार कॉटन साड़ी धुलने से पहले 10-15 मिनट के लिए गुनगुने पानी में हल्का नमक डालकर उसमें भीगा देना चाहिए। इससे पता चल जाता है कि साड़ी धुलने पर रंग तो नहीं छोड़ेगी।
- कॉटन साड़ी को धुलने में माइल्ड डिटर्जेंट का प्रयोग करना चाहिए। कभी भी उसको ज्यादा निचोड़ना चाहिए बल्कि कहीं हैंग करके छोड़ देना चाहिए ताकि साड़ी से पानी निथर जाए।
- कॉटन साड़ियों मे स्टार्च का प्रयोग ज़रूर करना चाहिए ताकि साड़ी कड़क बनी रहे।
- साड़ियों को डायरेक्ट धूप में नही सुखाना चाहिए।
मुझे उम्मीद है कि आप सभी साझा की गई जानकारी को अपने वार्डरोब को साड़ियों के संग्रह के साथ पूरा करने में उपयोगी पाएंगे और कृपया हमें ब्लॉग पर अपने विचार बताएंगे । (Please share the post if you like it and mail your views at: naturemother729@gmail.com)