साड़ी-Special 26 all ladies like to have in wardrobe

बचपन में संदेह अलंकार का एक उत्कृष्ट उदाहरण हम सभी ने अवश्य ही सुना होगा :

नारी बीच सारी है कि सारी बीच नारी है
नारी की ही सारी है या सारी की ही नारी है।।

महाभारत के द्रौपदी चीरहरण से जुड़ा यह प्रसंग अपने आप में ही एक पूरी कथा समेटे हुए है लेकिन ये भी यथार्थ है कि नारी और साड़ी दोनो ही एक दूसरे के बिना अधूरी हैं खासकर हमारे देश भारत में तो कोई भी त्यौहार बिना साड़ी के पूरा नही होता। भारत विविधताओं से भरा देश है यहाँ बोली भाषा, धर्म, त्यौहार और भोजन, रहने के तरीके सब देश क़े अलग अलग हिस्सों में एक दूसरे से भिन्न भिन्न होते हैं, वैसे ही हर प्रदेश के हिसाब से साड़ी का फैब्रिक और पहनने का तरीका दोनों ही बदल जाते है।

हम आज बात करते हैं भारत में पाई जाने वाली मुख्य साड़ियाँ और उनसे जुड़े कुछ तथ्य  और रोचक जानकारियाँ,  साथ ही में विभिन्न वैरायटी की साड़ी का कलेक्शन भी बनाया है । तो शुरूआत करते हैं भारत के दक्षिणी छोर से जहाँ की कांजीवरम साड़ियां काफी मशहूर हैं।

1. कांजीवरम साड़ियां-

काजीवरम साड़ियां तमिलनाडु केे कांचीपुरम में बनी शुद्ध रेशम की साड़ी है। एक वास्तविक कांचीपुरम सिल्क साड़ी में  मेन पार्ट और बॉर्डर को अलग-अलग बुना जाता है और फिर एक साथ अच्छे से जोड़ लिया जाता है।  यह साडियाँ अपनी wide contrast borders से पहचानी जाती हैं और ये साड़ी वजन में भी भारी होती हैं । मन्दिर की borders, धारिया और पुष्प (बटास) कांचीपुरम साड़ियों पर पाए जाने वाले पारंपरिक डिज़ाइन हैं। कांजीवरम साड़ी को पहचानने का सबसे बढ़िया तरीका है कि जब आप इसके ज़री को हल्का स्क्रैच करेंगें तो लाल रंग उभरता हुआ दिखेगा। kanziwaram Saree

 

 

. कोनराड साड़ी –

तमिलनाडु से ही  टेम्पल साड़ी के रूप में लोकप्रिय, कोनराड साड़ियों को मूल रूप से मंदिर के देवताओं के लिए बुना जाता था। साड़ी कपड़े में आम तौर पर धारियाँ या चेक और एक विस्तृत बॉर्डर होता है। जानवरों और प्राकृतिक तत्वों के रूपांकनों के साथ बॉर्डर इस साड़ी को इतना खास बनाती है।

Konrad Saree

 

 

3. कसावु साड़ी –

केरला से कसावु साड़ी को मूल रूप से ‘मुंडुम नेरेयाथम’ के नाम से जाना जाता था। गोल्डन बॉर्डर वाली ऑफ-व्हाइट कलर की सिंपल कॉटन साड़ियां, केरल की कसावु साड़ियां अपने आप में आइकॉनिक हैं। कासावु साड़ी शान, सादगी और परंपरा का प्रतीक है। ये साड़ियाँ अपनी गोल्ड और ताँबे की ज़री के बॉर्डर की वजह से काफी मशहूर हैं। केरला में कुछ पारम्परिक पूजा और शादी विवाह तो इन साड़ियों के बिना हो नहीं सकते, विष्णु पूजा और ओणम ऐसे ही कुछ खास मौके हैं। सोने की ज़री प्रयोग होने से इसके दाम ज्यादा ही होते हैं। लाइट में डिफरेंट एंगल पे इनकी डिफरेंट चमक इनको अद्भुत बनाती है। इनकी विशेषता यह होती है कि इसी डिज़ाइन की जेंट्स की धोती भी तैयार की जाती है जिसको केरला की पारंपरिक भाषा में मुंडू बोलते हैं। इनका रख रखाव भी थोड़ा अलग होता है इनको किसी भी प्रकार के केमिकल से दूर रखना चाहिए। कोई लिक्विड चीज साड़ी पर न गिरने पाए इसका भी खास ख्याल रखना चाहिए। सिल्क साड़ियों को ड्राई क्लीन ही करवाना ही उचित होता है।

Kasavu Saree

 

4. पोचम्पली साड़ी-

पंचमपल्ली साड़ी या पोचमपल्ली इकत साड़ियों की उत्पत्ति तेलंगाना से हुई है और इसमें जटिल ज्यामितीय (Geometry) पैटर्न हैं जो रंगाई की इकत शैली के साथ बनाए गए हैं। कुशल बुनकरों द्वारा निर्मित, ये साड़ियां रंग से भरपूर होती हैं। पोचमपल्ली साड़ी रेशम और महीन कपास के मिश्रण से बनाई जाती है। इन साड़ियों को चमक देंने के लिए वैक्स का भी उपयोग किया जाता है। साड़ी वजन में हल्की होती हैं और इनमें चमक होती है, इसलिए अगर आपको नियमित रूप से साड़ी पहनने की आदत नहीं है, तो यह साड़ी आपके सभी पसंद के लिए सही विकल्प होनी चाहिए, खासकर गर्म भारतीय गर्मियों में।

Pochampoli Saree