पिता : घर की नींव से लेकर छत तक
जीवन है कड़ी धूप तो ठंडी छांव हैं पिता
साये में है जिनके अपना बचपन बीता
नही होता था तब कोई सुपरहीरो
पापा ही होते थे अपने रियल हीरो
जब भी कोई गलती हो जाती हमसे
न डांट न मार समझ जाते थे आँख दिखाने भर से
उनके होने का अहसास ही काफी है
हर गलती की कोई न कोई माफी है
बचपन बीता बड़े हुए हर अपना फिर दूर हुआ
पिता पुत्री का ये रिश्ता और मजबूत हुआ
दिन में एक बार जब तक न हो उनसे बात
तब तक कुछ भी नहीं आता रास
मन की बात बिना कहे समझते हैं
अपना सुख दुख हर बात वो मुझसे कहते हैं
पापा की गुड़िया पापा की परी हूँ मैं
कांधे पे बचपन और उंगली पकड़ के बढ़ी हूँ मैं
बालों की सफेदी बढ़ी और हुए अनुभव की वो खान
अपनी परवरिश पर है उन्हें अभिमान
हे ईश्वर उन पर कृपा बनाए रखना
मान सम्मान अभिमान सब बचाए रखना