पंचायत : सही मायने में एक गाँव की झलक

अगर आपने उत्तर प्रदेश के किसी गांव में अपना बचपन बिताया हैं और आज किसी महानगर की चकाचौंध में गुम से हो गये हैं या उस बचपन उस गांव को दुबारा देखना या जीना चाहते हैं तो ये पंचायत वेबसीरीज़ आपके लिये एकदम सही चुनाव हो सकती है। बिना किसी खास मसाले और ड्रामेबाज़ी के ये वास्तविक रूप में उत्तर प्रदेश के किसी भी गाँव का एक सचित्र चित्रण करती है। मेरा बचपन भी उत्तर प्रदेश के एक गाँव मे बीता तो इस वेबसेरीज़ को देखकर ऐसा लगा की हम वास्तव में ये कहानी दोहरा रहे हैं।

कहानी क़े कुछ अंश

यह कहानी है अभिषेक त्रिपाठी (जितेंद्र कुमार) नाम के एक युवा की जो बी.टेक तो कर लेता है लेकिन उसको इंजीनियरिंग विभाग में कोई नौकरी नहीं मिलती और एक नौकरी मिलती भी है तो एक गांव में सरकारी पंचायत सचिव की। जिसको लेकर उसके मन में काफ़ी उठापटक चलती है एक तरफ घरवालों का बेरोजगारी को लेकर तानों से बचना भी है और दूसरी तरफ लाखों की प्राइवेट नौकरी का ख्वाब भी । ऐसे में उसका एक दोस्त जो लाखों का कार्पोरेट पैकेज पा चुका है उसको सलाह देता है कि नौकरी के साथ साथ MBA की तैयारी करते रहो और जैसे ही MBA एंट्रेंस क्लियर हो गांव से वापस आ जाओ, उससे पहले बेरोजगार बैठे रहने से तो 20हज़ार मंथली वेतन की नौकरी ठीक है साथ मे रूरल एक्सपेरिएंस भी MBA Interview में काम आता है। ये सब सोचकर अभिषेक निकल पड़ते हैं फुलेरा गांव जहाँ उनकी पोस्टिंग हुई है।

बाकी फिल्मों और सीरियल से हटकर इस वेबसेरीज़ में एक वास्तविक गांव दिखा है जिसमें गाँव में होने वाली छोटी छोटी दिक्कतों को हस्यप्रद तरीके से दिखया गया है। सरकारी विभागीय समस्याओं का भी जीवंत उदाहरण दिखाया गया हैं जैसे बिजली कटौती से परेशान गाँव वालों को जब सोलर लाइट दी जाती है तो आम जनता तक पहुंचने की बजाय पंचायत सदस्य आपस में ही उसका बंटवारा कर लेते हैं, इस मुद्दे से लेकर गांव के सचिव के पास गांव प्रधान से बढ़िया और आरामदायक कुर्सी कैसे हो सकती है जैसे मुद्दों को भी बड़ी बारीकी से दिखाया गया है।

खासकर सीरीज़ के चौथे भाग में शादी वाली घटना जिसमें बारात को पंचायत घर में ठहराया जाता है और दूल्हा एक दिन के लिए अपने आपको राजा ही समझता है कि जो वो बोलेगा वही होगा और सब उसकी इज़्ज़त करेंगें और ऐसा न होने पर वो तिलमिला कर शादी न करने को बोलने लगता है ये घटना एकदम दिल तक पहुंचती है और आज भी कहीं न कही ऐसी घटनाएं सुनने मिलती ही रहती हैं।

परिवार नियोजन की समस्या पर विपरीत ग्रामीण दृष्टि कोण की वास्तविक समस्या को भी दिखाने की कोशिश कि गयी हैं कैसे एक स्लोगन दो बच्चे हैं मीठी खीर उससे आगे बवासीर से पूरे गाँव में बवाल हो जाता हैं।

नीना गुप्ता ने उस महिला गांव प्रधान का किरदार बखूबी निभाया है जो सिर्फ नाम की प्रधान है सारा काम उसके पति द्वारा किया जाता है।यह समाज़ का एक कड़वा सच है आज भी भारत में बहुत से ग्राम पंचायत में महिला प्रधान की जगह उनके पतियों को काम करते देखा जा सकता है।

एक परुष प्रधान के रोल में रघुवीर यादव की भुमिका बहुत ही सरल और मेमोरबल हैं बाकी सहायक कलाकारों Chandan Roy as Vikas, Faisal Malik as Prahlad Pandey आदि नें भी अच्छा अभिनय किया हैं, इस तरह ये पूरी पारिवारिक और मनोरंजक वेब सीरीज हैं । हाँ सिरीज़ के आखिरी भाग में सचिव अभिषेक त्रिपाठी की मेहनत से एक अंगूठाछाप प्रधान को देश का राष्ट्रगान गाते और 15 अगस्त पर झंडा फहराते हुए दिखाकर देश भक्ति और विकाश को भी अच्छा अंत दिया हैं जों सचिव अभिषेक त्रिपाठी को फिर से एमबीए की तैयारी की हिम्मत देता हैं और यही शायद सीरीज की दूसरे पार्ट की कहानी को स्टार्ट भी देगा I साथ में प्रधान जी की बेटी रिंकी कि शादी सरप्राइज element हो सकती हैं, इसकी दूसरी सिरीज़ में नीना गुप्ता की सशक्त भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता। इसलिये मुझे भी इसकी सेकंड सीरीज का बेसब्री से इंतेज़ार हैं ।