लॉकडाउन

भारत! कोरोना! लॉकडाउन

आज विश्व के सभी देशों में कोरोना का कहर फैला हुआ है। अमेरिका, इटली, चीन जैसे विकसित और हर तरह से सम्पन्न देश भी इस वायरस के सामने पानी माँगते नज़र आ रहे। ऐसे में भारत जहाँ पहले से ही मूलभूत सुविधाओं के लिए जद्दोजहद मची हुई थी, इस विपदा से लड़ने के लिए कोशिश तो बहुत बढ़िया की, पर अभी हाल-फिलहाल स्थिति दिन-प्रतिदिन भयावह होती जा रही है। शुरुआत में ही जब हमारे यहाँ सरकारी आँकड़ों के हिसाब से मात्र 10 केस थे, 22 मार्च से ही लॉकडाउन का ऐलान कर दिया गया। लेकिन ऐलान करते समय इस बात का ध्यान नहीं दिया गया कि हमारे यहाँ आधे से ज्यादा आबादी उस तबके की है जो गाँव से शहर की ओर दो जून की रोटी के जुगाड़ में आई है और वही मजदूर आज अपने ही देश में प्रवासी बन कर रह गए हैं। उनको बहुत लंबे समय तक बैठाकर खिलाना हमारे देश की अर्थव्यवस्था मंज़ूर नहीं कर पाएगी। आज हर तरफ हमारे देश का मजदूर वर्ग परेशान होकर सड़कों पर उतर आया है क्योंकि शहरों में उनका गुजारा अब नामुमकिन हो गया है और गाँव के लिए पलायन करने के सारे रास्ते लॉकडाउन करके बंद कर दिए गए। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या हमारे स्वास्थ्य विभाग को कोरोना की भयावहता का अंदाजा नहीं था कि ये एक दो महीने के लॉकडाउन से खत्म नहीं होने वाला या फिर हमारे आँकड़े इतने कमज़ोर हैं कि सरकारी दफ्तरों में बैठे आला अधिकारियों को ये पता ही नहीं कि हमारी आधी से ज्यादा आबादी उनकी भाषा में “प्रवासी मज़दूरों” की है, जिनको या तो उनके जीवन-यापन के लिए मूलभूत सुविधाएँ उपलब्ध करवाई जाती या उनको पहले ही बता दिया गया होता कि कोरोना से जंग लम्बी चलने वाली है, इसलिए आप लोग अपने गाँव वापस चले जाएँ। अभी फिलहाल जब 2 महीने से लॉकडाउन चल रहा है और इस दौरान सारे कामकाज ठप पड़े हुए हैं, सभी लोग सोच रहे कि घर में बंद रहकर हमने कोरोना से आधी जंग जीत ली। ऐसे में हमारे मज़दूर भाइयों की ह्रृदय विदारक पीड़ा देखकर वाकई हम-आप जैसे लोग निःसहाय ही महसूस कर रहे। उन सभी मजदूरों की पीड़ा हमें आत्म-चिंतन करने को मजबूर कर रही कि किस युग में जी रहे हैं हम, जहाँ हमारे अपने ही चिलचिलाती धूप में परिवार सहित पैदल हज़ारों किलोमीटर के लिए निकल पड़े और हम मूकदर्शक बने हुए हैं। यह वही वोटर हैं जो चुनाव में न निकलें तो गाड़ी भेजकर उनको घर से निकाला जाता है तरह-तरह के लोकलुभावन वादों के साथ और आज जब उन्हें हमारी ज़रूरत है तो हम घर की बालकनी से ताली और थाली पीटने के बाद रामायण आदि में व्यस्त हैं।

लॉकडाउन : कोरोना से बचाव या सिर्फ कोरोना के साथ रहने के लिए खुद को मजबूत करने का तरीका

कोरोना जो कि वैश्विक महामारी के रूप में प्रचंड रूप लेता जा रहा है और तमाम देश जो कि स्वास्थ्य सुविधाओं में अव्वल हैं वो भी अपनी जनता को काल के गाल में समाने से नहीं रोक पा रहे। कुछ दवाइयों के मेल से कुछ लोगों को ठीक किया गया लेकिन अभी तक कोई भी कारगर दवा नहीं बन पाई जिसको बोला जाए कि कोरोना पर 100% काम करेगी।

ऐसे में लॉकडाउन ही एकमात्र विकल्प है भारत के साथ-साथ बाकी देशों में भी कोरोना को फैलने से रोकने का.. अब इसका ये बिल्कुल भी मतलब नहीं कि लॉकडाउन खत्म तो कोरोना खत्म..लॉकडाउन से ये खत्म नहीं होगा बस इसकी चेन टूटेगी और लोग घर से कम निकलेंगे तो कम से कम एक दूसरे के सम्पर्क में रहेंगे और इस दौरान कोरोना से लड़ने की अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा पाएँगे।

भारत में 22 मार्च से शुरु हुआ लॉकडाउन अभी 3rd स्टेज में चल रहा है लेकिन लॉकडाउन शुरू करने से पहले कुछ मुख्य बातों को ध्यान में न रखने की वजह से कोरोना मरीज़ों की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी ही हो रही है।लॉकडाउन शुरू करने से पहले प्रवासी मज़दूरों को उनके घर वापस भेज देना चाहिए था।

दूसरा और सबसे ज़रूरी काम कि विदेश से आने वालों को सिर्फ थर्मल स्कैन करके नहीं छोड़ना चाहिए था बल्कि उनकी प्रॉपर जाँच होनी चाहिए थी।कुछ एहतियात के साथ सोशल डिस्टेंसिंग लागू होती तो शायद हम कोरोना की जंग में अब तक जीत चुके होते लेकिन अब भुखमरी और गरीबी,सुरसा की तरह हमारे सामने मुँह फैलाए खड़ी है I

कोरोना की वैक्सीन हो सकता है एक दो महीने में बन जाए और हो सकता है साल दो साल में भी न बन पाए और जब तक इसकी दवा नहीं बनेगी कोरोना जड़ से नहीं खत्म होने वाला I हमको इसके साथ ही जीने की आदत डालनी पड़ेगी..सरकार ने लगातार 3 लॉकडाउन करके कोरोना के बारे में सभी एहतियात बरतने की सलाह हमें दे दी साथ ही साथ इसके भयंकर परिणाम से भी हमें अवगत करा दिया..अब ये हम पर निर्भर है कि हम इस लॉकडाउन का उपयोग करके खुद को पहले से फिट,जागरूक और सभी सावधानियाँ अपनाते हुए स्वयं और अपने परिवार को सुरक्षित रखते हैं या इसकी भेंट चढ़ जाते हैं।

कोरोना और प्रकृति हमसे कुछ कहना चाहते हैं लेकिन क्या हम सुनना चाहते हैं

कोरोना जो कि वैश्विक महामारी के रूप में प्रचंड रूप लेता जा रहा है और तमाम देश जो कि स्वास्थ्य सुविधाओं में अव्वल हैं वो भी अपनी जनता को काल के गाल में समाने से नहीं रोक पा रहे।कुछ दवाइयों के मेल से कुछ लोगों को ठीक किया गया लेकिन अभी तक कोई भी कारगर दवा नहीं बन पाई जिसको बोला जाए कि कोरोना पर 100% काम करेगी।

ऐसे में लॉकडाउन ही एकमात्र विकल्प है भारत के साथ-साथ बाकी देशों में भी कोरोना को फैलने से रोकने का.. अब इसका ये बिल्कुल भी मतलब नहीं कि लॉकडाउन खत्म तो कोरोना खत्म..लॉकडाउन से ये खत्म नहीं होगा बस इसकी चेन टूटेगी और लोग घर से कम निकलेंगे तो कम से कम एक दूसरे के सम्पर्क में रहेंगे और इस दौरान कोरोना से लड़ने की अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा पाएँगे।

भारत में 22 मार्च से शुरु हुआ लॉकडाउन अभी 3rd स्टेज में चल रहा है लेकिन लॉकडाउन शुरू करने से पहले कुछ मुख्य बातों को ध्यान में न रखने की वजह से कोरोना मरीज़ों की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी ही हो रही है।लॉकडाउन शुरू करने से पहले प्रवासी मज़दूरों को उनके घर वापस भेज देना चाहिए था।

दूसरा और सबसे ज़रूरी काम कि विदेश से आने वालों को सिर्फ थर्मल स्कैन करके नहीं छोड़ना चाहिए था बल्कि उनकी प्रॉपर जाँच होनी चाहिए थी।कुछ एहतियात के साथ सोशल डिस्टेंसिंग लागू होती तो शायद हम कोरोना की जंग में अब तक जीत चुके होते लेकिन अब भुखमरी और गरीबी,सुरसा की तरह हमारे सामने मुँह फैलाए खड़ी है I

कोरोना की वैक्सीन हो सकता है एक दो महीने में बन जाए और हो सकता है साल दो साल में भी न बन पाए और जब तक इसकी दवा नहीं बनेगी कोरोना जड़ से नहीं खत्म होने वाला I हमको इसके साथ ही जीने की आदत डालनी पड़ेगी..सरकार ने लगातार 3 लॉकडाउन करके कोरोना के बारे में सभी एहतियात बरतने की सलाह हमें दे दी साथ ही साथ इसके भयंकर परिणाम से भी हमें अवगत करा दिया..अब ये हम पर निर्भर है कि हम इस लॉकडाउन का उपयोग करके खुद को पहले से फिट,जागरूक और सभी सावधानियाँ अपनाते हुए स्वयं और अपने परिवार को सुरक्षित रखते हैं या इसकी भेंट चढ़ जाते हैं।

यह जैविक आपदा जहाँ चारों ओर कहर ढ़ा रही है।सभी त्राहि-त्राहि कर रहे हैं और परेशान हैं कि अगर तनख्वाह नहीं मिली तो घर कैसे चलेगा।किसी को नौकरी जाने का गम है तो किसी को अकेलेपन से घबराहट l

मज़दूर वर्ग परेशान है कि अपने घर कैसे जाएँ,मध्यम वर्ग परेशान है कि घर कैसे चलाएँ।

इन सब ज़द्दोज़हद में क्या एक बार भी हमारा ध्यान इस तरफ गया कि ये महामारी हमें दे क्या रही है..

1 – अपने आस-पास देखिए इतनी शुद्ध वायु और वातावरण आपने अब तक की अपनी जिंदगी में तो नहीं ही देखा होगा।

2 – हमारी नदियाँ जिनकी साफ-सफाई के लिए हमने एड़ी चोटी लगा दी तब भी वो वैसी की वैसी ही रही आज बिना कुछ किए अपने आप ही साफ हो गईं।

3 – चिड़ियों की चहचहाहट,सूर्योदय एवं सूर्यास्त पर भी क्या हमने ध्यान दिया था l

4 – प्रीमियर लीग, मूवीज और न जाने कितने टूर्नामेंट के हीरोज़ में क्या कभी हम ये ढूँढ़ पाए कि एक दिन ऐसा भी आएगा जब ये डॉक्टर और नर्स ही असली सिपाही होंगे।

5 – क्या सुबह-सुबह ओस की बूँदों से नहाई हुई हरी घास पर अपने बच्चों के साथ टहलने का लुत्फ लिया आपने..आज एक बार आपको मौका मिला है़ l

6 – याद करिए आपने अपनी माँ अथवा अपने बच्चों को आखिरी बार इत्मीनान से गले कब लगाया था खासकर नौकरी वाले लोग।

7 – वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग जैसी गम्भीर समस्याएँ अपने आप ही सीमित हो गईं।

8 – इस आपदा ने मनुष्य को ये समझा दिया कि सिर्फ पैसा ही सब कुछ नहीं होता,आपके पास कितना भी पैसा हो लेकिन आप घर में बंद हैं कोरोना के आतंक से ..उससे लड़ने में पैसा आपकी मदद नहीं कर सकता।

9 – काम में अपने आपको डुबाकर रखने वालों के लिए ये एक बढ़िया संदेश है कि अगर आप स्वस्थ और संयमित जीवन नहीं जी रहे एवं अपनी इम्युनिटी पर फोकस नहीं किया तो आपकी मर्सिडीज़ और बंगला कोई और एंज्वॉय करेगा l