कालीखोह

मानसून के साथ ही बढ़ता सौंदर्य मिर्ज़ापुर का

मिर्ज़ापुर वेबसेरीज़ के 2 सीजन आ चुके हैं और हम में से बहुतों ने ये वेबसेरीज़ देख भी चुकी होगी। इस वेबसेरीज़ पर काफी हंगामा भी हुआ तो कइयों को इसे वास्तविक रूप से देखने का भी मन हो रहा होगा तो जब भी आपको समय मिले देखने की कोशिश जरूर करिएगा। वैसे तो यह स्थान मां विंध्यवासिनी के धाम के रूप में काफी प्रसिद्ध है और जो लोग विंध्याचल आते हैं वो मां अष्टभुजा और माँ काली की कालीखोह भी जाकर दर्शन ज़रूर करते हैं, ऐसी मान्यता है कि यह त्रिकोण पूरा करने से आपका दर्शन सफल हो जाता है।

लेकिन एक बात और है जो मिर्ज़ापुर को और खास बनाता है और वो है यहाँ का प्राकृतिक सौंदर्य जिसके बारे में कम ही लोग जानते हैं। मिर्ज़ापुर हमारा पैतृक निवास होने की वजह से हमें तो हमेशा ही लुभाता है आशा है कि आपलोग भी इसके प्राकृतिक सौंदर्य को पास से देखकर खुश होंगे और प्रशासन भी यहाँ तक पहुंचने के रास्तों को सुगम बनाने की तरफ ध्यान दे पाए। तो आज हम मानसून में इसकी सुंदरता बढ़ाने वाले झरनों की बात करते हैं। वैसे तो मिर्ज़ापुर विंध्य क्षेत्र में होने के कारण पहाड़ी क्षेत्र है और इस वजह से बारिश के मौसम में यहाँ जहाँ तहाँ ऐसे ही वाटरफॉल्स बन जाते हैं कुल मिलाकर यहाँ झरनों की संख्या 40 से ऊपर ही होगी लेकिन हम यहाँ उन झरनों की बात कर रहे जो केवल बारिश में ही नहीं बनते अपितु पूरे साल भर इनमें पानी होता है और यह बाँध बनाकर सिंचाई और बिजली उत्पादन जैसे कामों में सहायक भी हैं। तो आइए हम झरनों की यात्रा की शुरुआत करते हैं बहुत ही रमणीय और पर्यटकों का मनपसंद विंढम फॉल से

1. विंढम फॉल

मिर्ज़ापुर से 14km दूर ये वाटरफॉल बहुत ही मनमोहक है। बारिश के मौसम और पर्यटन विभाग और घूमने जाने वालों की लापरवाही की वजह से हो सकता है आपको थोड़ी साफ सफाई की दिक्कत महसूस हो लेकिन प्रकृति ने ज़ी भरकर इसको अपना सौंदर्य दिया है। वीडियो में भी इसकी कल कल करती ध्वनि किसी का भी ध्यान अनायास ही आकर्षित करने वाली है।

2. सिरसी वॉटरफॉल 

मिर्ज़ापुर से घोरावल रोड पर लगभग 45 km बहुत ही मनमोहक और प्राकृतिक छटाओं से भरपूर वाटर फॉल है सिरसी वॉटरफॉल । यह वाराणसी से लगभग 55 km है।

यहाँ पर ऊंचाई से कई जगहों पर से पानी गिरता है और ऐसे में कई झरने एक साथ दिखाई देते हैं जिनको पास से देखने पर यह दृश्य और भी मनमोहक हो जाता है।

सिरसी वाटरफाल सिरसी बांध से गिरता है तो वॉटरफॉल पहुंचने से पहले  आपको यह बांध भी जरूर देखना चाहिए जो बिल्कुल इस तरह दिखता है जैसे कि हम वाकई किसी समंदर के किनारे आ गए हैं जिसका कोई ओर छोर नही हैं।

3. लखनिया हिल्स और वाटरफॉल

 मिर्ज़ापुर जिले में अहरौरा नाम का एक छोटा सा कस्बा है वहीं पर आपको लखनिया वॉटरफॉल मिलेगा जिसकी ऊंचाई लगभग 150 मीटर है । लखनिया वॉटरफॉल के आसपास ही एक एम्यूजमेंट पार्क है जिसका नाम एक्वा जंगल वाटरपार्क एंड रिसोर्ट है जोकि उस क्षेत्र में अपने आप में अनोखा पार्क है जहां बच्चे और बड़े सभी एन्जॉय कर सकते हैं।

4. टांडा फॉल

मिर्ज़ापुर से 7km दक्षिण की ओर जाने पर बहुत ही मनमोहक टांडा वॉटरफॉल है। यह टांडा बांध से होकर गिरता है तो इसमें भी लगभग साल भर ही पानी रहता है। यह मिर्ज़ापुर शहर से सबसे नजदीक है और आसानी से पहुंचा जा सकता है। यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता देखने के लिए सैलानियों की भीड़ हमेशा ही मिल जाती है।

5. राजदारी और देवदारी वाटरफॉल्स

वाराणसी से लगभग 75 km की दूरी पर चंद्रप्रभा अभ्यारण्य है और वहीं पर चंद्रप्रभा डैम है उसी पर 65 मीटर की ऊंचाई वाला राजदारी वाटरफॉल है और उसके 500मीटर की दूरी पर ही नीचे की तरफ देवदारी वाटर फॉल मिलता है।

राजदारी

6. चुना दरी फॉल

वाराणसी से 44 km की दूरी पर रॉबर्ट्सगंज के रास्ते पर, 24 km चुनार से, मिर्जापुर से 59 km और अहरौरा से 7 km की दूरी पर यह खूबसूरत वॉटरफॉल है। इस वाटरफॉल की सुन्दरता नीचे रखी चट्टानों से देखने से और बढ़िया लगती है जो कि काफी खतरनाक भी है क्योंकि बारिश के मौसम में वह फिसलने लगती है जिससे आए दिन वहाँ दुर्घटना होती रहती है।

7. मुक्खा फॉल

 रॉबर्ट्सगंज घोरावल रोड पर  रॉबर्ट्सगंज से 55 km पश्चिम में और शिवद्वार से 15 km की दूरी पर बहुत ही मनमोहक मूक्खा वाटरफॉल है। शिवद्वार घोरावल से 10 km दूर भगवान शंकर का 11वीं सदी का बना हुआ बड़ा अद्भुत मंदिर है। ऐसा माना जाता है कि यह अपने आप में एकलौता ऐसा मंदिर है जहाँ भगवान शिव की शिवलिंग पर नहीं उनकी प्रतिमा पर जल अर्पण किया जाता है। यहाँ भगवान शिव और माता पार्वती की काले पत्थर की मूर्ति है।

8. सिद्धनाथ दरी

लखनिया दारी की तरह ही यह वाटरफॉल भी काफी शांति और प्राकृतिक सौंदर्य को अपने अंदर समाहित किये हुए है। यह वॉटरफॉल चुनार में पड़ता है और यह सक्तेशगढ़ में बाबा अड़गड़ानंद के आश्रम से 2 km की दूरी पर ही है। लेकिन यहाँ साल के पूरे 12 महीने पानी नहीं मिलता।

9. कुशियरा फॉल

यह फॉल मिर्ज़ापुर शहर से 38 km की दूरी पर है। यहां पहुंचने के लिए मिर्जापुर से प्रयागराज जाने का शॉर्टकट रास्ता जो कुशियरा जंगल से होकर गैपुरा जाता है उधर से होकर जाना पड़ता है। मिर्ज़ापुर रीवाँ रोड  पर लालगंज से उत्तर दिशा में जाने पर भी यही रोड मिलती है। यह प्रकृति की गोद में छुपा अनमोल तोहफा है यहां के लोगों के लिये और पर्यटकों के लिए भी।

10. खरंजा वाटरफॉल

यह वाटरफॉल मिर्जापुर से 15 km अराउंड बरकछा रोड पर है। विंढम फॉल का पानी खरंजा में जाकर गिरता है और एक वाटरफाल बनाता है। इसका पानी आसपास के एरिया में सिंचाई के काम आता है।

11. जोगिया दरी

यह मिर्ज़ापुर के मड़िहान तहसील से 5 km उत्तर की तरफ जंगल में है। इस फाल की ऊंचाई 300 फ़ीट है, आसपास काफी हरियाली है और काफी रोमांचक दृश्य है। यहाँ तक पहुंचने का रास्ता काफी पथरीला और जंगली है दूर दूर तक कोई नज़र नहीं आता तो आप अपना समय और वाहन दोनों ही लेकर वहाँ जाएं।

बोकरिया फाल, पेहती की दरी, भैरो कुंड और जल प्रपात काली कुंड और जल प्रपात मेजा रिजर्वायर, जरगो जलाशय जैसे लगभग 40-45 वाटरफॉल्स यहाँ पर और भी हैं जो पिकनिक स्पॉट के साथ ही साथ मिर्ज़ापुर के सौंदर्य को बढ़ाते हैं और प्रशासन यहाँ तक पहुंचने के रास्तों पर और यहां के सौंदर्यीकरण पर ध्यान दे, तो यहाँ का व्यापार और रोजगार को बढ़ावा मिल सकता है।

आपने गौर किया होगा कि कुछ वाटरफॉल्स सोनभद्र जिले में भी आते है दरअसल 1 अप्रैल 1989 से पहले सोनभद्र और मिर्जापुर दोनों एक ही जिला मिर्ज़ापुर में थे लेकिन बाद में इसकी भौगोलिक विविधताओं और शासकीय काम सुचारू रूप से न चल पाने की वजह से इसे दो ज़िलों सोनभद्र और मिर्ज़ापुर में बांट दिया गया तब से इसके औद्योगिक विकास में काफी गिरावट हो गई पर प्रकृति और देवों का बरसाया प्यार आज भी जिले की खूबसूरती बढ़ा रहा है। तो आपको जब भी मौका मिले मिर्ज़ापुर को नजदीक से ज़रूर देखें और वहाँ की प्राकृतिक और धार्मिक दोनों खूबसूरती को आत्मसात करें साथ ही साथ हमें भी सुझाव और चित्र भेज सकते हैं कि और क्या क्या देखा जा सकता है।

जिला मिर्ज़ापुर…….लिखने और देखने लायक यहाँ पर बहुत कुछ है

उत्तर प्रदेश का एक छोटा सा जिला मिर्ज़ापुर जो प्राकृतिक सौंदर्य से तो लबालब है लेकिन इसके पर्यटन पर सरकार कुछ खास ध्यान नहीं दे पाई है। यह धार्मिक रूप से भी काफी महत्वपूर्ण स्थान रखता है क्योंकि जगत जननी माँ विंध्यवासिनी का धाम भी यही है साथ ही साथ ये दोनों ओर से दो महत्वपूर्ण धार्मिक नगरों ( एक तरफ पवित्र संगम नगरी प्रयागराज तो दूसरी तरफ बाबा भोलेनाथ की नगरी काशी) से जुड़ा हुआ है।

लॉक डाउन के दौरान मिर्ज़ापुर सीरीज देखने का मौका मिला तो दिल दहल गया, सीरीज तो हमसे पूरी देखी भी नहीं गई। ये किस मिर्जापुर की बात कर रहे। जिस मिर्जापुर को मैं जानती हूँ और जहाँ अपना बचपन जिया है वो तो बिल्कुल ऐसा नहीं है।

हाँ, बेरोजगारी, अशिक्षा और गरीबी ज़रूर बहुत ज्यादा है वो भी माननीय लोगों की लापरवाही और भ्रष्टाचार की वज़ह से लेकिन उसको गुंडाराज नही बोल सकते। यहाँ कालीन और पीतल का व्यसाय मुख्य रूप से किया जाता है यह सच है। गरीबी और बेरोजगारी की वजह से नक्सलवाद को एक हद तक बढ़ावा मिला है लेकिन जिस तरह वेब सीरीज में मर्डर दिखांए गए ऐसा तो नही होता कहीं भी।

मिर्जापुर की प्राकृतिक छटा निराली है और बरसात में तो यह और भी खूबसूरत हो जाता है। कुछ प्राकृतिक सौंदर्य में सिरसी बाँध, लखनिया दरी, सिद्धनाथ दरी, कुशियरा फॉल, टाण्डा फाल, विंढम फॉल, ददरी-हलिया जंगल मुख्य हैं। अगर प्रशासन ध्यान दे तो इनको और भी खूबसूरत बनाकर पर्यटन बढ़ाया जा सकता है जिससे रोज़गार के अवसर बढेंगें।

विंध्याचल के नाम से काफी तीर्थयात्रियों का आना होता है लेकिन उनमें से कम को ही मालूम होगा कि माँ विंध्यवासिनी का दर्शन अकेले करने से पूरा पुण्य नहीं मिलता । पूरा पूण्य प्राप्त करने के लिए त्रिकोण पूरा करना होता है इस त्रिकोण में काली खोह और अष्टभुजा मंदिर शामिल हैं। काली खोह से करीब 8 km दूर ही IST सेन्टर है जहाँ से पूरे देश का समय निर्धारित होता है।

अगर आप 30 साल के आसपास उम्र समूह में हैं तो आपने देवकीनन्दन खत्री की चंद्रकांता सीरियल दूरदर्शन पर ज़रूर देखी होगी। तिलिस्म और मनोरंजन से भरपूर यह धारावाहिक चुनार के किले के बिना अधूरा है। और चुनार और चुनार का किला दोनो ही मिर्ज़ापुर जाकर देखा जा सकता है।

मिर्जापुर का नाम लो और गंगा घाट का नाम न आए ये तो जल बिन मछली वाली बात हो जाएगी। यहाँ तमाम गंगा घाट अपनी नक्काशीदार बनावट और खूबसूरती के लिए मशहूर हैं ये अलग बात है कि उचित रख रखाव न होने से फिलहाल धूल चाट रहे हैं। जिनमें कुछ प्रमुख घाट हैं पक्केघाट, बरियाघाट, नारघाटपक्केघाट का लेडीज मार्केट भी काफी फेमस हैं । सभी त्योहारों में से, कजरी महोत्सव संभवतह सबसे भव्य तरीके से मनाया जाता है।यहाँ का कालीन तो बहुत ही मशहूर है।

स्थानीय मिर्ज़ापुरी बोली ( भोजपूरी) के अलावा, ग्रामीण मिर्ज़ापुर की पोशाक भी काड़ा (ब्रेसलेट), बाजु बैंड (आर्म बैंड), हंसूली (मोटी गर्दन के छल्ले), बिछिया (पैर की अंगुली के छल्ले), करधनी (सिल्वर बेल्ट) जैसी पारंपरिक आभूषण पहनने वाली महिलाओं के साथ काफी अलग है। पुरुषों को ज्यादातर गमछा और कुर्ता में देखा जाता है।

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, साउथ कैंपस (बरकछा), 1104 हेक्टेयर क्षेत्रफल के साथ राबर्ट्सगंज उच्च मार्ग (मानचित्र) पर मिर्जापुर शहर के लगभग 8 किमी दक्षिण पश्चिम में स्थित है। वर्ष 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रोन ने उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े 101 मेगावाट के सौर ऊर्जा संयंत्र का मिर्जापुर जिले के दादर कला गांव में का उद्घाटन किया।

अन्त में यही हैं की मिर्जापुर पर लिखने और देखने लायक यहाँ पर बहुत कुछ है बशर्ते देखने वाले के पास समय और खूबसूरती देखने का नज़रिया और हुनर हो। तो अब अगली बार जब भी मौका मिले माँ विंध्यवासिनी धाम ज़रूर पधारें और खुद अपना नज़रिया बनाएँ मिर्ज़ापुर के लिए।