पेरेंटिंग

कोरोना तब और अब…2021 में भी ज़ंग जारी है

Corona 2021दिसंबर 2019 सुनकर आपके दिमाग में अपने हिसाब से अलग अलग स्मृतियां हो सकती हैं लेकिन एक भयावह स्मृति जो दिन प्रतिदिन और भयावह होती जा रही है वह यह है कि यहीं से कोरोना नामक महामारी हमारे संज्ञान में आई थी उस समय किसी को भी पता नहीं था कि ये क्या है, इसके लक्षण क्या है और सबसे महत्वपूर्ण की इसका इलाज़ क्या है? एक वो दिन था और एक आज का दिन कहने को तो हम 2019 से 2021 में पहुंच गए लेकिन कोरोना के मामले में हम ज्यादा कुछ नहीं कर पाए और यह महामारी दिन पर दिन और विकराल रूप लेती जा रही। दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने अथक परिश्रम करके कोरोना की वैक्सीन बना तो ली लेकिन लगता है कोरोना वायरस भी आंख मिचौली खेलने के मूड में है अभी 2021 में उसका जो म्युटेटेड version ( यूके वैरिएंट, साउथ अफ्रीकन वैरिएंट और ब्राजील वैरिएंट) आया है और खतरनाक बताया जा रहा खासकर बच्चों के लिये।

पेरेंटिंग के लिये कठिन समय

इस महामारी का शिकार तो सभी ही हैं किसी न किसी रूप में लेकिन हमारे मासूम बच्चे जो दिन में एक मिनट भी बैठना नहीं चाहते उनकी पुरी दुनिया ही चारदीवारी में कैद हो गई है। उनका मासूम बचपन उनके दोस्त साथी और सबसे बड़ी बात उनके स्कूल टोटल उन मोबाइल फोन और लैपटॉप पर निर्भर हो गए जिनसे हम उनको दूर रखने की कोशिश करते रहे। ऐसे में उनकी फिजिकल हेल्थ के साथ ही साथ मेन्टल हेल्थ भी दांव पे लगी हुई है और उसपर दुःखद पहलू यह है कि हममें में से कोई भी नहीं बता सकता कि इन हालातों से निकलने में कितना समय लगेगा और कब तक सब सामान्य होगा।

पर अभिभावक भी परिस्थितियों के आगे मजबूर हैं किंतु समय संयम दिखाने का हैं । कोशिश करें ये सबके लिए मुश्किल समय है, कोरोना से तो जंग चल ही रही, अभी समय है अपना मानसिक संतुलन नियंत्रित रखने के साथ ही साथ अपनी इम्युनिटी मज़बूत रखें। सब तरफ नकारात्मक शक्तियां ही सक्रिय हैं तो कोशिश करें कि खुद को और अपने परिवार को सकारात्मक माहौल देने की कोशिश करें और घर में हँसी खुशी का माहौल बनाए रखने की।  इसके लिए ज्यादा से ज्यादा बच्चों के साथ इन्वॉल्व रहें खुद भी व्यस्त रहें और बच्चों को भी रखें।

कोरोना के डर से ही सही, ज़िन्दगी को फुर्सत तो मिली; सड़कों और बाजारों को राहत, और घरों को रौनक तो मिली।

ऐसे में कुछ सकारात्मक कदम उठाये जा सकते हैं जैसे कि:

  1. जितना हो सके न्यूज़ और अफवाहों से सावधान रहें।
  2. दिमाग में यह बनाये रखें कि यह भी एक समय है गुजर जाएगा। ये एक लाइन ऐसी है जो सुख और दुख दोनों में ही सुकून देती है।
  3. जितना संभव हो संगीत सुनें, अध्यात्म, भजन आदि भी सुन सकते है, बच्चों के साथ बोर्ड गेम खेलें, परिवार के साथ बैठकर आने वाले वर्षों के लिए प्रोग्राम बनाएं ।
  4. दूसरों को वायरस से संबंधित सलाह ना दें क्योंकि सभी व्यक्तियों की मानसिक क्षमता एक सी नहीं होती, कुछ डिप्रेशन अर्थात अवसाद का शिकार हो सकते हैं ।
  5. आपकी नकारात्मक सोच-विचार की प्रवृति डिप्रेशन बढ़ाएगी और वायरस से लड़ने की क्षमता कम करेगी दूसरी ओर सकारात्मक सोच आपको शरीर और मानसिक रूप से मजबूत बनाकर किसी भी स्तिथि या बीमारी से लड़ने में सक्षम बनाएगी ।

आइये मिलकर-सकारात्मक विचार फैलाए “ईश्वर आपको स्वस्थ और प्रसन्न रखे”।

Different Shades of Life

कोरोना और उसका बचाव

चलते चलते फिर से कोरोना और उससे बचाव की बाते दोहरा लिया जाये ताकि यह लड़ाई अपने निर्णायक अंत पर पहुचे और हम सभी सकुशल इसमे जीत जाये।

  1. कोरोना के बचाव का सबसे मुलभूत तरीका आज भी मास्क लगाना, सेनेटाइजर का उपयोग और सोशियल डिस्टेसिग ही है। फिर से इसे आदत में लाये।
  2. कोरोना के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी लगभग सबको ही है कुछ और लक्षण शामिल हो गए हैं जैसे उल्टी या चक्कर जैसा लगना , कमज़ोरी थकान अनुभव करना, पेट खराब होना , ठंड के साथ बुखार आना ये कुछ नए लक्षण हैं जो कोरोना का नया स्ट्रेन अपने साथ लाया है।
  3. कोरोना का वायरस बॉडी में एंटर करने से पहले 3, 4 दिन तक गले में रहता है इसलिए गर्म चीजों का उपयोग करने की सलाह दी जाती है जैसे गर्म पानी, काढ़ा, हल्दी आदि। क्योंकि वायरस के ऊपर कोई रिजिड वाल नहीं होती एक लिपिड लेयर होती जो गर्म चीजों या नमक से नष्ट हो जाती ऐसा वैज्ञानिक मानते हैं।
  4. वैक्सीन के बारे में भी कई भ्रांतियां फैली हुई हैं उस पर ज्यादा ध्यान नहीं देना है। बच्चों को वैक्सीनेशन तो हम सबने करवाया ही है यह भी वैसी ही वैक्सीनेशन है इसको करवाने के बाद एक दो दिन थोड़ा सावधानी बरतने की ज़रूरत रहती की बुखार वगैरह तो नही आ रहा साथ ही साथ यह आपको कब तक सुरक्षित रखेगा इस बारे में सबके अलग अलग मत हो सकते लेकिन ध्यान रखिये की आज के माहौल में कोरोना से बचने का सबसे सुरक्षित तरीका वैक्सीनेशन ही है।
  5. बच्चों के लिए तो वैक्सीन का भी कोई अता पता नहीं है ऐसे में विकल्प यही है कि सावधानी के साथ घर में रहे खासकर 10 साल से कम के बच्चों को तो किसी भी रूप में न निकलने दें  और सभी नियमों का कड़ाई से पालन करें कोई भी लक्षण दिखने पे सतर्क हो जाएं  और बचाव के उपाय करते रहें।

वैसे तो कोरोना एक जंग हैं पर इस सुक्ष्म जीव को हम ऑखो से देख नही सकते इसलिये हर जगह लड़ाई ही सफल नहीं होती, प्रकृति के प्रकोप से बचने के लिए हमें भी कुछ समय के लिए सारे काम छोड़ कर, चुपचाप हाथ जोड़कर, मन में सुविचार रख कर एक जगह ठहर जाना चाहिए तभी हम इसके कहर से बचे रह पाएंगे।

 

 

पेरेंटिंग

Kids

पेरेंटिंग हमेशा एक चुनौती ही रही है। एक नन्हे से जीव को इस काबिल बनाना कि वो खुद अपने भले-बुरे का चुनाव करने के साथ-साथ उससे जुड़े लोगों के लिए भी सही फैसला ले सके, कभी भी आसान नहीं रहा। भारतीय समाज में पहले संयुक्त परिवार में ज़िम्मेदारियाँ बँटी होती थी और बच्चों के पास भी देखने-सीखने के लिए बहुत से विकल्प होते थे। माता-पिता भी अपनी और ज़िम्मेदारियों के साथ-साथ बच्चों को भी देख लेते थे। बच्चे भी माँ-बाप में भगवान वाली छवि ढूढ़ते थे और उनकी बात सुनते ज्यादा एवं बोलते कम थे। लेकिन अब जैसे-जैसे एकल परिवारों का चलन बढ़ा और एक-दो बच्चे का दौर शुरू हुआ, साथ-साथ लड़की हो या लड़का शिक्षा सबका अधिकार प्रभावी हुआ, तब से काफी कुछ बदल गया। चुनौतियां बढ़ी, ज़िम्मेदारी बढ़ी और बिखराव बढ़ा। जहाँ पहले बच्चे अपने पेरेंट्स से छोटी सी बात करने में हिचकते थे अब सवाल-जवाब खत्म ही नहीं होते। सफलता मिली तो ये बच्चों की मेहनत और असफलता मिली तो आपने मेरे लिए किया ही क्या? ऐसे में तनाव और चिंता का माहौल हो जाना कोई बड़ी बात नहीं। नए पेरेंट्स सब कुछ छोड़कर बच्चों का भविष्य बनाने में लगे हुए हैं। उनके चतुर्मुखी विकास में अपना सब कुछ झोंक दिया है। ऐसे में ये ज़रूर ध्यान देना चाहिए कि बच्चा हर बात के लिये आप ही पर तो निर्भर नहीं हो रहा। कोशिश करना चाहिए कि बचपन से ही बच्चों को सही-गलत में अंतर समझाया जाना ज़रूरी है, ताकि बड़ा होकर वो अपने जीवन के अहम फैसलों में आपसे सलाह तो ले लेकिन आखिरी फैसला खुद उसका हो और उसके लिए वो किसी पर दोषारोपण करता नजर न आए। बच्चों को समाज की बुरी नज़र से बचाते हुए आत्मनिर्भर बनाने में कहीं हम ये गलती तो नहीं कर रहे कि बच्चा हमसे तो बहस कर ले रहा लेकिन जहाँ समाज में बोलने की बारी आए तो वो कुछ बोल ही न पाए। इसके लिए उसको बचपन से ही छोटे-छोटे मामलों में निर्णय लेने का मौका दीजिये और गलत होने पर उसको प्यार से समझाइए भी।
बच्चों को बचपन से ही आत्मनिर्भर बनाने में उनको अपना काम खुद करना भी आना चाहिए। इसलिए शुरुआत से ही छोटे कामों को करने की आदत डालने पर बाद में बड़े काम भी वो खुद करने लगते हैं। अगर आप यह सोचकर कि बच्चा अभी छोटा है, उनके सभी काम करते जाएंगे तो भविष्य में उसको आराम की आदत हो जाएगी। हमारे समाज में खासकर भारतीय समाज में लड़कियों को तो ससुराल जाने के नाम पर थोड़ा-बहुत काम करवाया भी जाता है, लेकिन लड़कों को एक गिलास पानी लेने को भी नहीं बोला जाता। ऐसे में एकल परिवारों में माँ के बीमार होने पर बड़ी समस्या हो जाती है और बाद में यही समस्या उस लड़के की पत्नी को भी झेलनी पड़ती है। आज के हमारे समाज की कड़वी सच्चाई ये है कि लड़का हो या लड़की सबको सब काम आने चाहिए ताकि ज़रूरत पड़ने पर वह हर परिस्थिति का डटकर सामना कर सके। लड़की को इतना काबिल बनाएं कि वो आर्थिक और मानसिक रूप से सशक्त होते हुए घर की ज़िम्मेदारियाँ बख़ूबी निभा सके और लड़के को इतना काबिल बनाएं कि आर्थिक और सामाजिक रूप से मज़बूत होते हुए भी घर के काम करने में वो संकोच या शर्म महसूस न करे और अकेले होने पर कभी भूखा रहने की नौबत न आए।