भाद्रपद

श्रावण और तीज़ : हरियाली, कजरी और हरितालिका तीज़

depth of field photo of diety god statuette

हिन्दू कैलेंडर के अनुसार पांचवां महीना और मानसून का दूसरा महीना श्रावण का होता है जिसको भोजपुरी में सावन भी बोलते हैं। श्रावण मास बड़ा ही शुभ और भक्तिमय माहौल लिए हुए होता है जगह जगह कांवरिये बोल बम करते गंगा जल लेकर भोलेनाथ के धाम जाते दिख जाते हैं। श्रावण मास के सोमवार को व्रत करने से मनचाहा पति मिलने की आस्था रखने वाले बहूत लोग हैं। इन्हीं व्रत और त्यौहारों में एक व्रत होता है तीज़ का। तीज़ का मतलब तीसरा दिन या तो पूर्णिमा के बाद का तीसरा दिन या फिर अमावस्या के बाद तीसरा दिन। इस तरह यह एक महीने में दो बार पड़ता है एक बार शुक्ल पक्ष की तृतीया और एक कृष्ण पक्ष की तृतीया।श्रावण और भाद्रपद दोनों महीने में 4 तृतीया आती है जिसमें से 3 तृतीया को हम तीज़ के रूप में मनाते हैं जो मुख्य रूप से उत्तर भारत में उत्तर प्रदेश, बिहार, और राजस्थान में बहुत ही उल्लास के साथ मनाया जाता है। तीज में विवाहिता महिलाएं अपने पति की मंगल कामना के लिये और विवाह योग्य लड़कियां अपने मनपसंद वर के लिए मां पार्वती और महादेव की आराधना करते हैं निर्जला व्रत और पूजा बंदन भी करते हैं।

हरियाली तीज

यह श्रावण के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है और उसके 2 दिन बाद नागपंचमी का त्योहार आता है। जैसा कि इसके नाम से ही ज्ञात होता है इसमें स्त्रियां हरे वस्त्र पहनकर और हरे रंग के ही श्रृंगार करके पूरे दिन व्रत रहकर शाम को मां पार्वती और शंकर जी की प्रतिमा की पूजा करती हैं और दिन भर अपने को व्यस्त रखने के लिए माला फूल से सजावट और बाकी परिवार वालों के लिये तरह तरह के व्यंजन बनाती हैं। 2021 में यह 11 अगस्त को होगा।

Ladies celebrate Hariyali Teez

कजरी तीज़

यह भाद्रपद शुक्लपक्ष की तृतीया को मनाया जाता है और रक्षा बंधन के तीन दिन बाद और इसके 5 दिन बाद कृष्ण जन्माष्टमी मनाया जाता है। कजरी का शाब्दिक अर्थ ही विछोह है तो जहाँ भी यह त्योहार मनाया जाता है वहाँ विवाहिता स्त्रियां इसे अपने मायके जाकर मनाती हैं मतलब ससुराल और पति से दूर। इस दिन नीम की पूजा होती है और तरह तरह के झूले डालकर लड़कियां और स्त्रियां तमाम गीत गाते हुए झूला झूलती हैं। कजरी गीत अपने आप में अलग ही शैली है और इसको पसन्द करने वालों का अपना अलग ही एक वर्ग है। मिर्ज़ापुर की कजरी बहुत ही मशहूर है। यह मानसून त्यौहार है और इस समय तक किसान अपने खेतों में खरीफ फसलों की रोपाई करते हैं इसी के महत्व को बताने के लिए गांव में बच्चियां मिट्टी का एक गोला बनाकर उसमें जौ का बीज लगाकर 10 से 15 दिन उसकी देखभाल करती हैं और उसके बाद उसके फसल (जरई)को सबके कान पर रखकर आशीर्वाद लेते हैं। 2021 में यह 25 अगस्त को है।

wood sea landscape beach

हरितालिका तीज़

यह भाद्रपद के कृष्णपक्ष की तृतीया को मनाया जाता है इसके अगले दिन ही गणेश चतुर्थी मनाया जाता है और हरियाली तीज के एक महीने बाद पड़ता है। इस दिन विवाहिता स्त्रियाँ 24 घण्टे निर्जला ( बिना अन्न, जल) व्रत रहकर भगवान शिव व पार्वती माँ की आराधना करती हैं और अपने सुहाग और संतान की दीर्घायु और मंगलकामना की प्रार्थना करती हैं। 2021 में यह त्योहार 9 सितंबर को पड़ रहा है।

Beatuitful bride celebrating Haritalika Teez

व्रत कैसे करते हैं

हरितालिका तीज़ तीनों तीजों में सबसे महत्वपूर्ण और सबसे कठिन होता है। इसको करने वाली स्त्री सुबह सूर्योदय होने से पहले अपने दैनिक कार्य निवृत्त करके स्नान ध्यान करके घर को साफ सुथरा करके तोरण मंडप सजाती है। बालू या मिट्टी से शिव गौरी की प्रतिमा बनाती है 16 श्रृंगार करके सौभाग्य सूचक सभी सामग्री जैसे फल, फूल, पान, वस्त्र, दुग्ध, दही, मिष्ठान, बेलपत्र, अक्षत, कुमकुम सुहाग की सामग्री ( चूड़ी, बिंदी आदि) इकट्ठा करके फिर किसी आचार्य से या स्वयं व्रत कथा वाचन करती है। अगले दिन यह सब सामग्री प्रतिमा सहित नदी में प्रवाहित करते हैं।

तृतीया तिथि के सूर्योदय से चतुर्थी तिथि के सूर्योदय तक बिना जल और अन्न के रहना होता है साथ ही साथ इस व्रत में शयन वर्जित होता है। इस व्रत को करने वाला इस व्रत को छोड़ नहीं सकता है विशेष परिस्थितियों जैसे किसी बीमारी या गर्भावस्था में उसकी जगह उसके पति उसका व्रत कर सकते हैं।

व्रत के पीछे की मान्यता और शाब्दिक अर्थ

ऐसी मान्यता है कि मां पार्वती और शिव जी की जोड़ी आदर्श जोड़ी है जन्म जन्मांतर में हर जन्म में माँ पार्वती ने शिव जी को ही पति के रूप में चुना। मां पार्वती के रूप में जब उनका जन्म हुआ तो उनके पिता गिरिराज हिमालय और माता मैना उनकी शादी विष्णु जी से करवाना चाहते थे ऐसे में वह जंगल में जाकर बहुत कठोर तप की जिससे शिव जी का आसन हिलने लगा तब भगवान भोलेनाथ ने मां पार्वती को अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया। जंगल में तप करने के लिए मां पार्वती की सहेलियाँ उन्हें हरण करके ले गईं इसीलिए इस व्रत को हरतालिका ( हरत+आलिका) कहते हैं जिसमें आलिका मतलब सहेलियों से है और हरत मतलब भगा ले जाना।

तीज़ के बारे में यह मान्यता भी है कि देवी सती की मृत्यु के बाद कई सौ साल के लंबे इंतजार के बाद इस दिन माँ पार्वती को भगवान शिव की स्वीकृति मिली थी उनकी अर्धांगिनी के रुप में। स्त्रियों और बच्चों में इन त्योहारों का उत्साह देखते ही बनता है। एक तो श्रावण मास में प्रकृति अपने उत्कर्ष पर होती है ऊपर से यह तीज़ त्योहार उसपर चार चाँद लगा देते हैं।

इन सब पौराणिक कथाओं के अलावा इस व्रत का  वैज्ञानिक कारण यह है कि श्रावण और भाद्रपद मास की हरियाली और मनभावन मौसम में कौन सी स्त्री अपने आपको सुसज्जित नहीं करना चाहेगी साथ ही साथ वज़न नियंत्रण और मानसून की बीमारियों से दूर रहने के लिए व्रत रहना काफी फलदायक होता है।

तो आप भी मानसून के साथ ही ये पर्व मनाइये और कुछ जानकारी अधूरी रह गई हो तो हमें कमेंट करके ज़रूर बताएं।

देवशयनी एकादशी: धर्म और विज्ञान साथ साथ

हिन्दू धर्म के अनुसार हिंदी कैलेंडर के आषाढ़ मास की एकादशी को देवशयनी एकादशी के रूप में जानते और मनाते हैं। माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार मास के लिए क्षीरसागर में विश्राम करने चले जाते हैं और इसीलिए इसके बाद का श्रावण माह पूरी तरह से भोलेनाथ महादेव का माना जाता है कि सृष्टि का संचालन अब महादेव के हाथ में है।इस दिन से सभी मांगलिक कार्यक्रम जैसे विवाह, गृहप्रवेश आदि अगले चार महीनों के लिये वर्जित हो जाते हैं। 2021 में देवशयनी एकादशी 19  जुलाई की शाम से शुरू होकर 20 जुलाई की शाम तक  है और यह चातुर्मास लगने का संकेत है। चतुर्मास में श्रावण, भाद्रपद, अश्विन और कार्तिक महीने शामिल हैं।

प्राचीन काल में भी भारत का विज्ञान काफी आगे था। हमारे ऋषि मुनि जो भी करते थे उसके पीछे ठोस वैज्ञानिक आधार होता था। आषाढ़ मास यहाँ पर मानूसन यानी वर्षा ऋतु का मास है और एकादशी तक देश के सभी प्रांत तक मानसून पहुंच ही जाता है। हमारे देश में गाँव में आज भी मानसून आने के बाद मुख्य रूप से खेती ही की जाती है और तमाम रास्ते बारिश और जंगलों की वजह से अवरुद्ध हो जाते हैं। पहले यातायात के साधन भी पशुओं और ग्रामीण रास्तों को ध्यान में रखकर बनाए जाते थे इसलिए मानसून के चार महीने वैवाहिक कार्यक्रम बन्द कर दिए जाते थे ताकि किसी को परेशानी न हो।
हमारे यहाँ ऋषि मुनि जंगलों में तप करने जाते थे। वर्षा काल में जंगली और खूंखार जानवरों के डर से वो नगर या गाँव के आसपास ही अपना ठिकाना बना लेते थे और वर्षा काल बीतने के बाद वापस अपने ठिकानों पर चले जाते थे। हमारे यहाँ ऋषि मुनियों के स्थान भी देवतुल्य ही माना गया है । और ऋषि मुनि अपनी पूजा तप छोड़कर गांव नगर की तरफ प्रस्थान करते हैं इसलिए भी इसे देवशयन समय माना गया है।
देवशयनी एकादशी में वैसे तो व्रत पूजा पाठ किया जाता है लेकिन अगर व्रत वगैरह में विश्वास नहीं है तो भी वेद पुराण पढ़ने और अपना ज्ञान बढाने में किसी को भी दिक्कत नही होनी चाहिए। साथ ही साथ इस दिन चावल वर्जित माना गया है इसके पीछे वैज्ञानिक आधार यह है कि चावल खाकर बारिश के मौसम में आप शान्ति से ज्ञान अर्ज़न नहीं कर सकते और ध्यान मग्न भी नहीं हो सकते।