प्रेगनेंसी और कोरोना

किसी नए जीव का सृजन अपने आप में ही एक सुखद अहसास होता है लेकिन इसके साथ ही कई ज़िम्मेदारियों का अहसास और कोई गलती न हो इस बात का डर भी सताता है खासकर तब जब फर्स्ट प्रेग्नेंसी हो और इस कोरोना काल में तो और भी डर हो जाता है। ऊपर से अनेक भ्रांतियाँ भी फैली हुई हैं कि प्रेग्नेंट लेडीज कोरोना के हाई रिस्क पे होती हैं। जबकि वास्तविकता में ऐसा कुछ भी नहीं होता। आंकड़ों के अनुसार कोरोना से मृत्यु उन्हीं लोगों की हुई है जो पहले से किसी और रोग से ग्रस्त थे या जिनकी इम्युनिटी बहुत ज्यादा कमजोर थी।

तो जो भी ज़रूरी सावधानियाँ हैं जैसे सोशल डिस्टनसिंग, मास्क पहनकर ही बाहर निकलें और जब तक बहुत ज़रूरी न हो तो बाहर न निकलें उनको ध्यान में रखेंगीं तो आप अपने प्रेगनेंसी एन्जॉय करते हुए स्मूथली निकाल सकते हैं।

प्रेग्नेंसी एक सुखद अहसास है और खुद को आने वाली चुनौतियों के लायक मज़बूत बनाने का एक अवसर। ये 9 महीने आपको अपने लिए जीने अपने पार्टनर के साथ अपने रिश्ते को मजबूत बनाने और एक दूसरे को एक नन्हें मेहमान को अपने जीवन में हमेशा के लिए शामिल करने के लिए मेंटली और फिजिकली तैयार करने के लिए मिलते हैं। इसलिए इसको भरपूर जिये और हर वो तैयारी जो बच्चे के आने से पहले चाहिए होती है उसको कर लीजिए।

प्रेग्नेंसी को तीन स्टेजेज में बाँट दिया गया है। फर्स्ट ट्राइमेस्टर इसकी शुरुआत लास्ट पीरियड के फर्स्ट डे से लेकर प्रेग्नेंसी के 12 वीक्स तक का समय फर्स्ट ट्राइमेस्टर कहा जाता है

सेकंड ट्राइमेस्टर 13 वीक्स से 26थ वीक तक सेकंड ट्राइमेस्टर कहलाता है।

थर्ड ट्राइमेस्टर 27 वीक्स से प्रेग्नेंसी के आखिरी तक थर्ड ट्राइमेस्टर कहलाता है।

फर्स्ट ट्राइमेस्टर (शुरुआत के तीन महीनों) में एक औरत के अंदर काफी बदलाव होते हैं जो बाहर से तो नहीं दिखते लेकिन उसको काफी प्रभावित करते हैं और साथ मे ही उसके साथ जुड़े लोंगो को भी। चूंकि शुरू के 3 महीनों में काफी हार्मोनल बदलाव होते हैं जिसके लिए औरत का शरीर तैयार नहीं होता जिसकी वजह से उल्टी होना, चक्कर आना, ज़ी घूमना, वज़न कम हो जाना मूड स्विंग होना , वज़न बढ़ना,सुस्ती होना ये सब आम बात है इन बातों से खुद भी नहीं घबराना है और बाकी घरवालों को भी परेशान नहीं करना है। फर्स्ट ट्राइमेस्टर में बेबी ग्रोथ भी तेजी से होती एक कोशिका से पूरा शरीर बनना, उसका लिंग निर्धारित होना सब इसी फेज में होता इस लिहाज से ये फेज माँ और बच्चे दोनों के लिए ज़रूरी और चुनौती भरा होता। ज़रा सी लापरवाही भी मिसकैरिज का कारण बन सकती है। इसलिए कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान जरूर रखें

1.एक कुशल और प्रशिक्षित महिला डॉक्टर से परामर्श ज़रूर लें और आगे के 9 महीने उन्हीं के अनुसार चलना है तो डॉक्टर चुनने में जल्दबाजी न दिखाएं और हॉस्पिटल अपने घर से बहुत दूर भी न हो इसका भी ध्यान रखें।

2.संतुलित भोजन लें आवश्यक विटामिन्स, मिनरल्स और कार्बोहाइड्रेट की मात्रा अपने लम्बाई और वज़न के हिसाब से संतुलित रखें। आयरन और कैल्शियम सप्लीमेंट्स डॉक्टर की सलाह से ज़रूर शुरू कर दें।

3.आपके शरीर में लिक्विड की खपत बढ़ने वाली है तो उसका इनटेक भी बढ़ा दी फिर वो चाहे सादे पानी के रूप में हो या फ्रूट जूस या नारियल पानी के रूप में ये आप पर डिपेंड करता है।

4. भारी सामान उठाने और ज्यादा भागदौड़ से बचें।

5. फलों में पपीता और अनानास को न खाएं तो बेहतर है साथ ही साथ अदरक, हल्दी जैसी गर्म चीजों से जितना परहेज़ कर सकें प्रेग्नेंसी के दौरान उतना बेहतर होगा आपके और आपके होने वाले बच्चे के लिए।

6.पहला टेटनस का इंजेक्शन भी फर्स्ट ट्राइमेस्टर में ही लगता है वो अपने चिकित्सक से परामर्श करके लगवा सकते हैं।

सेकंड ट्राइमेस्टर में बेबी ग्रोथ होती और मां की बॉडी भी अपने आपको एडजस्ट कर चुकी होती तो उसका भी वज़न बढ़ना नार्मल प्रक्रिया होती। कुछ केसेस जिनमें यूटेरस कमज़ोर होता और ग्रोइंग बेबी का वजन न सम्हाल पाने की वजह से मिसकैरिज वगैरह होता( बहुत कम केसेस ) है , नही तो सेकंड ट्राइमेस्टर में कोई चिंता की बात नहीं होती। रेगुलर चेकआप और छठवे महीने में टिटनेस के टीके लगवाने के अलावा और कोई ज़रूरत नहीं पड़ती। इस दौरान कई महिलाओं को ज़ी मिचलाना, और थकान से आराम मिल जाता है

इस दौरान कुछ सामान्य लक्षण जो आपको देखने को मिल सकता है

  • भूख बढ़ना
  • पेट बाहर निकलना
  • लो बीपी के कारण चक्कर आना
  • शिशु की मूवमेंट्स महसूस कर पाना
  • पेट स्तनों और जांघों पर स्ट्रेच मार्क्स पड़ना
  • एड़ियों और हांथो में सूजन

अगर इनमें से कोई भी लक्षण आपको ज्यादा परेशान कर रहा तो अपने डॉ से परामर्श अवश्य लें। दूसरी तिमाही के खत्म होने तक शिशु के सभी अंग विकसित हो चुके होते हैं और शिशु सुनने और स्वाद लेने लायक हो जाता है इसलिए मां को खुश रहना चाहिए और ऐसी कहानियां और गाने सुनते रहें जिनको आप चाहते। हैं कि आपका बच्चा इसको एन्जॉय करेगा। आपने वीर अभिमन्यु की कहानी अवश्य सुनी होगी जो चक्रव्यूह भेदने की विद्या अपनी मां के गर्भ से सीखकर आया था।

थर्ड ट्राइमेस्टर सबके लिए ही अहम होता होने वाली माँ आने वाले बच्चे और पूरे परिवार के लिए भी। अगर आपका पहला बच्चा है तो ये आखिरी 3 महीने हैं जो आप अकेले बीता रहे इसके बाद आप मां के रूप में व्यस्त रहने वाली हैं तो ये जो समय आपको मिला है उसको अपने मनपसंद काम अपने शौक को पूरा करने में बिताइए।अपनी मनपसंद मूवीज,पत्रिकाओं और वो सभी काम जो आप करियर पढ़ाई और फिर शादी के बाद की ज़िम्मेदारी पूरी करने में कहीं पीछे छोड़ दिया था।

तीसरी तिमाही में प्रेग्नेंट महिला को दर्द और सूजन बढ़ जाती है और डिलीवरी को लेकर मेन्टल प्रेशर भी बढ़ जाता है। कुछ लक्षण जो तीसरी तिमाही में दिखते हैं निम्न हैं :

  • गर्भाशय का बीच बीच में टाइट हो जाना।
  • बच्चे का मूवमेंट बहुत ज्यादा बढ़ जाना।
  • गर्भाशय में शिशु पूरी जगह ले चुका होता है इसलिए वहाँ यूरिन कलेक्शन के लिए जगह कम पड़ती और बार बार यूरिन डिस्चार्ज करने जाना पड़ता।
  • सोने में दिक्कत होंना।

अगर आपको शिशु की एक्टिविटी अचानक से कम समझ आए या ब्लीडिंग शुरू हो जाए या फिर अत्यधिक सूजन दिखे तो अपने डॉक्टर से तुरंत सलाह लें।

सभी कठिनाइयों के बाद भी, जब आप पहली बार अपने बच्चे को अपने हाथ में लेते हैं, तो जो भावना आती है उसे शब्दों में वर्णित नहीं किया जा सकता है।