कार्तिक

आँवला यानि अमृत फल, नाम एक फायदे अनेक

आँवला यानि गूजबेरी, इसको आयुर्वेद मेंं अमृत फल भी कहते हैं, बड़े काम की चीज है । इसका साइन्टिफिक नेम फिलेन्थस एम्बलिका (Phyllanthus Emblica) है। इसको कई रुप में खाया जाता है मुरब्बा, अचार, पावडर आदि।

आँवले का स्वाद कसैला और मीठा होता है । बालों को असमय सफेद होने से बचाने के अलावा स्किन संबंधित तमाम परेशानियों से छुटकारा दिलाने जैसे बहुत से ऐसे फायदे हैं जिनसे हो सकता है आप अभी तक अनभिज्ञ हों। तो आइये आज कुछ बातें इस अमृत फल की कर लेते हैं।

यह फल विटामिन सी का बहुत अच्छा सोर्स होता है साथ ही फाइबर्स प्रचुर मात्रा में मिलते हैं। हृदय स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए भी आँवले को फायदेमंद पाया गया है। आंवला का सेवन बढ़े हुए लिपिड को कम करने के साथ ही बढ़े हुए ब्लड प्रेशर को भी कम करने में सहायता कर सकता है। अक्सर देखा गया है गलत खानपान का सीधा असर हमारे लीवर पर पड़ता है। इसलिए लीवर का स्वस्थ और मजबूत होना बहुत आवश्यक है। आंवला के गुण लिवर को स्वस्थ बनाए रखने मे भी मददगार हो सकते हैं।

आँवले में मोटापे की समस्या को दूर करनेवाले गुण होते हैं उचित खान पान और नियमित व्यायाम के साथ आँवले का सेवन मोटापे को कंट्रोल करने में सहायक होता है। पाचन प्रक्रिया को सुधारने मेंं आँवला काफी हद तक कारगर होता है। अपच और गैस की समस्याओं से लड़ने में काफी सहायक होता है। आँवला खाने के फायदे मेंं शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में सुधार भी शामिल है। आँवला हड्डियों को भी मजबूत बनाने में भी काफी सहायक है।

इसके साथ साथ शोध में यह पाया गया है कि :

आँवला ग्लूकोमा और कंजेक्टिवाइटिस जैसी आंख की समस्याओं से निबटने में मददगार है।

आँवले मेंं कैंसररोधी तत्व भी मिलते हैं जो कैंसर कोशिकाओं को खत्म करने में सहायक होती है।

आंवला यूरेनरी समस्याओं से छुटकारा दिलाता है।

आँवला सूजन रोधी भी होता है।

पित्त की पथरी को खत्म करने में आँवला काफी मददगार है।

आँवले का घरेलू उपचार समस्या से राहत दिलाने में कुछ हद तक मदद कर सकता है लेकिन इसे उस समस्या का उपचार नहीं कहा जा सकता। बीमारी के पूर्ण उपचार के लिए डॉक्टरी सलाह जरूर लें।

आँवले में विटामिन ई प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जो बाल और त्वचा सम्बंधित समस्याओं से छुटकारा दिलाता है खासकर बाल का असमय सफेद होने की समस्या जोकि आज के जीवन शैली से प्रभावित प्रमुख समस्या है।

इन सभी फायदो के चलते आजकल आँवले के जूस काफी पसंद किये जा रहे हैं । कई प्रचलित ब्रांड्स के जूस बाज़ारों में उपलब्ध हैं । जैसेकि प्रत्येक औषधि लेने का एक तरीका और सही समय होता है वैसे ही आंवला जूस लेने का सही समय सुबह खाली पेट गर्म पानी के साथ माना गया है हालांकि इसका चिकित्सीय प्रमाण और कारण उपलब्ध नही हैं।

हिन्दू मास के कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के नवमी तिथि को अमला नवमी भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है इस दिन आंवला के वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर खाने से माँ लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन से त्रेतायुग की शुरुआत हुई थी।

इसलिये जब अगली बार बाजार फल लेने जाएँ तो इस अमृत फल को जरूर आजमाये और इसके फायदे उठाये ।

कार्तिक माह: विविधता और पर्व का संगम

Deep daan in holy rivers

वैसे तो अंग्रेजी कैलेंडर की तरह ही हिन्दू कैलेंडर में भी 12 महीने होते हैं। उनमें से 8th कार्तिक महीने का महत्व ज्यादा है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि इस महीने में भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों ही धरती पर वास् करते हैं। तो आइये बात करते हैं कर्तिक महीने की ।

ऐसी मान्यता हैं कि भगवान अपने प्रथम अवतार मत्स्य रूप में इसी माह में धरती पर आये थे और अभी भी इसी रूप पूरे मास भर निवास करते हैं। अत: मानने वाले इस पूरे महीने भर सूर्योदय से पहले स्नान करके तुलसी पूजन करते हैं। विशेष रूप से बुजुर्ग लोगों में इसका महत्व ज्यादा है। लोग जगन्नाथपुरी या मथुरा वृंदावन में ही निवास करके अपनी पूजा आराधना में लीन रहते हैं।

ऐसी भी मान्यता है कि साल के 11 महीने माँ गंगा के और कार्तिक महीना माँ यमुना का होता है। इसलिए प्रयागराज के बलुआघाट में यमुना जी के किनारे पूरे महीने भर का मेला लगता है जो काफी विशाल होता है और दैनिक ज़रूरत से लेकर सभी सामान हस्तशिल्प सामान भी सब आपके बजट के हिसाब से मिल जाएंगे।

भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी को चार माह के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं जिसे देवशयनी एकादशी भी कहते हैं। इसके बाद वह कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं। इन् चार महीनों में देव शयन के कारण समस्त मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं। जब भगवान विष्णु जागते हैं तब मांगलिक कार्य  की शुरू आत होती है ।

इस कारण इस दिन  को देवोत्थान एकादशी कहते हैं। इसी दिन तुलसी भी शालिग्राम से विवाह करके बैकुंठ धाम को चली गई थीं। इसलिए पूरे मास भर तुलसी के पौधे के सामने दीपक जलाने की मान्यता है। तुलसी को लक्ष्मी स्वरूप माना गया है।

कार्तिक पूर्णिमा का भी बहुत महत्व है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव ने इसी दिन त्रिपुरासुर नाम के राक्षस का वध करके तीनों लोकों की रक्षा की थी और भगवान शिव को त्रिपुरारी नाम मिला था। इससे खुश होकर सभी देवों ने काशी में इकट्ठे होकर दीवाली मनाई थी इसलिए कार्तिक पूर्णिमा को देव दीवाली के रूप में भी मनाया जाता है।

Dev Diwali in kashi

महाभारत के बाद जब पांडव अपने सगे सम्बन्धियों के अकाल मृत्यु से शोकाकुल थे और सोच रहे थे कि असमय मृत्यु के कारण उनकी आत्मा को शांति कैसे मिलेगी । तब भगवान कृष्ण के कहने पर कार्तिक शुक्ल पक्ष की अष्टमी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक पितरों की आत्मा की तृप्ति के लिए तर्पण और दीपदान किया। तभी से कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा स्नान और पितरों को तर्पण देने का रिवाज शुरू हुआ।

 

कार्तिक पूर्णिमा का महत्व अन्य धर्मों में भी बहुत है।

कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही सिख धर्म के पहले गुरु, गुरु नानक देव का जन्म हुआ था इसलिए इसको गुरु नानक जयंती और प्रकाश पर्व के रूप में भी मनाया जाता है।

जैन धर्म में भी कार्तिक माह की पूर्णिमा का  काफी महत्व है इस दिन चातुर्मास पश्चात श्री शत्रुंजय महातीर्थ पलिताना की यात्रा पुनः शुरू होती है। साथ ही साथ इस दिन के बाद जैन साधू-साध्वी चातुर्मास संपन्न होने से अपनी विहार यात्रा पुनः शुरू करते हैं।

कार्तिक माह दक्षिणायन का समय होता है अर्थात इस समय सूर्य अपनी भौगोलिक स्थिति बदलता है और धीरे धीरे दक्षिण की ओर गमन करता है और कर्क संक्रांति से लेकर मकर सक्रांति तक होता है। इसलिए इस समय दिन छोटा और रात बड़ी होती है इसलिए खुद को ज्यादा स्फूर्तिवान रखने की ज़रूरत पड़ती है ताकि हमारे सभी काम सुचारू रूप से चलते रहें। अपने मन के अंदर के दीपक को जलाने के लिए हम बाहर भी दीपक जलाकर उजाला करते हैं।

साथ ही साथ योग की भाषा में साधना पद खत्म होकर कैवल्य पद की शुरुआत होती है। साधना पद कर्म करने का समय होता है जिसमें कृषि कार्य से सम्बंधित सभी कार्य तथा अन्य वर्गों के लिए उनके कार्य होते हैं जबकि कैवल्य पद फल प्राप्त करने का समय होता है जिसके लिए खुद को मजबूत करना होता है और अपने को ईनाम भी देना होता है वह समय कार्तिक माह का होता है।

अत: हम देख पाते हैं कि भारत विविधताओं में भी एकता बनाये रखने वाला देश है। यहाँ सभी धर्मों से जुड़े त्यौहारों और मान्यताओं से जुड़ी कुछ धार्मिक और कुछ वैज्ञानिक कारण ज़रूर होता है ज़रूरत है बस उसको मालूम करने की और उसको उसी तरह सेलिब्रेट करने की।

 

देवशयनी एकादशी: धर्म और विज्ञान साथ साथ

हिन्दू धर्म के अनुसार हिंदी कैलेंडर के आषाढ़ मास की एकादशी को देवशयनी एकादशी के रूप में जानते और मनाते हैं। माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार मास के लिए क्षीरसागर में विश्राम करने चले जाते हैं और इसीलिए इसके बाद का श्रावण माह पूरी तरह से भोलेनाथ महादेव का माना जाता है कि सृष्टि का संचालन अब महादेव के हाथ में है।इस दिन से सभी मांगलिक कार्यक्रम जैसे विवाह, गृहप्रवेश आदि अगले चार महीनों के लिये वर्जित हो जाते हैं। 2021 में देवशयनी एकादशी 19  जुलाई की शाम से शुरू होकर 20 जुलाई की शाम तक  है और यह चातुर्मास लगने का संकेत है। चतुर्मास में श्रावण, भाद्रपद, अश्विन और कार्तिक महीने शामिल हैं।

प्राचीन काल में भी भारत का विज्ञान काफी आगे था। हमारे ऋषि मुनि जो भी करते थे उसके पीछे ठोस वैज्ञानिक आधार होता था। आषाढ़ मास यहाँ पर मानूसन यानी वर्षा ऋतु का मास है और एकादशी तक देश के सभी प्रांत तक मानसून पहुंच ही जाता है। हमारे देश में गाँव में आज भी मानसून आने के बाद मुख्य रूप से खेती ही की जाती है और तमाम रास्ते बारिश और जंगलों की वजह से अवरुद्ध हो जाते हैं। पहले यातायात के साधन भी पशुओं और ग्रामीण रास्तों को ध्यान में रखकर बनाए जाते थे इसलिए मानसून के चार महीने वैवाहिक कार्यक्रम बन्द कर दिए जाते थे ताकि किसी को परेशानी न हो।
हमारे यहाँ ऋषि मुनि जंगलों में तप करने जाते थे। वर्षा काल में जंगली और खूंखार जानवरों के डर से वो नगर या गाँव के आसपास ही अपना ठिकाना बना लेते थे और वर्षा काल बीतने के बाद वापस अपने ठिकानों पर चले जाते थे। हमारे यहाँ ऋषि मुनियों के स्थान भी देवतुल्य ही माना गया है । और ऋषि मुनि अपनी पूजा तप छोड़कर गांव नगर की तरफ प्रस्थान करते हैं इसलिए भी इसे देवशयन समय माना गया है।
देवशयनी एकादशी में वैसे तो व्रत पूजा पाठ किया जाता है लेकिन अगर व्रत वगैरह में विश्वास नहीं है तो भी वेद पुराण पढ़ने और अपना ज्ञान बढाने में किसी को भी दिक्कत नही होनी चाहिए। साथ ही साथ इस दिन चावल वर्जित माना गया है इसके पीछे वैज्ञानिक आधार यह है कि चावल खाकर बारिश के मौसम में आप शान्ति से ज्ञान अर्ज़न नहीं कर सकते और ध्यान मग्न भी नहीं हो सकते।